क्या अपने फायदे के लिए 'पकौड़े पर सियासत' कर रही है बीजेपी?

क्या अपने फायदे के लिए 'पकौड़े पर सियासत' कर रही है बीजेपी?

Bhaskar Hindi
Update: 2018-02-06 06:07 GMT
क्या अपने फायदे के लिए 'पकौड़े पर सियासत' कर रही है बीजेपी?

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। नए साल की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में एंकर से सवालिया अंदाज में पूछा कि "अगर आपके ऑफिस के बाहर कोई पकौड़े बेच रहा है, तो आप उसे रोजगार कहेंगे या नहीं?" पीएम की इस बात के बाद "पकौड़े" पर सियासत शुरू हुई। कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने फिर ट्वीट कर कहा कि "अगर पकौड़े बेचना जॉब है, तो फिर भीख मांगना भी रोजगार है।" फिर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने राज्यसभा में दिए अपने पहले भाषण में भी "पकौड़े" का जिक्र करते हुए कहा कि "बेरोजगार होने से पकौड़े बेचना अच्छा है।" अमित शाह के इस बयान को सभी न्यूज चैनलों ने हेडलाइन बनाया और सोशल मीडिया पर भी इसको लेकर जमकर बहस हुई। अब सवाल ये उठ रहा है कि "पकौड़े" को रोजगार से जोड़ने पर बीजेपी को इसका सियासी फायदा मिलेगा या नहीं? लेकिन उससे पहले बात करते हैं कि अमित शाह ने पकौड़े पर बयान क्यों दिया?


अमित शाह ने क्यों किया "पकौड़े" का जिक्र? 

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह बीजेपी के "चाणक्य" माने जाते हैं और लोकसभा चुनावों के बाद से उनका कद लगातार बढ़ा है। अमित शाह के कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने पीएम मोदी के 15 लाख रुपए देने के वादे को सिर्फ "जुमला" करार दिया था। सोमवार को अमित शाह ने राज्यसभा में 70 मिनट का भाषण दिया। इसमें उन्होंने अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाने के साथ-साथ कांग्रेस पर भी हमला किया, लेकिन शाह के जिस बयान की हेडलाइन बनी, वो "पकौड़े" वाली बात की। अमित शाह ने कहा कि "पकौड़े बेचना कोई शर्म की बात नहीं है, लेकिन पकौड़े बेचने वालों की तुलना भिखारी से करना शर्मनाक है।" शाह ने कहा कि "बेरोजगार होने से अच्छा है कि युवा पकौड़े बेचकर पैसे कमाएं।" अमित शाह का ये बयान तमाम न्यूज चैनलों की हेडलाइन बना और जमकर बहस भी हुई। लेकिन माना जा रहा है कि शाह के इस बयान के पीछे कुछ न कुछ रणनीती जरूर होगी, क्योंकि शाह के मुंह से कोई बात यूंही नहीं निकलती।

 



"चाय वाले" की जगह अब "पकौड़े वाला"

"पकौड़े पर सियासत" शुरू होने के बाद विरोधियों ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री रोजगार जैसे मुद्दे को लेकर सीरियस नहीं है। सोशल मीडिया पर भी ऐसी ही बातें देखने को मिली और यूजर्स ने मजेदार कमेंट भी किए। इस बात को अमित शाह के इस बयान ने और हवा दे दी। लेकिन अगर शाह के बयान को राजनीतिक चश्मे से देखा जाए, तो पता चलता है कि बीजेपी "पकौड़े" के जरिए अपनी सियासत चमकाने की कोशिश कर रही है। पीएम मोदी ने जब पहली बार "पकौड़े वाले" का जिक्र किया था, तो शायद ही किसी ने सोचा होगा कि ये एक दिन रोजगार और गरीबी जैसे बड़े मुद्दों पर भी भारी पड़ जाएगा। बीजेपी ने अब "पकौड़े" को सिंबल बना दिया है और ऐसा सिंबल जिसके जरिए सियासत की जा रही है। जिस तरह से 2014 के लोकसभा चुनावों में "चाय वाले" को सिंबल बनाया गया था, ठीक उसी तरह से 2019 में "पकौड़े वाले" को सिंबल बनाया जा रहा है। इसके जरिए गरीब लोगों को और छोटे-मोटे धंधे लगाने वालों को टारगेट करने की कोशिश की जा रही है।

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"पकौड़े" पर सियासत करने की क्या जरूरत? 

पहले प्रधानमंत्री और फिर अमित शाह ने "पकौड़े" का जिक्र किया। जिस तरह से 2014 में लहर चलाई गई कि "एक चायवाला भी देश का प्रधानमंत्री बन सकता है।" उसी तरह से अब ये हवा फैलाई जा रही है कि "पकौड़े बेचने वाला भी बिजनेसमैन बन सकता है।" रोजगार को लेकर पीएम मोदी और बीजेपी नेताओं ने लोकसभा चुनावों के कैंपेन में बड़ी-बड़ी बातें कही हैं। बीजेपी ने सत्ता में आने के बाद हर साल 2 करोड़ रोजगार पैदा करने की बात कही थी, लेकिन असल में इसका 2% भी अब तक नहीं हो पाया है। ऐसे में अब बीजेपी नई कहानी गढ़ रही है और इस कहानी के जरिए गरीबी और बेरोजगारी जैसी गंभीर समस्या को "गौरव" में बदलने की कोशिश कर रही है। बातें फैलाई जा रही है कि देश में एक ऐसा प्रधानमंत्री है, जो गरीबों और मेहनतकश लोगों के दुख-दर्द को समझता है। खुद प्रधानमंत्री भी चुनावी रैलियां हों या अंतर्राष्ट्रीय मंच, खुदको "चाय वाला" बताने में हिचकते नहीं हैं, ताकि गरीबों से कनेक्शन बने रहे।

 



विरोधियों की बातों को अपमान से जोड़ना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुदको "चाय वाला" बताने में भी नहीं हिचकते, तो कभी "पकौड़े" बेचने वाले को भी रोजगारी व्यक्ति बता देते हैं। और अगर विरोधी उनके ऐसे किसी बयान का मजाक उड़ाते हैं, तो उसे तुरंत गरीबों के अपमान से जोड़ दिया जाता है। ये कोई आज की बात नहीं है। ये हमेशा देखने को मिलता रहा है। बीजेपी ने कुछ नया किया और विरोधियों ने उसका मजाक उड़ाया तो बीजेपी ने उसे सीधे "अपमान" करार दिया। इस बार भी यही हुआ। जब पीएम मोदी के पकौड़े वाले बयान पर कांग्रेस के नेता चिदंबरम ने मजाक उड़ाते हुए पूछा कि "अगर पकौड़े बेचना रोजगार है, तो भीख मांगना क्यों नहीं?" इसके बाद बीजेपी ने तुरंत अपनी प्रतिक्रिया देते हुए चिदंबरम के इस बयान को "गरीबों के अपमान" से जोड़ दिया। बीजेपी ने ट्विटर पर एक वीडियो शेयर करते हुए कहा है कि "कांग्रेस पार्टी ने गरीब और आकांक्षी भारतीयों का फिर से अपमान किया है। लाखों भारतीयों की आजीविका की तुलना भीख मांगने से करके कांग्रेस ने गरीबों का हमेशा की तरह अपमान किया है।" अगर इस वक्त किसी राज्य में चुनाव होते तो बेशक चिदंबरम का ये बयान कांग्रेस के लिए गले की हड्डी बन जाता। ठीक वैसे ही, जैसे गुजरात चुनावों में मणिशंकर अय्यर का बयान बना था।

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पकौड़े के जरिए गरीब वोटरों को साधने की कोशिश

अभी तक ऐसा होता रहा है कि शहरी मिडिल क्लास बीजेपी के वोटर रहे हैं और चुनावों में भी इसी तबके ने बीजेपी को सबसे ज्यादा वोट दिया है। लेकिन मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से पिछड़ों और दलितों में भी बीजेपी के वोटर बढ़े हैं और इसका असर पिछले साल हुए उत्तरप्रदेश चुनावों में देखने को मिला। अब हाल ही में मोदी सरकार का जो आखिरी फुल बजट पेश हुआ है, उसमें आम आदमी को कोई राहत नहीं दी गई। जिससे मिडिल क्लास में बीजेपी को लेकर नाराजगी है, लेकिन ये नाराजगी कब तक रहती है ये तो चुनावों में ही पता चलेगा। उससे पहले बीजेपी अपना गरीब वोट बैंक तैयार कर रही है और उसके लिए बजट में भी गरीबों का ध्यान रखा गया और अब "पकौड़े" के जरिए भी गरीब वोटरों को साधने की कोशिश की जा रही है। इस बात को माना जाए या न माना जाए, लेकिन पकौड़े वालों की बात करके बीजेपी ने गरीबों को अपनी तरफ खींचा तो है। 

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2019 की तैयारी में जुट गई है बीजेपी

2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं और उसकी तैयारी के लिए अभी से वोटबैंक तैयार करना जरूरी है। इसके लिए जहां कुछ बीजेपी नेता एक बार फिर से "राम मंदिर" मसले को हवा दे रहे हैं, तो कुछ "पकौड़े पर सियासत" करने में जुटे हुए हैं। जो कुछ नेता हैं, वो हिंदू वोटों की लामबंदी कर रहे हैं। बाकी के नेता आरोप-प्रत्यारोप और कांग्रेस को घेरने का काम कर रहे हैं। इस बात में कोई शक नहीं कि बीजेपी के पास हिंदू वोटरों की कमी है और मोदी "हिंदू हृदय सम्राट" माने जाते हैं। लिहाजा चुनावों में हिंदू वोटरों का बड़ा तबका बीजेपी को ही वोट देगा। फिर भी मोदी और अमित शाह की जोड़ी 2004 के लोकसभा चुनावों से सबक लेते हुए अपनी रणनीति बदल रही है। उस वक्त भी केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी और सभी लोग खुश थे। 2004 के चुनावों में अटल बिहारी वाजपेयी की जीत तय मानी जा रही थी, लेकिन जब नतीजे सामने आए तो कांग्रेस की सरकार बनी। लिहाजा अब मोदी और शाह मिलकर एक नई रणनीति तय कर रहे हैं, जिसके तहत गरीब वोटरों को साथ लाने की कोशिश की जा रही है। गरीबों के लिए नई-नई योजनाएं शुरू की जा रही हैं। इसके साथ ही अब बीजेपी खुद को मिडिल क्लास पार्टी की इमेज से बाहर निकल रही है और गरीबों की सरकार बन रही है, ताकि 2019 में इसका फायदा लिया जा सके। 

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