शिव के विषपान वाले शिवराज के बयान के खोजे जा रहे मायने
शिव के विषपान वाले शिवराज के बयान के खोजे जा रहे मायने
- शिव के विषपान वाले शिवराज के बयान के खोजे जा रहे मायने
भोपाल, 1 जुलाई (आईएएनएस)। मध्यप्रदेश में मंत्रिमंडल के दूसरे विस्तार की गर्माहट के बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस बयान के मायने खोजे जा रहे हैं कि मंथन से निकला विष शिव पी जाते हैं। उनके इस बयान पर तंज कसते हुए पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने कहा, हां, विष पीने की शुरुआत तो कल से ही होने लगेगी।
राज्य में तख्तापलट हुए तीन माह से ज्यादा हो गए हैं। इतनी लंबी अवधि में भी पूरा मंत्रिमंडल नहीं बन पाया। राज्य में कांग्रेस से बगावत करने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के सहयोग से बनी सरकार में उनके समर्थकों को समायोजित करना भाजपा की मजबूरी है। वहीं, भाजपा में भी दावेदारों की लंबी सूची है, इसी के चलते बीते दो माह से ज्यादा के समय से मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चाएं जोर पकड़े हुए है। अब तस्वीर साफ हुई है और गुरुवार को मंत्रिमंडल का विस्तार होना तय है।
मंत्रिमंडल विस्तार की चल रही तैयारी के बीच मुख्यमंत्री शिवराज का ऐसा बयान आया, जिसने सियासी हलकों में हलचल ला दी है। उनका कहना है कि मंथन से तो अमृत ही निकलता है, विष तो शिव पी जाते हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज के इस बयान को सियासी हालात से जोड़कर दिखा जा रहा है। कांग्रेस भी इस पर तंज कस रही है। पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ का कहना है, मंथन इतना लंबा हो गया कि अमृत तो निकला ही नहीं, सिर्फ विष ही विष निकला है। मंथन से निकले विष को तो अब रोज ही पीना पड़ेगा, क्योंकि अब तो कल से रोज मंथन करना पड़ेगा। अमृत के लिए तो अब तरसना ही तरसना पड़ेगा। इस विष का परिणाम तो अब हर हाल में भोगना पड़ेगा।
शिवराज चौथी बार मुख्यमंत्री बने हैं। इससे पहले, सत्ता की सारी ताकत और फैसले उनके हाथ में हुआ करते थे, मगर इस बार ऐसा नहीं है, क्योंकि भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं है और कांग्रेस छोड़कर आए बागियों के कारण ही उनकी सरकार बनी है। उन पर दूसरे दल से आए बागियों के साथ अपनों को भी संतुष्ट करने की जिम्मेदारी है। इतना ही नहीं, जो उनके कभी करीबी हुआ करते थे, वे भी अब आंखें दिखा रहे हैं। इसके अलावा, राष्ट्रीय नेतृत्व भी चौहान पर लगाम कसने में कोई हिचक नहीं दिखा रहा है।
बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों ने शिवराज को चारों तरफ से घेरे में लेने की कोशिश की है। इसका लाभ कई राजनेता भी उठाने में लगे हैं।
राजनीतिक के जानकार और शिवराज को करीब से जानने वालों का कहना है कि यह पहला मौका है, जब उन्होंने अपने मन की बात इस तरह व्यक्त किया है। इसका आशय साफ है कि चौहान अपने आपको असहज महसूस कर रहे हैं। अबकी बार उन्हें आजादी नहीं है, बल्कि मंत्रिमंडल में कई ऐसे सदस्यों को भी जगह देने को विवश हैं, जिन्हें वे नहीं चाहते। यानी शिवराज विवशताओं का विष पीने को विवश हैं।
ये स्थितियां कम से कम पार्टी के लिए अच्छा संदेश देने वाली नहीं हैं।
भाजपा सूत्रों की मानें तो पार्टी संगठन मंत्रिमंडल के दूसरे विस्तार में पुराने नेताओं को ज्यादा जगह देने के मूड में नहीं है। नए चेहरों को लाकर भाजपा राज्य में नई ऊर्जा के साथ सरकार चलाना चाहती है। साथ ही, मुख्यमंत्री को उतनी आजादी भी नहीं देना चाहती, जिससे कोई नेता संगठन से ऊपर निकल जाए।