समूहों को नहीं किया गया 47 हजार शर्ट सिलवाईं  का भुगतान - बच्चों को 1 साल बाद भी नहीं मिली ड्रेस

Groups were not paid 47 thousand shirts sewn - children did not get dress even after 1 year
 समूहों को नहीं किया गया 47 हजार शर्ट सिलवाईं  का भुगतान - बच्चों को 1 साल बाद भी नहीं मिली ड्रेस
 समूहों को नहीं किया गया 47 हजार शर्ट सिलवाईं  का भुगतान - बच्चों को 1 साल बाद भी नहीं मिली ड्रेस

डिजिटल डेस्क छतरपुर । राष्ट्रीय आजीविका मिशन में गड़बड़ी के एक के बाद एक मामले उजागर हो रहे हैं। अभी अगरबत्ती मशीनों की खरीदी में घोटाला और योजना के ठप होने का विवाद थम भी नहीं पाया है कि बजट होने के बावजूद स्व सहायता समूहों को शर्ट सिलवाने के बाद जान बूझकर भुगतान नहीं करने का मामला सामने आया है। मिशन ने स्व सहायता समूहों से बच्चों की स्कूल ड्रेस की 47 हजार शर्टों सिलवाई थीं। लगभग एक साल होने को है, लेकिन इन समूहों को भुगतान नहीं किया गया है। इस मामले में चूक यह हुई कि कपड़े की गुणवत्ता को जांचें बगैर ये शर्टें सिलने डाल दी गईं। लेकिन बुरहानपुर से आई लैब रिपोर्ट में कपड़े की कॉटन की मात्रा कम निकली। तब तक मिशन ने 47 हजार शर्टें सिलवा ली थीं। अब शर्ट के कपड़े के रिजेक्ट होने के बाद न तो समूहों को शर्ट सिलने का मेहनताना मिल सका है और राजनगर ब्लाक के जिन स्कूलों के 1920 बच्चों को ड्रेस उपलब्ध नहीं हो सकी, सीएम ऑन लाइन में शिकायत के बावजूद उन्हें निर्देशों के अनुसार नकद भुगतान नहीं किया जा रहा है।
कैसे लगा योजना को पलीता 
सरकार ने जिले में कार्यरत स्व सहायता समूहों को अपने पैरों पर खड़ा करने के उद्देश्य से पिछले साल जिले के तीन ब्लाकों लवकुशनगर, राजनगर एवं नौगांव ब्लाक के प्राइमारी स्कूलों के छात्र-छात्राओं को ड्रेस बनाकर वितरण का काम एनआरएलएम को सौंपा था। योजना के तहत स्व सहायता समूहों को कपड़ा दिया गया था। बाद में लगभग 1.18 लाख ड्रेस प्राइमरी के बच्चों को वितरित किया जाना था। छात्रों को जहां दो जोड़ी शर्ट एवं हाफ पेंट वितरण किया गया, वहीं छात्राओं को शर्ट, टयूनिक एवं लेगी यूनिफार्म के रूप में दी गई। लेकिन इस पूरी योजना में स्व सहायता समूहों (जिन्हें स्वाबलंबी बनाने के लिए कवायद हुई) को बजाय फायदा होने के नुकसान हो गया। दरअसल सप्लायर के शर्ट के कपड़े में कॉटन की मात्रा कम निकल गई। मिशन ने 16 अक्टूबर 2018 को कपड़ा जांच के लिए लैब को भेजा। लैब से रिपोर्ट 20 दिसंबर को आई। बड़ी चूक यह हुई कि बगैर लैब रिपोर्ट का इंतजार किए सप्लायर को 29 अक्टूबर को कपड़ा सप्लाई करने का आदेश थमा दिया गया। जब रिपोर्ट आई तो कपड़े में कॉटन की मात्रा 11 प्रतिशत कम निकली। इस पर एनआरएलएम में हड़कंप मच गया। तब तक सहायता समूहों ने 47 हजार शर्टें सिल दी थीं। आनन-फानन में इस बार इंदौर की फर्म से कपड़ा खरीदकर दोबारा शर्ट इन्हीं समूहों से सिलााई गई। लेकिन इस प्रक्रिया के दौरान समूहों को पुरानी शर्ट की सिलाई का भुगतान नहीं किया गया। लिहाजा ये समूह सभी 47 हजार शर्ट अपने पास रखे हैं, कि जब सिलाई मिलेगी, तभी हम शर्ट देंगे। अब एक साल होने को है, इन समूहों से एनआरएलएम ने दो बार शर्ट सिलवा ली हैं, लेकिन सिलाई एक बार की ही दी है। इससे उनमे काफी नाराजगी है।
 

Created On :   3 Oct 2019 1:35 PM IST

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