क्या गुजरात हार कर भी जीत जाएंगे राहुल गांधी? ये हैं 4 कारण 

क्या गुजरात हार कर भी जीत जाएंगे राहुल गांधी? ये हैं 4 कारण 

Bhaskar Hindi
Update: 2017-12-16 07:50 GMT
क्या गुजरात हार कर भी जीत जाएंगे राहुल गांधी? ये हैं 4 कारण 

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। गुजरात में विधानसभा चुनावों के लिए वोटिंग हो चुकी है और अब 18 दिसंबर का इंतजार हो रहा है। इस बार के गुजरात विधानसभा चुनाव में अच्छी टक्कर देखने को मिली। इसका एक कारण ये भी है कि BJP के लिए गुजरात चुनाव जहां साख की लड़ाई है, वहीं 22 सालों से सत्ता से बाहर चल रही कांग्रेस को वापसी की उम्मीद दिखी है। इसका दूसरा कारण है कि गुजरात चुनावों को 2019 के लोकसभा चुनावों के सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि जो भी पार्टी गुजरात में जीतेगी, 2019 में उसकी दावेदारी उतनी ही मजबूत रहेगी।

फिलहाल, फाइनल रिजल्ट से पहले आए एग्जिट पोल पर नजर डालें तो BJP 6वीं बार राज्य में अपनी सरकार बनाने जा रही है, वहीं कांग्रेस एक बार फिर से मात खाती दिखाई दे रही है। इन एग्जिट पोल्स ने सबको चौंका दिया। शुरुआत में जो लड़ाई बराबर की मानी जा रही थी, आखिरी तक वो एकतरफा हो गई। खैर, देखा जाए, तो गुजरात में कांग्रेस हार भी जाती है, तो उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं है, क्योंकि कांग्रेस यहां पर 22 सालों से बाहर ही रही है। मगर इन चुनावों से कांग्रेस पार्टी ने बहुत कुछ पा लिया। जैसे- कल तक जिस राहुल गांधी का लोग मजाक उड़ाया करते थे, अब उन्हें सीरियस लेने लगे हैं।

दूसरे फेस की वोटिंग से पहले भी राहुल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि "अगर कांग्रेस मुक्त भारत हो रहा है तो फिर प्रधानमंत्री अपनी रैलियों में कांग्रेस की बात क्यों करते हैं?" इससे साफ था कि इस बार मुकाबला काफी कड़ा रहा है। गुजरात में राहुल ने जिस तरह से रैलियां की हैं और भाषण दिए हैं। वो सब बता रहे हैं कि राहुल में कितना बदलाव हुआ है, इससे पार्टी को ही फायदा होना है। अब अगर कांग्रेस गुजरात में हार भी जाती है, तो भी जीत राहुल की ही होगी। आइए जानते हैं क्यों?..


राहुल से डर गई थी BJP

गुजरात चुनाव का प्रचार शुरू होने से पहले ही कांग्रेस ने और राहुल ने ऐसा माहौल बना दिया था, जिससे BJP घबरा गई थी। इलेक्शन कैंपेन की शुरुआत में सोशल मीडिया पर "विकास पगला गया है" ट्रेंड हुआ। ये सब कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम का ही किया था। इससे BJP इतनी घबराई कि उसे "मैं हूं विकास, मैं हूं गुजरात" जैसे नारे देने पड़े। इसके बाद भी "विकास पगला गया है" BJP के नारे से ज्यादा आगे रहा। राहुल ने भी अपनी रैलियों की शुरुआत में इस नारे का इस्तेमाल किया। इसका नतीजा ये रहा कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 34 रैलियां करनी पड़ी। एक राहुल के सामने BJP के 12 राज्यों के मुख्यमंत्री और दर्जनों केंद्रीय मंत्रियों को आना पड़ा। मोदी प्रधानमंत्री बनने से पहले गुजरात में 12 सालों तक मुख्यमंत्री रहे हैं और उन्होंने एक तरफा राज किया है। इसके बावजूद इस बार के चुनावों में BJP और मोदी को अपनी पूरी ताकत झोंकनी पड़ी, वो भी राहुल को हराने के लिए। ये वही राहुल गांधी जिन्हें कल तक BJP हल्के में लेती थी और बदलाव करने की सलाह देती थी, लेकिन इस बार के चुनावों में राहुल जिस अवतार में नजर आए। उससे साफ हो गया, कि राहुल अब मोदी को टक्कर दे सकते हैं।



राहुल ने खेला "सॉफ्ट हिंदुत्व" का कार्ड

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से देश में "हिंदुत्व" की राजनीति को बढ़ावा मिला। यही कारण है कि इस बार गुजरात में राहुल ने भी "सॉफ्ट हिंदुत्व" का कार्ड खेला। राहुल ने अपने गुजरात इलेक्शन कैंपेन की शुरुआत द्वारकाधीश मंदिर के दर्शन से की। 25 सितंबर को राहुल की नवसर्जन यात्रा द्वारकाधीश मंदिर से शुरू हुई थी। 12 दिसंबर को जब गुजरात चुनाव के प्रचार का आखिरी दिन था, तो उस दिन भी राहुल ने जगन्नाथ मंदिर के दर्शन किए। अपने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान राहुल ने 27 छोटे-बड़े मंदिरों में दर्शन किए। इसी बात से BJP घबरा गई, क्योंकि राहुल गांधी के मंदिर जाने से उसके हिंदू वोटों में सेंध पड़ने का खतरा BJP को हो गया था।

यही वजह थी कि बार-बार BJP और पीएम मोदी ने राहुल गांधी के मंदिर जाने पर हमला किया। खुद पीएम ने तो एक रैली में ये तक कह डाला कि "हमने अच्छे-अच्छों को मंदिर जाने की आदत डलवा दी।" इसके बाद भी राहुल गांधी इन आलोचनाओं को नजरअंदाज कर मंदिर जाते रहे और "सॉफ्ट हिंदुत्व" का कार्ड खेलते रहे। इसका नतीजा ये रहा कि जिस कांग्रेस पर बरसों तक "तुष्टीकरण की राजनीति" करने के आरोप लगे, उसमें बदलाव आ गया।



मुद्दों पर ही बात करते रहे राहुल

गुजरात विधानसभा चुनाव में इस बार मुद्दे कम ही देखने को मिले। चुनावों में मंदिर से शुरू हुई सियासत पाकिस्तान पर जाकर खत्म हुई। हालांकि इन बातों को सिर्फ BJP ने ही उठाया, लेकिन राहुल गांधी इसपर चुप ही रहे। राहुल ने अपनी रैलियों में विकास की बात की। गरीबी, महंगाई और आम आदमी से जुड़े मुद्दे उठाए। यहां तक कि उन्होंने शुरुआत में ही पार्टी नेताओं को कह दिया था, कि पीएम मोदी और BJP के खिलाफ किसी भी तरह की आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल न करें। इसके बाद भी जब मणिशंकर अय्यर ने पीएम मोदी को "नीच" कहा, तो राहुल ने बिना देरी किए उनसे माफी मांगने को कहा। इससे साफ हो गया कि अब पार्टी बदल चुकी है। अब पार्टी में वो नहीं होगा, जो अब तक होता आया है। साथ ही BJP भी राहुल के इस कदम से दंग रह गई, क्योंकि उसे भी नहीं पता था कि राहुल इतनी मैच्योरिटी के साथ इस बवाल को संभालेंगे।



मैच्योर लीडर बनकर उभरे राहुल

गुजरात चुनावों से किसी ने कुछ सीखा हो या न सीखा हो, लेकिन इससे राहुल ने बहुत कुछ सीखा। इस चुनाव में राहुल के पास अपने आप को एक बड़ा नेता या मैच्योर लीडर दिखाने का मौका था, जिसका फायदा उन्होंने बखूबी उठाया। शुरुआत में ही राहुल ने BJP विरोधियों को कांग्रेस में शामिल करना शुरू कर दिया। गुजरात आते ही राहुल ने सबसे पहले पाटीदार नेता हार्दिक पटेल से मुलाकात की। इसका नतीजा ये रहा कि हार्दिक पटेल ने गुजरात में कांग्रेस के लिए प्रचार किया। इसके बाद ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर को कांग्रेस में शामिल किया और अल्पेश को कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ाया। वहीं निर्दलीय चुनाव लड़ रहे दलित नेता जिग्नेश मेवाणी के खिलाफ कांग्रेस ने कोई कैंडिडेट नहीं उतारा। एक राज्य में जाकर सारे BJP विरोधियों को कांग्रेस में मिलाना साबित करता है कि ये वो राहुल नहीं है जो 6 महीने पहले था। बल्कि ये वो राहुल है, जिसे जनता देखना चाहती है। राहुल का इस तरह से उभरकर सामने आना BJP के लिए कड़ी चुनौती है, क्योंकि एक बात तो गुजरात चुनावों ने तय कर दी कि 2019 के लोकसभा चुनावों में राहुल BJP को कड़ी टक्कर देंगे। 

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