आवारा श्वानों का हमला, मासूम की दर्दनाक मौत

Attack of stray dogs, painful death of innocent
आवारा श्वानों का हमला, मासूम की दर्दनाक मौत
काटोल आवारा श्वानों का हमला, मासूम की दर्दनाक मौत

डिजिटल डेस्क, काटोल. शनिवार की सुबह 5.45 बजे के दौरान घर के समीप बगीचे में गए विराज राजेंद्र जयवार (4) पर आवारा श्वानों के झुंड ने हमला बोल दिया और नोंचकर लहूलुहान कर दिया। गंभीर रूप से घायल बालक की सरकारी अस्पताल ले जाने पर मौत हो गई। जानकारी के अनुसार, काटोल के धंतोली परिसर निवासी विराज जयवार शनिवार की सुबह अपनी चचेरी बहन के साथ घर के समीप बगीचे में गया था। गार्डन पहुंचने से पहले ही आवारा श्वानाें का झुंड विराज पर लपका। विराज के नीचे गिरते ही श्वानों ने उसे नोंचना शुरू कर दिया। बहन ने विराज के पिता राजेंद्र को घटना की जानकारी दी। राजेंद्र व अन्य परिजनों ने किसी तरह विराज को छुड़ाया और सरकारी अस्पताल ले गए। जहां प्राथमिक जांच के दौरान डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। हादसे की सूचना मिलते ही पूर्व सत्तापक्ष नेता चरणसिंह ठाकुर, पुलिस निरीक्षक महादेवराव आचरेकर, उपनिरीक्षक संतोष निंभोरकर, प्रभुदास दलाल, संदीप शेंडे, नप मुख्याधिकारी धनंजय बोरीकर और स्वास्थ्य विभाग के कर्मी मौके पर पहुंचे थे। 

उपाय बेहद जरूरी... गली-गली में दहशत शहर में 50 हजार से अधिक आवारा श्वान

उधर नागपुर की बात करें तो शहर में आवारा श्वानों के कारण लोग परेशान हैं। यहां आवारा श्वानों की संख्या 50 हजार से अधिक बताई जाती है। दरअसल, नियमित नसबंदी कार्यक्रम के अभाव में आवारा श्वानों की संख्या बढ़ रही है। जिले के काटोल में आवारा श्वान के झुंड ने एक 4 साल के बच्चे पर हमला कर उसे मार डाला। इस घटना से एक बार फिर आवारा श्वानों का मामला उठाया जाने लगा है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, शहर में 50 हजार से अधिक आवारा श्वान हैं। हर बस्ती, गली, चाैराहे पर आवारा श्वानों का झुंड नजर आता है। देर रात को काम से लौटने वालों के लिए रास्तों से गुजर पाना मुश्किल हो गया है। जानकार बताते हैं कि स्थानीय प्रशासन द्वारा नसबंदी करने के लिए नियमित कार्यक्रम नहीं चलाया जाता है। पहले किसी संस्था को यह जिम्मेदारी दी जाती है। दो-तीन साल बाद उनका ठेका खत्म होने पर नसबंदी अभियान रुक जाता है। कम से कम 5 से 10 साल तक बिना रुके नसबंदी अभियान चलाया जाना चाहिए। पिछले दो साल से कोरोना के कारण नसबंदी कार्यक्रम धीमा हो गया है। कोरोना से पहले हर रोज 30 से 40 आवारा श्वानों की नसबंदी की जाती थी। नसबंदी के बाद उन्हें उनके क्षेत्र में छोड़ा जाता था। इसलिए उन क्षेत्रों में आवारा श्वानों की संख्या घटी थी। नसबंदी अभियान बंद होने पर एक साल में ही जितनी नसबंदी नहीं हुई, उससे पांच गुना आवारा श्वान बढ़ जाते हैं, लेकिन प्रशासन गंभीर नहीं। हादसे बढ़ रहे हैं। आवारा श्वानों पर शिकंजा जरूरी है।

Created On :   12 Jun 2022 10:51 AM GMT

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