जान जोखिम में डालकर मनाया गाई-गोहरी उत्सव, लोगों ने शरीर के ऊपर से दौड़ाए पशु 

जान जोखिम में डालकर मनाया गाई-गोहरी उत्सव, लोगों ने शरीर के ऊपर से दौड़ाए पशु 

Bhaskar Hindi
Update: 2019-10-28 11:48 GMT
जान जोखिम में डालकर मनाया गाई-गोहरी उत्सव, लोगों ने शरीर के ऊपर से दौड़ाए पशु 

डिजिटल डेस्क, दाहोद। गुजरात के दाहोद में हर साल दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाने वाला गौ-गोहरी उत्सव इस बार भी वही पुरानी परंपरा के अनुसार मनाया गया। इसके तहत आदिवासी समुदाय के लोगों ने अपने शरीर के ऊपर से गाय और बेलों को दौड़ाया।

ज्ञात हो कि गुजरात के दाहोद जिले में रहने वाले आदिवासी हर साल दिवाली के दूसरे दिन “गाई गोहरी” त्योहार मनाते हैं। इस पारंपरिक अनुष्ठान को मनाने का इनका अलग ही तरीका है। त्योहार को मनाने के लिए ये लोग सड़क पर लेट जाते हैं और गायों-बैलों को अपने ऊपर दौड़ाते हैं।

 

भारत में गाय को मां के समान माना जाता है और पूजा की जाती है, लेकिन दाहोद के पास स्थित गरबदा गांव में मनाया जाने वाला वार्षिक उत्सव “गाई गोहरी” के जैसा शायद ही कोई हो। इस दिन को हिंदू नववर्ष के रूप में भी माना जाता है।

दिवाली के एक दिन बाद गांव का मुखिया एक पूजा का आयोजन करता है। देवता की पूजा करने के बाद सभी जानवरों को रंगा जाता है और मोर के पंखों से सजाया जाता है। गायों और बैलों के पांव में घंटियां बांधी जाती हैं। सेकड़ों सालों से चली आ रही इस परंपरा में जान जाने तक का जोखिम है। 

त्योहार वाले दिन सभी गायों और बैलों को सड़क पर दौड़ाया जाता है, जहां सभी श्रद्धालु लेटे होते हैं। इस खतरनाक परंपरा को निभाने का उद्देश्य अपने देवता के प्रति आभार प्रकट करना होता है, लेकिन कई बार इस तरह के आयोजन में लोगों ने अपनी जान भी गवा बैठते है।

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