अंतरिक्ष मिशन: अंतरिक्ष में इसरो का बोलबाला, शून्य कक्षीय मलबा मिशन हुआ पूरा, मलबे और एक्सीडेंट से होगा बचाव

  • इसरो के हाथ लगी एक और सफलता
  • अंतरिक्ष में शून्य कक्षीय मलबा मिशन हुआ पूरा
  • स्पेस एजेंसी ने शेयर की जानकारी

Surbhit Singh
Update: 2024-03-26 14:38 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने पिछले साल अपने मून मिशन चंद्रयान 3 से दुनिया में इतिहास रच दिया था। इसके बाद से ही इसरो एक के बाद एक कई मिशन की झड़ी लगा दी है। दरअसल, भारत के सैटेलाइट पीएमसएलवी ने शून्य कक्षीय मलबा मिशन को भी सफलतापूर्व पूरा कर लिया है। ऐसे में भारत को एक और सफलता हाथ लगी है। इस मिशन के तहत भविष्य में होने वाली रॉकेट लान्चिंग के बाद उसके मलबे का अंतरिक्ष में बिखराव नहीं होगा। बता दें, लंबे समय से अंतरिक्ष में मलबे की समस्या चल रही थी। ऐसे में अब इसरो ने इस मिशन के साथ ही वैज्ञानिकों की सबसे बड़ी चुनौती को भी हल कर दिया है ।

इसरो ने दी जानकारी 

इस मिशन की जानकारी इसरो ने सोमवार को आधिकारिक रूप से साझा की। स्पेस एजेंसी के मुताबिक, इसरो के शून्य कक्षीय मलबा मिशन को ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) ने पूरा कर लिया है। इस उपलब्धि को इसरो ने 21 मार्च को पीएसएलवी ऑर्बिटल एक्सेरिमेंटल मॉड्यूल-3 (पीओईएम-3) ने पृथ्वी के वायुमंडस में प्रवेश करते हुए मिशन पूरा किया था। इसरो ने कहा, " पीएसएलवी-सी58/एक्सपोसैट मिशन ने व्यावहरिक रूप से कक्षा में शून्य मलबा छोड़ा है।"

मिशन का लक्ष्य

शून्य कक्षीय मलबा मिशन के बारे में इसरो का कहना है कि सैटेलाइट को उसकी कक्षा में स्थापित करने के बाद पीएसएलवी तीन हिस्सों में अलग हो जाती है। इस प्रक्रिया को पीओए-3 कहते है। सबसे पहले पीएसएलवी को 650 किलोमीटर की लंबी कक्षा में जाना होता है। फिर यहां से 350 किलोमीटर वाली कक्षा में प्रवेश करना होता है। इस मिशन में पीएसएलवी कम समय के अंदर कक्षा में पहुंच गया था। वहीं, इसके जरिए कक्षा बदलने के समय सैटेलाइट के दुर्घटनाग्रस्त होने से बचाव किया जाता है।

पीओईएम-3 कुल 9 अलग तरह के प्रायोगित पैलोड से लैस है। इसे वैज्ञानिक प्रयोग के तहत किया जाता है। इन पैलोड को लगाने में कम से कम एक महीने के समय लगता है। हालांकि, इनके निर्माण में काफी पैसा खर्च होता है। इस वजह से इसरो ने प्राइवेट संस्थानों की हिस्सेदारी बढ़ाने के मद्देनजर इस तरह का प्रयोग किए गए हैं। एनजीआई की ओर से 6 पैलोड को दिया गया है।

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