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7 माह की बच्ची ने निगला लॉकेट, 3 डॉक्टरों की टीम ने ऑपरेट कर लौटाईं सांसें
डिजिटल डेस्क छतरपुर । कहते है कि जब तक सांस है आस नहीं छोडऩा चाहिए, यह पंक्तियां उस सात माह की बच्ची प्रिया राजा के लिए सार्थक हैं, जिसने गुरुवार को सांस टूट जाने के बाद मौत को हराकर नई जिंदगी पा ली। मामला जिला अस्पताल का है, जहां महोबा उप्र से रैफर होकर सात माह की बच्ची प्रिया कानपुर और झांसी मेडीकल कालेज जाने के बजाय छतरपुर आई। उसने गलती से एक लॉकेट को निगल लिया था, जो श्वसन नली में गले के नीचे तक पहुंचकर फंस गया था। बच्ची की सांस टूटने लगी थी और बार-बार बेहोश भी हो रही थी। श्वसन नली में लॉकेट फंसने से तुरंत बच्ची का ऑपरेशन किया जाना था, मगर मेजर ऑपरेशन होने और जिला अस्पताल छतरपुर में सीमित संसाधन होने से यह ऑपरेशन असंभव प्रतीत हो रहा था। ओटी इंचार्ज नर्स ने अस्पताल के नाक, कान, गला रोग विशेषज्ञ डॉ. शरत चौरसिया को कॉल किया और बच्ची का एक्सरे कराया। डॉ चौरसिया ने अस्पताल पहुंचकर केस समझा और शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. श्वेता चौरसिया को बुलाया। दोनों डॉक्टरों ने मेजर ऑपरेशन की व्यवस्थाएं नहीं होने पर रिस्क लेकर सीमित संसाधनोंं में ही लॉकेट को श्वसन नली से निकालने का निर्णय लिया। तब दोनों डॉक्टरों ने डॉ. विनीत पटैरिया निश्चेतना विभाग का सहयोग लेकर आधे घंटे के प्रयास में गले के अंदर फंसे लॉकेट को निकाला। बिना चीरफाड़ किए तीनों डॉक्टरों ने असंभव प्रतीत हो रहे ऑपरेशन को संभव किया और एक जटिल ऑपरेशन को सीमित संसाधनों में ही सरल बना दिया।
गले में फंसा था सोने का लॉकेट
ऑपरेशन को लीड करने वाले डॉ. शरद चौरसिया ने बताया कि बच्ची की सांसें रुक रहीं थीं और उसका बच पाना नामुमकिन लग रहा था। मेडिकल कॉलेज तक पहुंचने की स्थिति में पेशेंट के न होने पर हमने ओटी में ही लॉकेट निकालने का निर्णय लिया। सभी साथी डॉक्टर्स की हैल्प से हमने इसे निकाल लिया। अब बच्ची पूरी तरह से स्वस्थ है। बच्ची के माता-पिता ने डॉक्टरों को बच्ची की जान बचाने के लिए धन्यवाद दिया। वहीं इस ऑपरेशन में डॉक्टर्स के अलावा ओटी स्टॉफ नर्स निर्मला पटैरिया, रामरती, नागेंद्र रैकवार एवं स्वीपर ममता शामिल रहे। डॉक्टरों के एक सामूहिक प्रयास ने एक बार फिर साबित कर दिया कि धरती पर भगवान अभी भी किसी न किसी रूप में मौजूद है।
Created On :   5 Jun 2020 3:30 PM IST