बसामन मामा गौवंश वन्य विहार के आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम (सफलता की कहानी)

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बसामन मामा गौवंश वन्य विहार के आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम (सफलता की कहानी)

डिजिटल डेस्क, रीवा। जिले के सेमरिया क्षेत्र में स्थापित बसामन मामा गौवंश वन्य विहार शनै:-शनै: आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हो रही है। प्रदेश के पूर्व मंत्री एवं रीवा विधायक श्री राजेन्द्र शुक्ल के सदप्रयासों से 35 एकड़ क्षेत्र में स्थापित यह गौवंश संरक्षण केन्द्र जहां एक ओर गाय के दूध एवं उसके गोबर व मूत्र से बनाये जाने वाले उत्पादों की विक्री से आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रही है वहीं दूसरी ओर आसपास के किसानों को जैविक खेती से जोड़ने के लिये प्रेरित कर उनके द्वारा उत्पादित फसल, सब्जी, फल आदि के विक्रय के लिये प्रयास किये जायेंगे। गौवंश वन्य विहार में 8 शेड का निर्माण हो रहा है यहां 8000 से अधिक गौवंश संरक्षित होंगे साथ ही 10 एकड़ क्षेत्र में चारागाह भी विकसित किया जा रहा है। सेमरिया विधानसभा क्षेत्र के विधायक के.पी. त्रिपाठी भी इस गौवंश वन्य विहार के विकास के लिये सतत प्रयासरत हैं। बसामन मामा गौवंश वन्य विहार में गाय के गोबर व मूत्र से आकर्षक धूप एवं मूर्ति बनाई गई जिसकी दीपावली त्योंहार में विक्री भी हुई। फार्म प्रोड¬ूसर कंपनी द्वारा आसपास के गांवों के 450 से अधिक महिला व पुरूषों को समूह से जोड़कर विभिन्न उत्पाद बनाने व जैविक खेती के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है। उप संचालक पशु चिकित्सा सेवाएं डॉ. राजेश मिश्रा बताते हैं कि गौ-संरक्षण केन्द्र से कम्पोस्ट बनाई जाने लगी है जो 5 रूपये प्रति किलो की दर से विक्री हेतु उपलब्ध है शीघ्र ही यह आनलाइन भी मिलेगी तथा घर भी पहुंचेगी। गौवंश वन्य विहार से जुड़े गांवों के लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के भी प्रयास जारी है। कलेक्टर एवं मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत के मार्गदर्शन में दुग्ध उत्पादन के लिये लगभग 100 डेयरी के प्रकरण बनाये गये हैं जिन्हें शीघ्र ही आचार्य विद्यासागर योजनान्तर्गत अनुदान मिलेगा तथा आसपास के क्षेत्र में दूध का उत्पादन बढ़ेगा। गांव के किसानों को जैविक खेती के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है ताकि इस क्षेत्र को आर्गेनिक हब के तौर पर पहचान मिल सके। स्वसहायता समूह की महिलाओं को अच्छी किस्म के दोना, पत्तल बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है ताकि इसका उपयोग अधिक से अधिक हो। रीवा शहर के मंदिरों में होने वाले आयोजनों में पत्तल, दोना के उपयोग हेतु जागरूक किये जाने के प्रयास भी किये जा रहे हैं। इसी क्रम में बसामन मामा से ककरेडी तक की महिलाओं को समूह से जोड़कर मुर्गी पालन के लिये चयनित किया जा रहा है जिससे उनकी आमदनी बढ़े एवं वह आत्मनिर्भर हो सकें।

Created On :   21 Nov 2020 10:33 AM GMT

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