कोरोना के चलते एसजीपीसी की स्थापना शताब्दी पर सामान्य कार्यक्रम

कोरोना के चलते एसजीपीसी की स्थापना शताब्दी पर सामान्य कार्यक्रम

IANS News
Update: 2020-11-15 16:00 GMT
कोरोना के चलते एसजीपीसी की स्थापना शताब्दी पर सामान्य कार्यक्रम
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नई दिल्ली, 15 नवंबर (आईएएनएस)। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी), जो सिख तीर्थस्थलों का प्रबंधन करती है और विभिन्न गुरुद्वारों में रोजाना सैकड़ों लोगों के लिए मुफ्त लंगर चलाती है, ने रविवार को अपनी स्थापना शताब्दी का उत्सव कोरोनोवायरस महामारी के चलते साधारण तरीके से मनाया।

शताब्दी मनाने का मुख्य कार्य यहां के दरबार साहिब में सिखों की सबसे बड़े मंच मंजी साहिब में अकाल तख्त पर आयोजित किया गया था।

एसजीपीसी का गठन 15 नवंबर, 1920 को किया गया था, और 1925 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा सिख गुरुद्वारा अधिनियम के तहत इसे अधिसूचित किया गया था।

इसके मौजूदा अध्यक्ष गोबिंद सिंह लोंगोवाल ने मीडिया को बताया कि एसजीपीसी के गौरवशाली इतिहास को वृत्तचित्रों और पुस्तकों के माध्यम से दिखाया जाएगा। उन्होंने कहा कि इसकी कार्यकारी समिति ने फैसला किया है कि ननकाना साहिब शहीदी सका के 100 साल अगले साल फरवरी में मनाए जाएंगे।

एसजीपीसी का गठन सिख धर्म को महंतों के नियंत्रण से हटाने के लिए किया गया था। इसके प्रमुख गुरुद्वारों में स्वर्ण मंदिर शामिल है।

अपने शुरुआती वर्षों में, एसजीपीसी ने अस्पृश्यता और जाति व्यवस्था के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी।

कराह प्रसाद देने और आश्रय घरों को बनाए रखने और गरीब और जरूरतमंद बच्चों के साथ-साथ छात्रों की मदद करने और अन्य सामाजिक गतिविधियों के अलावा, एसजीपीसी ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सिखों के लिए बड़े कदम उठाए, साथ ही 2015 में भूकंप से पीड़ित नेपाल में राहत सामग्री भी पहुंचाई।

कैश-रिच एसजीपीसी दुनिया का सबसे बड़ा सामुदायिक किचन चलाती है - जो कि हरमंदर साहिब में रोजाना 50 हजार और सप्ताहांत में 1 लाख लोगों को खाना खिलाती है।

स्वर्ण मंदिर के अलावा, एसजीपीसी आनंदपुर साहिब (जहां खालसा पंथ की स्थापना 13 अप्रैल, 1699 को दसवें सिख गुरु गुरु गोबिंद सिंह ने की थी), तख्त दमदम साहिब में तख्त केशगढ़ साहिब जैसे अन्य प्रसिद्ध सिख तीर्थस्थलों में लंगर चलाती है।

लंगर सेवा सिख धार्मिक लोकाचार का अहम हिस्सा है, जिसका मकसद धर्म, जाति, रंग या पंथ की परवाह किए बिना समाज में समानता पर जोर देना है। पूरी तरह से शाकाहारी लंगर सेवा गुरुद्वारों में लोगों द्वारा किए गए दान से चलती है।

एसकेपी/एसजीके

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