इस वेदशाला के बच्चे दूर हैं मोबाइल व टीवी से, 12 साल वेदों का अध्ययन कर तैयार होते हैं विद्वान

इस वेदशाला के बच्चे दूर हैं मोबाइल व टीवी से, 12 साल वेदों का अध्ययन कर तैयार होते हैं विद्वान

Anita Peddulwar
Update: 2019-12-13 08:02 GMT
इस वेदशाला के बच्चे दूर हैं मोबाइल व टीवी से, 12 साल वेदों का अध्ययन कर तैयार होते हैं विद्वान

डिजिटल डेस्क, नागपुर। डिजिटल युग में जहां बच्चे मोबाइल, टीवी से दूर नहीं रह पाते हैं, वही महल क्षेत्र स्थित भोसले वेदशाला में पढ़ने वाले बच्चे इन सभी से दूर हैं। यहां पिछले 150 वर्ष से वेद-वेदांत, शास्त्रों का अध्यापन कराने की परंपरा को अब भी जीवित रखा गया है। पैंट-शर्ट नहीं, धोती-कुर्ता पहनना यहां अनिवार्य है। यहां लगातार 12 साल तक वेदों का अध्ययन करने के बाद पंडित बनते हैं। यहां से शिक्षा ले चुके विद्वानों की मांग देश-विदेश में होने वाले धार्मिक आयोजनों में होती है।

1879 में रुक्मिणी मंदिर से शुरुआत 
वेद विद्या के प्रकांड पंडित वेदमूर्ति नानशास्त्री वझे ने 9 दिसंबर 1879 में महल के विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर में वेद की पढ़ाई की शुरुआत की। भट्टजी शास्त्री घाटे, वेदमूर्ति कृष्ण शास्त्री टोकेकर, बापूजी दातार, बाल शास्त्री घाटे, कृष्णा शास्त्री घुले, नारायण शास्त्री आर्वीकर, केशव शास्त्री ताम्हण, महापंडित मुरलीधर शास्त्री पाठक, वेदमूर्ति नाना शास्त्री मुले आदि विद्वान इसी संस्था से हैं। तात्या साहेब गुजर, धर्मवीर मुंजे, लोकनायक बापूजी अणे, माधवराव किनखेड़े, डी. लक्ष्मीनारायण वेद प्रेमियों ने संस्था को मदद की। 1930 में संस्था को संस्कृत महाविद्यालय का स्वरूप मिला। 

पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र  प्रसाद भी यहां आ चुके हैं
18 दिसंबर 1960 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की उपस्थिति में संस्था का शताब्दी महोत्सव मनाया गया। इस संदर्भ में संस्था में सेवा देने वाली स्मिता नंदनगिरि ने बताया कि, यहां विद्यार्थियों को वेदों का ज्ञान दिया जाता है। प्रारंभिक दौर में यहां पर चारों वेदों की पढ़ाई कराई जाती थी, लेकिन अब शिक्षकों की कमी के कारण शुक्ल यजुर्वेद पढ़ाया जाता है। विद्यार्थियों के रहने-भोजन की व्यवस्था भी संस्था की तरफ से की जाती है। 

पढ़ाई के लिए संस्कृत का ज्ञान होना जरूरी
ये पढ़ाई केवल दो या तीन महीने की न होकर एक तपस्या है। संस्कृत भाषा का ज्ञान होना आवश्यक है। भोसला वेदशाला के बच्चों की दिनचर्या सुबह 4 बजे शुरू हो जाती है। नित्यकर्म के बाद वे वेद अध्ययन करते हैं। उसके बाद नाश्ता और फिर वेद अध्ययन। इसके बाद दोपहर का खाना- शुद्ध सात्विक आहार दिया जाता है। दोपहर 2 से शाम 5 बजे वेद अध्ययन कराया जाता है। शाम को दो घंटे का समय विद्यार्थियों को खेलने के लिए दिया जाता है। शाम को जल्दी खाना खाकर विद्यार्थी सो जाते हैं।

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