'हमने उनसे गोलियां मांगी थी, हमें मिले खाने के पैकेट'- जानिए करगिल जंग के हीरो दीपचंद की दास्तां

'हमने उनसे गोलियां मांगी थी, हमें मिले खाने के पैकेट'- जानिए करगिल जंग के हीरो दीपचंद की दास्तां

Bhaskar Hindi
Update: 2017-07-26 12:55 GMT
'हमने उनसे गोलियां मांगी थी, हमें मिले खाने के पैकेट'- जानिए करगिल जंग के हीरो दीपचंद की दास्तां

डिजिटल डेस्क, चंडीगढ़। दीपचंद के हाथों में ऊंगलियां नहीं है, उसके दोनों पैर भी नहीं है। वे आराम से बैठ नहीं सकते, क्योंकि एक हादसे में राजस्थान के इस बहादुर जवान ने बहुत खो दिया, लेकिन आज भी वो सही मायनों में एक सोल्जर है। वे कहते हैं, मैं फिर से अपने वतन की रक्षा के लिए सोल्जर के रूप में पैदा होना चाहता हूं।

दीपचंद प्रखायत हरियाणा में हिसार के पाबरा गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने 1889 लाइट रेजिमेंट में गनर के तौर पर सेना में नौकरी शुरू की। वे जम्मु-कश्मीर में आतंकियों से लड़ रहे थे, तभी उन्हें करगिल के मोर्चे पर भेज दिया गया। दीपचंद को 5 मई 1999 का वह दिन अभी भी याद है जब उन्होंने बटालिक सेक्टर में 120 mm मोटार के साथ पाकिस्तानी सैनिकों को पहाड़ की ऊंचाई पर बंकर में मौर्चा जमाए देखा। दीपचंद बताते हैं कि हमारे पास भारी हथियार और गोला-बारूद थे। हम बहादूरी से लड़े और लगातार फायरिंग करते हुए दुश्मनों को पीछे धकेला, लेकिन ऊंची पहाड़ी, चोटियों और खड़ी ढलान के कारण हमारी गोलियां जल्द खत्म हो गई।

दीपचंद के मुताबिक हम बेहद भूखे थे, लेकिन हमें गोलियों की जरूरत ज्यादा थी। मेरे और मेरे साथी जवानों ने हमें राशन पहुंचाने वाले से कहा कि वह हमें गोलियां लाकर दे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। वे कहते हैं कि दादा से सुना था कि 1947 और 1965 की जंग में भी आसमान से खाने के पैकेट गिराए जाते थे। करगिल में भी कुछ ऐंसा ही हो रहा था। हमारे पास आज जैंसे मोबाइल फोन नहीं थे, बाहरी दुनिया से हमारा संपर्क सिर्फ विविध भारती था। यह सब जानते हैं कि करगिल में ऑपरेशन विजय भारत ने 500 जवानों को खोकर आखिरकार जीत लिया और घुसपैठियों को खदेड़ दिया। दीपचंद करगिल के हीरोज में से एक बन चुके थे।

दो साल के बाद उनकी पोस्टिंग राजस्थान में हो गई। गोला बारूद के एक डिपो में तैनात दीपचंद के नजदीक अचानक एक दिन बम फट गया। इस हादसे में उनके हाथों की ऊंगलियां दोनों पैर और दाहिना हाथ काटने पड़े। 17 बॉटल खून चढ़ाने और 24 घंटे के बाद उन्हें जब होश आया तो हरियाणा में 100 मीटर रेस में भाग लेने वाला यह जवान अपने परिजनों की मदद का मोहताज़ हो गया, लेकिन बाद में उन्होंने न सिर्फ स्कूटर चलाना सीखा, बल्कि अब अपने रोज मर्रा के काम भी खुद ही करते हैं। 6 फुट के दीपचंद कहते हैं कि यह हादसा तो जंग के मैदान में भी हो सकता था, लेकिन मेरे लिए अपने वतन की सेवा से बेहतर और कोई काम नहीं। मैं चाहूंगा कि मैं एक बार फिर एक सैनिक के रूप में पैदा होऊं और देश के लिए अपनी जान दे दूं।

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