अगर मौसम में हुए बदलाव तो सबसे पहले खत्म होगा ये आइलैंड 

अगर मौसम में हुए बदलाव तो सबसे पहले खत्म होगा ये आइलैंड 

Bhaskar Hindi
Update: 2018-02-23 09:32 GMT
अगर मौसम में हुए बदलाव तो सबसे पहले खत्म होगा ये आइलैंड 

डिजिटल डेस्क,नई दिल्ली। काफी अरसे से ग्लोबल वार्मिंग से मौसम में आ रहे बदलाव और बढ़ते तापमान पर बात की जा रही है। कई डराने वाले सर्वे ये कहते हैं कि एक दिन हमारी ये प्यारी दुनिया खत्म हो जाएगी। इतना ही नहीं कुछ साल पहले कई वैज्ञानिकों ने ये तक कह दिया था कि साल 2012 इंसानी सभ्यता का आखिरी साल होगा। लेकिन हम तमाम दावों को झुठलाकर अभी तक इस पृथ्वी पर जी रहे हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हमारे ऊपर से खात्मे का खतरा टल गया हो। चलिए आपको बताते हैं कि अगर मौसम के बदलावों का असर धरती पर पड़ा तो सबसे पहले कौन सी जगह खत्म होगी। 

तो इस आइलैंड पर टूटेगा कुदरत का कहर  

 

किरिबाती द्वीप, आधिकारिक तौर पर किरिबाती गणराज्य, प्रशांत महासागर में स्थित एक द्वीप देश है। ये 35,00,000 वर्ग किलोमीटर में बिखरे 32 द्वीपों  और एक उठे हुए प्रवाल द्वीप से बना हुआ देश है। किरिबाती को स्थानीय जबान में "गिल्बेर्ट्स" कहा जाता है, जो मुख्य द्वीप श्रृंखला गिल्बर्ट द्वीप से ली गई है। किरिबाती  दुनिया का अकेला ऐसा देश है जो चारों हेमिस्फेयर (नॉर्थेर्न ,ईस्टर्न,सदर्न और वेस्टर्न) में पाया जाता है।  

 

इस वजह से खत्म हो जाएगा किरिबाती द्वीप 

 

जिस तरह ग्लोबल वार्मिंग तेजी से बढ़ रही है उससे बर्फ की परत तेजी से पिघलती जा रही है। इस वजह से समंदर का जल स्तर बढ़ते जा रहा है। इसके और ऊपर आने से किरिबाती द्वीप पूरी तरह से पानी में समा जाएगा। इस द्वीप की सतह बहुत नीची है और इसका असर अभी से देखने को मिल रहा है। किरबाती में बाढ़ और तूफान जैसी आपदाएं बढ़ती जा रही है। 

 

क्या है ग्लोबल वार्मिंग और क्या होगा इसका असर 

 

पृथ्वी के वातावरण के तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी "ग्लोबल वार्मिंग" कहलाती है। पृथ्वी को उष्मा सूर्य की किरणों से मिलती है। ये किरणें वायुमंडल से गुजरती हुईं धरती की सतह से टकराती हैं और फिर वहीं से परावर्तित होकर पुन: लौट जाती हैं। धरती का वायुमंडल कई गैसों से मिलकर बना है जिनमें कुछ ग्रीनहाउस गैसें भी शामिल हैं। इनमें से अधिकांश गैस धरती के ऊपर एक प्राकृतिक आवरण बना लेती है जो लौटती किरणों के एक हिस्से को रोक लेता है और इस प्रकार धरती का वातावरण गर्म बना रहता है। 

 

गौरतलब है कि इंसानों, प्राणियों और पौधों के जीवित रहने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेल्शियस तापमान जरूरी होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीनहाउस गैसों में बढ़ोतरी होने से ये आवरण और भी मोटा हो जाएगा। ऐसे में ये सूर्य की किरणों बड़े पैमाने पर रोकने लगेगा और फिर यहीं से शुरू हो जाएंगे ग्लोबल वार्मिंग के नुकसान। 

 

समंदर का जल स्तर 50% की रफ्तार से बढ़ रहा है। अगर हमने अब भी कठोर कदम नहीं उठाए तो नतीजा भयानक होगा। किरिबाती द्वीप का खत्म होना तो बस इस कयामत की शुरुआत होगी। 

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