प्राचीन मान्यता: इस मंदिर में मन्नत मांगने वाली महिलाओं की भर जाती है सूनी गोद

प्राचीन मान्यता: इस मंदिर में मन्नत मांगने वाली महिलाओं की भर जाती है सूनी गोद

Bhaskar Hindi
Update: 2019-07-17 12:10 GMT
प्राचीन मान्यता: इस मंदिर में मन्नत मांगने वाली महिलाओं की भर जाती है सूनी गोद

डिजिटल डेस्क, उमरिया। घने जंगल व हिंसक वन्य प्राणियों के बीच प्रसिद्ध चंदिया धौरखोह हनुमान मंदिर अपनी ख्याति व भव्यता के लिए जाना जाता है। मान्यता है कि हनुमानजी के इस मंदिर में मन्नत मांगने वाली महिलाओं की सूनी गोद भर जाती है। इन दिनों यहां मेले का आयोजन किया जा रहा है। इस दौरान जंगल के बीच स्थित इस मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। कलचुरी कॉलीन मंदिर में प्रतिवर्ष आषाढ़ माह के हर मंगलवार को धार्मिक आयोजन होते हैं। 

यहां सुबह से भजन कीर्तन, मुण्डन सहित अन्य धार्मिक कार्यकलाप दिनभर होते हैं। तीसरे मंगलवार को विशाल भण्डारे का प्रसाद वितरण गया। आखिरी मंगलवार और गुरुपूर्णिमा के संयोग के चलते भी जमकर लोग पहुंचे।
चंदिया से 13 किमी. दूर धौरखोह हनुमान मंदिर धमोखर बफर जोन की सीमा में आता है। 

इसलिए खास है यह मंदिर
आषाढ़ माह का मेला प्रदेश में गिने चुने स्थलों पर लगता है। लोगों की मान्यता है कि आदमकद रूप में हनुमान जी की प्रतिमा मध्यप्रदेश में एकलौती है। कलचुरी कालीन आठवीं शताब्दी से रीवा रियासत के काल से मेला व धार्मिक आयोजन होते चले आ रहे हैं। इसके अलावा लोग कहते हैं यहां नि:संतान महिलाएं अपनी मन्नत को लेकर पहुंचती हैं। मन्नत पूर्ण होने के बाद चढ़ावा व पूजा करने लोग दूर दूर से हाजिरी लगाने पहुंचते हैं।

बाघों के साये में मेला, अलर्ट वन अमला
धमोखर रेंज अंतर्गत धौरखोह, सलैया तथा अचला ताली गांव आते हैं। वन क्षेत्र होने के कारण यहां बाघों का मूवमेंट भी है। इसलिए वन अमला पहले से ही एलर्ट था। रेंजर व्हीएस श्रीवास्तव ने बताया हमने तकरीबन रास्ते के मेन मूवमेंट वाले एरिया में सुबह से अपनी टीम तैनात की थी। देर शाम तक हमारी टीम लगातार दर्शनार्थियों को सुरक्षित वापस भेजती रही। चूंकि बारिश का सीजन बाघ-बाघिन के मैटिंग वाला रहता है। इसलिए भी विशेष सतर्कता बरती गई।

दूर-दूर से पहुंचते हैं श्रद्धालु
आषाढ़ पूर्णिमासी के अवसर पर हर साल धौरखोह बजरंग मंदिर में मेला लगता है। मेले की खासियत ये है यहां आसपास 100 किमी. दूर से भी उनके भक्त आते हैं। मान्यता है कि सावन के पहले यहां पूजा पाठ से अच्छी बारिश होती है।
आसुतोष अग्रवाल, धर्मावलंबी

धौरखोह अचला का यह मंदिर अति प्राचीन है। अभी तक का इतिहास रहा है कि आषाढ़ माह में कितनी भी बरसात क्यूं न हो, हजारों लोग यहां हनुमान मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। खासकर कई महिलाओं की सूनी गोद संतान पाकर खुशियों से हरी भरी हो चुकी है।
दुखी लाल यादव, अध्यक्ष प्रबंध समिति

उमरिया का धौरखोह शहडोल के सोहागपुर, पुष्पराजगढ़, अमरकंटक ये हिन्दू धार्मिक स्थल रीवा रियासत काल से प्रसिद्ध रहे हैं। यहां 1800 सदी से मेला लग रहा है। तब से प्रतिवर्ष यहां धार्मिक अनुष्ठान व लोगों की श्रद्धा दिनों दिन बढ़ रही है।
जागेश्वर राय, प्रबुद्ध नागरिक

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