सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा

नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा

IANS News
Update: 2022-12-08 15:01 GMT
सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने गुरुवार को सांडों को वश में करने वाले खेल जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ की अनुमति देने वाले तमिलनाडु और महाराष्ट्र के कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ और जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सी.टी. रविकुमार ने फैसला सुरक्षित रखते हुए पक्षकारों से एक सप्ताह के भीतर लिखित दलीलों का सामूहिक संकलन दाखिल करने को कहा।

जल्लीकट्टू की अनुमति देने वाले राज्य के कानून का बचाव करते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष वरिष्ठ वकीलों की एक बैटरी ने तमिलनाडु सरकार का प्रतिनिधित्व किया। राज्य सरकार ने एक लिखित जवाब में कहा था कि जल्लीकट्टू केवल मनोरंजन का एक कार्य नहीं है, बल्कि महान ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मूल्य वाला कार्यक्रम है।

याचिकाकर्ताओं में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने इस तर्क का विरोध किया कि जल्लीकट्टू तमिल संस्कृति का हिस्सा है। लूथरा ने कहा कि केवल यह कहना कि यह एक संस्कृति है, इसलिए इसे जारी रखा जाना चाहिए, उचित नहीं है और यह मानते हुए कि यह एक संस्कृति है, क्या आज के समय में ऐसी संस्कृति को अनुमति दी जानी चाहिए?

मई 2014 में भारतीय पशु कल्याण बोर्ड बनाम ए. नागराजा मामले में शीर्ष अदालत की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने राज्य में जल्लीकट्टू आयोजनों के लिए सांडों के उपयोग और देशभर में बैलगाड़ी दौड़ पर प्रतिबंध लगा दिया था।

लूथरा ने कहा कि नागराज ने कहा था कि ये जानवर इस खेल के लिए अनुपयुक्त हैं और भले ही यह वर्षो तक जारी रहे, इसका मतलब यह नहीं है कि इसकी अनुमति मिलती रहनी चाहिए।

याचिकाकर्ताओं में से एक का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता के. वेणुगोपाल ने अदालत से इस पर गौर करने का आग्रह किया कि क्या इस तरह के आदिम खेल, जिसमें लंबी सींग वाले सांडों को लोगों द्वारा पकड़ा जाता है, क्या इसकी अनुमति दी जानी चाहिए? क्या आज की यह प्रथा हमें 2000 साल पहले नहीं ले जाती?

याचिकाकर्ताओं में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि जल्लीकट्टू खूनी खेल है। इस पर पीठ ने उनसे सवाल किया कि यह खूनी खेल कैसे है, क्योंकि लोग खाली हाथों से इसमें भाग लेते हैं।

दीवान ने कहा कि सामान्य अर्थो में खूनी खेल का मतलब जानवरों को चारा देकर उसके साथ क्रूरता करना है और यह अलग-अलग मौकों पर अलग-अलग तरीकों से हो सकता है।

जस्टिस रॉय ने आगे दीवान से पूछा कि सिर्फ इसलिए कि इस खेल में मौत हो सकती है, इसका मतलब यह नहीं है कि जल्लीकट्टू एक खून का खेल है और वहां के लोग जानवर को मारने नहीं जाते हैं और खून तो एक आकस्मिक चीज है, जो कभी भी हो सकता है।

जल्लीकट्टू की अनुमति देने के लिए केंद्रीय कानून, द प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स एक्ट, 1960 में तमिलनाडु द्वारा संशोधन किया गया था। एक याचिका में पशु अधिकार निकाय पेटा ने राज्य के उस कानून को चुनौती दी है, जिसने तमिलनाडु में सांडों को काबू करने के खेल की अनुमति दी थी।

 

(आईएएनएस)

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