Dada Saheb Phalke Death Anniversary: भारतीय सिनेमा के जन्मदाता, ये फिल्म थी लाइफ का टर्निंग पॉइंट

Dada Saheb Phalke Death Anniversary: भारतीय सिनेमा के जन्मदाता, ये फिल्म थी लाइफ का टर्निंग पॉइंट

Bhaskar Hindi
Update: 2019-02-16 04:49 GMT
Dada Saheb Phalke Death Anniversary: भारतीय सिनेमा के जन्मदाता, ये फिल्म थी लाइफ का टर्निंग पॉइंट

डिजिटल डेस्क, मुम्बई। हमारे देश में सिनेमा का ​इतिहास बहुत पुराना है। बच्चा, बड़ा हर कोई सिनेमा का दीवाना है। सिनेमा की शुरुआत भारतीय इतिहास में सबसे अनोखी है। इसकी नींव ""दादा साहब फाल्के"" ने रखी थी। वे ही सिनेमा के असली जन्मदाता हैं, इन्होंने ही लोगों को सिनेमा से अवगत करवाया। दादा साहब फाल्के का जन्म 30 अप्रैल 1870 को त्रयंबक महाराष्ट्र में हुआ था। साल 1913 में उन्होंने अपने कॅरियर की पहली फिल्म बनाई। जिसे मूक फिल्म की संज्ञा दी गई। यह राजा हरिशचंद्र की फुल लेंथ फीचर फिल्म ​थी। आज इस सिनेमा के जन्मदाता दादा साहब फाल्के ही पुण्यतिथि है। इस मौके पर जाने उनके बारे में खास बातें।

सिनेमा जगत के लिए दादा साहब फाल्के वन मेन आर्मी की तरह थे। वे जाने माने प्रोड्यूसर, डायरेक्टर व स्क्रीराइटर थे। दादा साहब ने अपने फिल्मी कॅरियर में 95 फिल्में और 27 शॉर्ट फिल्में बनाईं। शायद यह बहुत ही कम लोग जानते हैं कि दादा साहेब फाल्के का नाम ""धुंधिराज गोविन्द फाल्के" था। उनके जीवन का टर्निंग पाइंट ""लाइफ आफ क्रिस्ट"" थी। इस फिल्म के बाद उनके जहन में कई विचार आने लगे और उन्होंने अपनी पत्नी से कुछ पैसे उधार लेकर पहली मूक फिल्म ""राजा हरिशचंद्र"" बनाई। इस फिल्म का बजट आज की फिल्मों की तरह करोड़ों में नहीं बल्कि कुछ हजार रूपयों में था। इस​ फिल्म का टोटल बजट 15000 रुपये था। 

दादा साहब उन सिनेमा जगत के ऐसे डॉयरेक्टर प्रोड्यूसर थे, जिन्होंने महिलाओं को काम करने का मौका दिया। भस्मासुर और मोहिनी वे फिल्मी थे, जिसमें महिलाओं ने काम किया था। उनका नाम कमला और दुर्गा था। उनके जीवन की आखिरी ​मूक फिल्म "सेतुबंधन" थी। दादा साहब फालके ने 16 फरवरी 1944 को अपने जीवन की आखिरी सांसें ली और इस दुनिया को छोड़ कर ​चले गए। इस तरह एक फिल्मों के जन्मदाता का अंत हो गया। सिनेमा जगत में उनके इस योगदान के चलते ही भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में "दादा साहब फाल्के" अवार्ड की शुरुआत की गई। यह सिनेमा जगत का सर्वोच्च और प्रतिष्ठित पुरस्कार माना जाता है। फिल्मी जगत में इस पुरस्कार से सबसे पहले देविका रानी को नवाजा गया था। 

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