कमजोर वर्ग के बच्चों पर पड़ा कोरोना का सबसे ज्यादा प्रभाव

कमजोर वर्ग के बच्चों पर पड़ा कोरोना का सबसे ज्यादा प्रभाव

IANS News
Update: 2020-09-01 06:34 GMT
कमजोर वर्ग के बच्चों पर पड़ा कोरोना का सबसे ज्यादा प्रभाव
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  • कमजोर वर्ग के बच्चों पर पड़ा कोरोना का सबसे ज्यादा प्रभाव

नई दिल्ली, 31 अगस्त (आईएएनएस)। कोरोना का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ा है, उसके समाधान के लिए एक वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार जामिया विश्विद्यालय ने आयोजित किया। इस वेबीनार के माध्यम से बताया गया कि कैसे संसाधनों के अभाव में कमजोर वर्ग के बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं।

बेघर, प्रवासी और सड़कों पर रहने वाले बच्चों के सामने सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती होती है। यह हालात महामारी के दौरान कई गुना बढ़ गए।

जामिया विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट ऑफ सोशल वर्क और सेंटर फॉर अर्ली चाइल्डहुड डेवलपमेंट एंड रिसर्च ने संयुक्त रूप से इस राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया।

जामिया की कुलपति, प्रो नजमा अख्तर ने कहा, कोविड -19 के चलते राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बाद, दैनिक और प्रवासी मजदूरों को बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान हुआ। इसके अलावा, पोस्ट लॉकडाउन में ऑनलाइन शिक्षा शुरू हुई, लेकिन इसके लिए इन गरीब बच्चों के लिए कोई तैयारी नहीं थी, क्योंकि उनके पास स्मार्ट फोन और अन्य जरूरी गैजेट्स जैसे साधन नहीं थे। इससे बच्चे ऑनलाइन शिक्षा से वंचित रह गए।

प्रोफेसर अख्तर ने सरकार से ऐसे बच्चों के लिए जरूरी कदम उठाने की अहमियत पर जोर दिया। उन्होंने कहा, भारत में बच्चों की सबसे अधिक आबादी है, इसलिए उन पर ज्यादा ध्यान दिए जाने की जरूरत है।

यूनिसेफ के मुख्य संरक्षण विशेषज्ञ आफताब मोहम्मद ने केस स्टडी की मदद से प्रवासी बच्चों की असुरक्षा के हालात के बारे में बताया। उन्होंने कहा, बाल विवाह और तस्करी जैसे मुद्दे कानून और व्यवस्था की समस्या नहीं हैं, बल्कि ऐसी समस्याएं हैं जहां व्यवहार परिवर्तन की जरूरत होती है।

नेशनल थेमैटिक मैनेजर-बाल संरक्षण के प्रभात कुमार ने स्लम क्षेत्र में रहने वाले परिवारों की परेशानियों पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि आपदाओं में आने वाले कुछ दिशानिर्देश और नीतियां कैसे भेदभावपूर्ण हैं।

उदाहरण के लिए सोशल डिस्टेसिंग, घरेलू क्वारंटीन और स्वच्छता पर ध्यान दिया जाना, इस महामारी से बचने की महत्वपूर्ण चीजे हैं, लेकिन बेघर आबादी या स्लम क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए यह मुमकिन नहीं है।

-- आईएएनएस

जीसीबी/एएनएम

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