चैत्र नवरात्रि पर  कोरोना का साया, घर परे ही हुई पूजा - आज मॉ शैलपुत्री की पूजा 

Shadow of Corona on Chaitra Navratri, worshiped beyond home - worship of mother Shailputri today
चैत्र नवरात्रि पर  कोरोना का साया, घर परे ही हुई पूजा - आज मॉ शैलपुत्री की पूजा 
चैत्र नवरात्रि पर  कोरोना का साया, घर परे ही हुई पूजा - आज मॉ शैलपुत्री की पूजा 

डिजिटल डेस्क सीधी। कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर चैत्र नवरात्रि का उत्सव इस वर्ष कमजोर पड़ है।आज से शुरू हुए नवरात्रि को लेकर नामचीन देवी मंदिरों के पट बंद रे हैं तो घर के भीतर ही पूजा पाठ होने वाला है। घोघरा, लौआ देवी मंदिर, बटौली देवी मंदिर परिसर में धारा 144 लागू होने के कारण मेले का आयोजन नहीं होगा । 
सम्पूर्ण वर्ष में चैत्र, आषाढ़ अश्विन एवं माघ मास में नवरात्र पर्व मनाया जाता है। इन मासों के शुक्ल पक्ष के प्रथम नौ दिन दुर्गा आराधना के लिए प्रशस्त माने गये है जिन्हें नवरात्र कहा जाता है। चारो मासों में चैत्र एवं अश्विन नवरात्र मुख्य है, तथा अषाढ़ एवं माघ मास के नवरात्र गुप्त नवरात्र के नाम जाने जाते है। शास्त्र मतानुसार दोनों नवरात्रों में दुर्गा सप्तशती का पाठ महत्वपूर्ण होता है। नौ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूर्ण विधि-विधान से माता की आराधना -पूजा-अर्चना करने से साधक को नि: संदेह मनवांछित फल प्राप्त होता है। उक्ताशय की जानकारी देते हुए वास्तु एवं ज्योतिर्विद पं. मोहनलाल द्विवेदी ने बताया कि दुर्गा पूजन केश खोल कर न करें तथा पूजन में आक, मदार, दूर्वा, तुलसी एवं आंवले का प्रयोग न करे। घट् में तीन दुर्गा प्रतिमा न रखें।  माता को लाल सुगंधित पुष्प अर्पित करें, बेला, चमेली, केवड़ा, कदम, केशर, श्वेत कमल, पलाश,तगर, अशोक ,चम्पा, मौलसिरी, कनेर आदि अन्य रंगों के सुगंधित पुष्प भी माता को ग्राह है। पूजा के समय गीले वस्त्र धारण न करें तथा हांथ घुटने के अंदर रखे। पूजन के समय गले में वस्त्र न लपेटे तथा मंदिर की परिक्रमा सिर्फ एक बार करें। मॉ दुर्गा अपने पहले स्वरूप में शैलपुत्री के नाम से जानी जाती है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारंण इनका शैलपुत्री नाम पड़ा था। वृषभ स्थिता माता जी के दाहिने हांथ में त्रिशूल और बायें हांथ में कमल पुष्प सुशोभित है। यही नव दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है। सती नेे योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार यह शैलपुत्री नाम से विख्यात हुई। पार्वती, हैमवती भी उन्ही के नाम है। उपनिषद की एक कथा के अनुसार इन्होने हेमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व भंजन किया था। शैलपुत्री देवी  का विवाह भी शंकरजी से हुआ। पूर्व जन्म की भांति इस जन्म मे भी वह शिवजी की अद्र्धंगिनी बनी। नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियां अनन्त है। नवरात्र पूजन में प्रथम दिवस इन्ही की पूजा और उपासना की जाती है। इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र मे स्थित करते है। यही से उनकी योगसाधना का प्रारंभ होता है। 
चैत्र नवरात्र 25 मार्च से 2 अप्रैल तक    
पं. द्विवेदी के अनुसार साधना से शक्ति जाग्रत होती है। योग साधना, मंत्र साधना, उपासना साधना, ज्ञान साधना, शक्ति साधना एवं भक्ति साधना इत्यादि साधना के मार्ग है। मंत्र साधना के उपयोग हेतु नवरात्रि काल में उत्तम समय नही है। यही समय है कुछ पाने का, कुछ ग्रहण करने का एवं अपने आपको अध्यात्म में डुबोने का, ऐसा शुभ अवसर ईश्वर ने हमें प्रदान किया है चैत्र नवरात्रि के रूप में जो 25 मार्च बुधवार से 2 अप्रैल गुरूवार तक है। उत्सवधर्मिता सनातन धर्म का प्राण तत्व है और इसका शुभारम्भ भारतीय नव सम्वत्सर बुधवार से प्रारंभ होने के कारण राजा का पद बुध को प्राप्त हो गया। चैत्र शुक्ल पक्ष में किसी भी तिथि की क्षय या वृद्धि नही है अत: यह पक्ष 15 दिवसीय है एवं वास्तविक नवरात्रि पूर्ण नौ दिवस का है।  

Created On :   25 March 2020 8:56 AM GMT

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