नियमों की धज्जियां: खुलासा - सरकारी रेत नीति का उड़ रहा मखौल, सस्ती मिल रही है चोरी की रेत

खुलासा - सरकारी रेत नीति का उड़ रहा मखौल, सस्ती मिल रही है चोरी की रेत
  • आम जनता के साथ धोखा
  • आए दिन रेत के दाम कम होने के बजाय आसमान छूने लगे
  • रेत नीति का उड़ रहा मखौल

डिजिटल डेस्क, खापरखेड़ा। सरकार की गलत नीतियों के चलते आए दिन रेत के दाम कम होने के बजाय आसमान छूने लगे हैं। वहीं गलत नीतियों से अवैध रेत चोरी पर नकेल कसने के बजाय बढ़ावा मिल रहा है। जिसका खामियाजा सरकारी तिजोरी के अलावा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। शुरुआती दौर में नई रेत नीति के तहत सरकार ने 600 रुपए प्रति ब्रास रेत देने का दावा किया था। किंतु कुछ महीनों के भीतर ही उसमें बदलाव कर प्रति ब्रास डिपो के हिसाब से 1000 से 1200 रुपए किए गए। एक एवरेज के मुताबिक 1700 से 1800 रुपए बढ़ाए गए है। जिससे सरकारी रेत बदले चोरी के रेत सस्ते दामों में बाजारों में मिल रही है। जबकि सरकारी डिपो वालों को रेत बढ़ने से बुकिंग नहीं मिल रही है। वहीं सस्ती होने से लोग चोरी की रेत ले रहे हैं। जिसका सीधे असर सरकारी तिजोरी पर पड़ रहा है। बतौर उदाहरण 2021 में गोसेवाड़ी-रोहना के लिए एक घाट मालक को टेंडर ने स्टॉक परमिशन मिली थी। उसने रेकॉर्ड के हिसाब से साढ़े सात हजार ब्रास रेत स्टॉक की थी, किंतु नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के चलते रेत को राजस्व विभाग ने सारी रेत को जब्त किया था। जब्ती करने के पश्चात रेत की रखवाली करना या रेत को ठिकाने लगाना प्रशासन का जिम्मा होता है। बावजूद पिछले तीन वर्षों से स्टॉक लावारिस पड़ा है। क्षेत्र के कई रेत माफिया अपनी मनमर्जी से जप्त रेत स्टॉक से सरेआम करीब करोड रुपए की रेत की तस्करी कर रहे हैं। जिसकी प्रशासन को भनक तक नहीं। जबकि नियमानुसार क्षेत्र के कहीं से भी जब्त की गई रेत को निलामी कर बेचना होता है। अथवा समीप के रेत घाट में सम्मलित कर देना होता है। अभी भी वलनी घाट में करोड़ों रुपए की रेत लावारिस पड़ी है और रोजाना लाखों की रेत चोरी भी हो रही है। यही वजह है सरकारी रेत नीति को धता दिखाते हुए क्षेत्र में अवैध रेत चोरी का धंधा फल-फूल रहा है। जिसमे महकमे की भूमिका भी संदेह के घेरे में है।

आम जनता के साथ धोखा

एक ओर जहां जिला प्रशासन ने ऑनलाइन रेत बुकिंग का फंडा अपनाया है। जिसकी मिनटों खबर बड़े बिल्डरों को मिल जाती है और साठगांठ होने से ऑनलाइन रेत बुकिंग खोलने का निर्धारित समय सीमा का पहले ही पता चल जाता है जिसे अपने-अपने ग्रुप में सरक्यूलेट कर दिया जाता है। जिसके चलते रेत व्यवसाय से जुड़े लोग सेतु कार्यालयों से फटाफट रेत बुकिंग कर लेते है। जबकि आम जनता को पता चलने तक डिपो की बुकिंग समय सीमा खत्म हो जाती है। जिससे रेत आम जनता से पहुंच से दूर हो रही है। बार-बार सेतु के चक्कर लगाने के बावजूद खाली हाथ लौटना पड़ा रहा है। जिसके चलते आम जनता को समय पर रेत नही मिलने से चोरी की रेत ख़रीने के लिए जिला प्रशासन मजबूर कर रहा है। जबकि नई रेत नीति आम जनता तथा रेत चोरी पर अंकुश लगाने के लिए निर्धारित की गई थी। नतीजे आम लोगों के विरोध आ रहे है। रेत चोरी को अंकुश लगाने के बजाए चोरी को प्रोत्साहन मिल रहा है।

आशीष बड़गे, निवासी के मुताबिक पिछले एक वर्ष मेरे मकान का काम चल रहा है। अब रेत नहीं मिलने से रुका पड़ा है। रोज सेतु के चक्कर लगा रहा हूं, लेकिन बुकिंग ही नहीं हो पा रही। खुद का घर निर्माण नहीं होने से किराये के मकान में रहना मजबूरी बन गई। जिससे आर्थिक बजट बिगड़ने के साथ ही काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा।

उपभोक्ता नीलेश चंदेल ने बताया कि, मेरे घर का काम रेत के अभाव में बंद पड़ा है। सरकारी रेत मिल नहीं रही। जब भी सेतु जाओ बुकिंग बंद रहती है, कब खुलती कब बंद होती पता ही नहीं चलता। रेत उच्चे दामों में मिल रही बजट के बाहर हो रही है।

Created On :   4 March 2024 11:52 AM GMT

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