मुंशी प्रेमचंद जयंती: आठ साल की उम्र में छोड़ गई थी मां, तीखे स्वभाव वाली थी उनकी पत्नी

मुंशी प्रेमचंद जयंती: आठ साल की उम्र में छोड़ गई थी मां, तीखे स्वभाव वाली थी उनकी पत्नी

Bhaskar Hindi
Update: 2019-07-31 06:19 GMT
मुंशी प्रेमचंद जयंती: आठ साल की उम्र में छोड़ गई थी मां, तीखे स्वभाव वाली थी उनकी पत्नी
हाईलाइट
  • जन्म 31 जुलाई 1880 में वाराणसी के लमही गांव जन्मे थे मुंशी प्रेमचंद
  • हिंदी साहित्य के सबसे सर्वश्रेष्ठ कहानीकारों में से एक थे मुंशी प्रेमचंद

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जब भी ​किसी लेखक के बारे में बात होती है तो मुंशी प्रेमचंद का नाम सबसे पहले लिया जाता है। मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित्य के सबसे सर्वश्रेष्ठ कहानीकारों में से एक थे। उन्होंने हमेशा अपनी कहानियों से समाज में फैली रुढ़िवादिता को खत्म करने की कोशिश की है। उनका जन्म 31 जुलाई 1880 में वाराणसी के लमही गांव में हुआ था। आज उन्हीं सर्वश्रेष्ठ लेखक की जयंती है।

बचपन में हो गई थी शादी
मुंशी प्रेमचंद के बचपन का नाम धनपत राय था। जब आठ साल के थे तब उनके सर से मां का हाथ उठ गया था। महज 15 साल की उम्र में उनका विवाह हो गया था। हालांकि उस दौर में कम उम्र में विवाह होना आम बात थी। उनकी पत्नी के बारे में कहा जाता है कि वह उनसी बड़ी थी और देखने में बिल्कुल साधारण थी। साथ ही स्वभाव से झगड़लागू भी थी। 

अपने से बड़ी उम्र की लड़की से हुई थी शादी
प्रेमचंद ने अपनी वैवाहिक जीवन के बारे खुद लिखा था। उन्होंने लिखा था कि  "उम्र में वह मुझसे ज्यादा थी। जब मैंने उसकी सूरत देखी तो मेरा खून सूख गया। उसके साथ-साथ जबान की भी मीठी नहीं थी।" इतना ही नहीं इतनी कम उम्र में शादी होने की वजह से वे अपने पिता से भी नाराज थे। उन्होंने अपने पिता के लिए लिखा था कि "पिताजी ने जीवन के अंतिम सालों में एक ठोकर खाई और स्वयं तो गिरे ही, साथ में मुझे भी डुबो दिया। मेरी शादी बिना सोचे समझे कर डाली।"

आर्थिक तंगी का शिकार थे मुंशी
वहीं प्रेमचंद की शादी के बाद उनके पिता ने भी दूसरी शादी कर ली। प्रेमचंद की दूसरी मां उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती थी। एक पिता ही अपने बचे थे, लेकिन जल्द ही वे भी उनका साथ छोड़कर इस दुनिया को अलविदा कह गए। इसके बाद प्रेमचंद के सर पर मुसीबतों को पहाड़ टूट पड़ा। आर्थिक तंगी और घर की जिम्मेदारियों के बीच पत्नी भी साथ छोड़कर मायके चली गई। 

हरिशंकर परसाई ने किया था उनके हालातों का वर्णन
प्रेमचंद की आर्थिक स्थिति का जिक्र होते ही हरिशंकर परसाई अपनी लेख "प्रेमचंद के फटे जूते" में उनके जूतों को देखकर लिखते हैं, "दाहिने पांव का जूता ठीक है, मगर बाएं जूते में बड़ा छेद हो गया है, जिसमें से अंगुली बाहर निकल आई है" तो क्या प्रेमचंद इतने गरीब थे कि वो अपने लिए एक जूता भी नहीं खरीद सकते थे।

अंतिम वक्त में कोई नहीं था उनके साथ
बता दें प्रेमचंद के बेटे अमृत रॉय ने प्रेमचंद की जीवनी "कलम का सिपाही" में लिखा है कि उनकी अंतिम यात्रा में कुछ ही लोग थे। जब अर्थी जा रही थी, तो रास्ते में किसी ने पूछा, "कौन था?" साथ खड़े आदमी ने कहा "कोई मास्टर था, मर गया।" इससे पता चलता है कि प्रेमचंद का जीवन कैसा रहा होगा? क्या हम उनके साथ न्याय कर पाएं। सिर्फ प्रेमचंद ही नहीं हम किस भी साहित्यकार के साथ न्याय नहीं कर पाते। 

शोधार्थियों का कहना है
कई साहित्यकारों ने प्रेमचंद पर शोध किए हैं। एक शोधार्थी के अनुसार प्रेमचंद के पत्र, सर्विस बुक, बैंक पासबुक देखकर नहीं लगता कि वो गरीब थे। ये बात सही है कि प्रेमचंद के जीवन में संघर्ष था, अभाव था, लेकिन उन्हें वैसी गरीबी नहीं देखनी पड़ी जैसी उनके थोड़ा बाद आने वाले महाप्राण निराला ने अपने जीवन में झेली।

प्रेमचंद का बचपन अभाव में बीता, लेकिन बाद में उन्हें अच्छी सरकारी नौकरी मिली और उनका जीवन अच्छा चल रहा था। लेकिन सरकारी नौकरी के कारण उनके लेखन में बाधा आती थी। इस बीच महात्मा गांधी जी के आह्वान पर उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी। इसके बावजूद वो अनुवाद, संपादन और लेखन से पर्याप्त पैसे कमा लेते थे।

बेटी के लिए ली थी हीरे की लौंग
प्रेमचंद ने एक बार अपनी बेटी के लिए 135 रुपये की हीरे की लौंग खरीदी और अपनी पत्नी के लिए भी 750 रुपये के कान के फूल खरीदना चाह रहे थे। हालांकि, पत्नी ने मना कर दिया। यानी प्रेमचंद के पास खर्च करने के लिए रुपये थे। लेकिन ये बात भी सच है कि जब उन्हें बंबई की फिल्म कंपनी "अजन्ता सिनटोन" में काम करने के लिए जाना था, तो उनके पास बंबई जाने के लिए किराए के पैसे नहीं थे। उस समय उन पर बैंक का कुछ कर्ज भी था।

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