प्लेन के उड़ते ही क्यों निकल आते हैं आंखों से आंसू? 

प्लेन के उड़ते ही क्यों निकल आते हैं आंखों से आंसू? 

Bhaskar Hindi
Update: 2018-06-14 04:40 GMT
प्लेन के उड़ते ही क्यों निकल आते हैं आंखों से आंसू? 

डिजिटल डेस्क । लोगों को कई तरह के फियर (डर) होते है। किसी को ऊंचाई का, किसी को पानी का, अंधेरे का तो किसी को कुत्तों का, वहीं कुछ लोग ऐसे भी जिन्हें ऐसे अंजाने डर होते हैं जो शायद किसी बच्चे को भी ना होते हो, लेकिन उस तरह के डर के लिए बच्चे ही बदनाम किए जाते हैं। जैसे भूत और हवाई जहाज। अक्सर ये समझा जाता है कि भूतों और हवाई जहाजों से डर लगता है। भूतों को लेकर तो केवल बातें हैं, लेकिन हवाई जहाजों में बच्चों को रोते देख कई लोग मान लेते है कि बच्चों को एरोप्लेन में डर लगता है। 
वास्तव में एरोप्लेन में बड़े भी खूब रोते हैं, लेकिन किसी को पता नहीं लगने देते। ऐसा हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि साइकोलॉजिस्ट का खुद मानना है कि प्लेन में लोगों के रोने के पीछे एक बड़ा कारण है। आइए उस कारण के बारे में जानते हैं।

 

 

साइकोलॉजिस्ट का मानना है कि वातावरण में बदलाव होने की वजह से कुछ लोग घबराने लगते हैं। इस घबराहट में उन्हें लगने लगता है कि वो इस दुनिया में काफी अकेले हैं या उन्हें कुछ हो जाएगा तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इसी घबराहट के बाद उनकी आंखों से आंसू की कुछ बूंदें गिरने लगती हैं। ऐसी घबराहट एयरपोर्ट के अंदर घुसने से ही शुरू होने लगती है, जिसके बाद दिमाग को कुछ खतरे के संकेत मिलने लगते हैं और आप भावुक हो जाते हैं।

 

 

कुछ साइकोलॉजिस्ट का मानना है कि प्लेन की ऊंचाई के कारण लोगों की भावनात्मक स्थिति में परिवर्तन होने लगता है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्ग्नाइजेशन के अनुसार प्लेन के केबिन में वायु का दवाब 6,000 से 8,000 फीट समुंद्री ऊंचाई पर होता है, जिसके बाद डिहाइड्रेशन की वजह से व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से प्रभावित होता है। ये डिहाइड्रेशन व्यक्ति के व्यवहार और दिमाग पर भी असर करता है।

 

 

इस संदर्भ में एक सर्वे भी किया गया है कि जिसमें पाया है कि जब व्यक्ति प्लेन में कोई फिल्म देखता है तो वो भावनात्मक रूप से कमजोर हो जाता है और रोने लगता है, लेकिन वही फिल्में अगर जमीन पर दिखाई जाएं तो उसे कोई भी भावनात्मक बदलाव नहीं होता। प्लेन में इस समस्या से बचने के लिए आप ऐसे कार्यों में दिमाग को व्यस्त रखें, जिसमें नकारात्मक चीजें सोचने का समय ना मिलें।

 

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