कर्नाटक विधानसभा चुनाव की तारीखों का हुआ ऐलान, जानिए कैसा है यहां का जातीय समीकरण, लिंगायत या वोक्कालिगा चुनाव में कौन सा समुदाय निभाता है निर्णायक भूमिका

कर्नाटक सियासत कर्नाटक विधानसभा चुनाव की तारीखों का हुआ ऐलान, जानिए कैसा है यहां का जातीय समीकरण, लिंगायत या वोक्कालिगा चुनाव में कौन सा समुदाय निभाता है निर्णायक भूमिका

Anchal Shridhar
Update: 2023-03-29 11:52 GMT
कर्नाटक विधानसभा चुनाव की तारीखों का हुआ ऐलान, जानिए कैसा है यहां का जातीय समीकरण, लिंगायत या वोक्कालिगा चुनाव में कौन सा समुदाय निभाता है निर्णायक भूमिका

डिजिटल डेस्क, बेंगलुरू। चुनाव आयोग ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। प्रदेश में 10 मई को मतदान होगा और 13 मई को नतीजे आएंगे। यू तों कर्नाटक में सीधा मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच है लेकिन जेडीएस भी पूरी ताकत के साथ मैदान में है। खैर कौन सी पार्टी राज्य की सत्ता पर काबिज होगी ये तो चुनाव के नतीजों से पता चल जाएगा। 

उत्तर भारत के कई राज्यों जैसे कर्नाटक में भी जातीय समीकरण चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आइए जानते हैं कैसा है यहां का जातीय समीकरण 

लिंगायत समुदाय सबसे बड़ा

2011 की जनसंख्या के मुताबिक, कर्नाटक की कुल जनसंख्या 6.11 करोड़ है जिसमें 84 फीसदी यानी 5.13 करोड़ हिंदू, 12.91 फीसदी मुस्लिम यानी 79 लाख हैं। इसके अलावा राज्य में ईसाईयों की संख्या 11 लाख यानी कुल आबादी का 1.37 फीसदी है। वहीं जैन जनसंख्या 4 लाख यानी 0.72 फीसदी है। 

कर्नाटक में लिंगायत समुदाय सबसे बड़ा है। इनकी जनसंख्या राज्य की कुल जनसंख्या की 17 फीसदी है। यह समुदाय राज्य की राजनीति की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अभी तक के चुनावी आंकड़ों पर नजर डालें तो यह समुदाय अब तक भाजपा के सपोर्ट में रहा है। इसका बड़ा कारण कर्नाटक भाजपा के बड़े नेता और प्रदेश के पूर्व सीएम येदियुरप्पा का इसी समुदाय से ताल्लुक रखना है। हालांकि राजनीतिक जानकारों के मुताबिक इस बार लिंगायत समुदाय इस बार बीजेपी से नाखुस है। जिसका फायदा इस बार कांग्रेस इस बार के चुनाव में लेना चाहती है। वह बीजेपी के इस परंपरागत वोट बैंक में सेंधमारी करने के लिए लगातार बीजेपी पर हमले कर रही है। वहीं बीजेपी को भरोसा है कि वो सारे गिले शिकवे दूर कर देगी और हर बार की लिंगायत समुदाय उसे ही सपोर्ट करेगा। 

वोक्कालिगा समुदाय भी निभाता है बड़ी भूमिका

कर्नाटक का दूसरा बड़ा समुदाय है वोक्कालिगा। राज्य में इस समुदाय की आबादी 12 फीसदी है। इस समुदाय पर बीजेपी और कांग्रेस से ज्यादा जेडीएस की पकड़ मानी जाती है। चुनावी जानकारों के मुताबिक पिछले चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो इस समुदाय का सबसे ज्यादा वोट जेडीएस को ही मिलता है। हालांकि बीजेपी इस बार जेडीएस के इस परंपरागत वोट बैंक को काटने की रणनीति पर काम कर रही है। टीपू सुल्तान पर बयानबाजी करना उसकी इसी रणनीति का हिस्सा है। 

एससी-एसटी मतदाता दिला सकते हैं जीत

कर्नाटक की राजनीति में एससी-एसटी समुदाय के मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनकी आबादी कुल मतदाताओं की आबादी का 24 फीसदी है। इसके अलावा राज्य में 51 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जो एससी-एसटी के लिए आरक्षित हैं। ऐसे में सभी राजनीतिक दलों की नजरें इस समुदाय पर हैं जिससे राज्य में आसानी से जीत हासिल की जा सके। अभी तक आंकड़ो पर नजर डालें तो इन दोनों ही समुदायों का वोट सभी दलों में बंट जाता है लेकिन कांग्रेस इन वोट का बड़ा हिस्सा हासिल करने में सफल हो जाती है। 

मुस्लिम समुदाय साबित हो सकता है गेम चेंजर

राज्य में मुस्लिम समुदाय की आबादी कुल आबादी का 16 फीसदी है। दक्षिण भारत के दूसरे सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला राज्य कर्नाटक है यहां के उत्तरी इलाका मुस्लिम बाहुल है। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक राज्य में मुस्लिम मतदाताओं का करीब 50 सीटों पर प्रभाव है ऐसे में वो चुनाव के परिणामों को काफी हद तक बदल सकते हैं। चुनाव के पुराने आंकड़ों पर नजर डालें तो मुस्लिम समुदाय का वोट जेडीएस और कांग्रेस के बीच बंट जाता है। 

कुरबा समुदाय पर कांग्रेस की पकड़

राज्य में कुरबा समुदाय की आबादी 7 फीसदी है। कांग्रेस के सीनियर लीडर और राज्य पूर्व सीएम सिद्धारमैया इसी समुदाय से आते हैं। जिस वजह से इस समुदाय पर अन्य दलों के मुकाबले कांग्रेस की पकड़ ज्यादा है। कर्नाटक की राजनीति में इस समुदाय का रसूख इसलिए है क्योंकि यह राज्य के हर भाग में फैले हैं। 

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