तड़पता रहा आदिवासी युवक, लेकिन डॉक्टरों का दिल नहीं पसीजा, युवक की दर्दनाक मौत

Tribal youth was agonizing, but doctors did not lose heart, the young mans painful death
तड़पता रहा आदिवासी युवक, लेकिन डॉक्टरों का दिल नहीं पसीजा, युवक की दर्दनाक मौत
तड़पता रहा आदिवासी युवक, लेकिन डॉक्टरों का दिल नहीं पसीजा, युवक की दर्दनाक मौत


डिजिटल डेस्क छतरपुर। बेलगाम स्वास्थ्य व्यवस्था के चलते एक बार फिर एक परिवार का चिराग बुझ गया। जिला अस्पताल में किशनगढ़ से आए एक आदिवासी युवक को डॉक्टरों ने नहीं देखा। उसके भाई के डॉक्टरों से मिन्नते करने के बावजूद किसी का दिल नहीं पसीजा। परेशान भाई उसे उल्टा बिजावर ले गया। जहां उसकी मौत हो गई। आदिवासी बाहुल्य गांव किशनगढ़ में शुक्रवार की आधी रात को बसंत पिता   रामप्रसाद आदिवासी (उम्र 25 साल) को अचानक पेट दर्द होने के कारण परिजन सीएचसी केन्द्र किशनगढ़ लेकर पहुंचे। जहां डॉक्टर के नहीं होने पर नर्सों ने इलाज दिया, मगर हालत ज्यादा खराब होने पर नर्सों ने 108 पर सूचना दी। लेकिन 108 कॉल सेंटर ने गाड़ी व्यस्त होने की बात कहकर फोन काट दिया, तब शनिवार की सुबह 5 बजे बसंत का भाई धर्मदास अपने पड़ोसी की सहायता से उसे मोटर साइकिल से जिला अस्पताल लेकर आया और भर्ती कराया। मगर जिला अस्पताल में भी सुबह 7 बजे से दोपहर 12 बजे तक किसी भी डॉक्टर ने बसंत को नहीं देखा। नर्सों ने युवक को बॉटल और कुछ इंजेक्शन जरूर दिए, मगर बसंत लगातार तड़पता रहा और खून की उल्टियां करने लगा। तब बसंत का भाई अस्पताल स्टॉफ से इलाज के लिए मिन्नतें करता रहा। जब जिला अस्पताल प्रबंधन ने युवक की नहीं सुनी, तो बसंत को उसका भाई सीएचसी बिजावर ले गया। जहां के डॉक्टरों ने युवक को फिर जिला अस्पताल रैफर कर दिया। इसके बाद कुछ देर बाद बसंत ने दम तोड़ दिया।
अंत्येष्टि में शामिल नहीं हो सके माता-पिता
देश में कोरोना संक्रमण के चलते चल रहे लॉकडाउन के कारण आदिवासी युवक की अंत्येष्टि में उसके मात-पिता शामिल नहीं हो पाए। वे गुजरात में रहकर फैक्ट्री में काम करते हंै, जो अभी वहीं फंसे हुए हैं। मृतक के भाई धर्मदास का कहना है कि जिला अस्पताल किसी भी डॉक्टर ने मेरे भाई को नहीं देखा। अगर समय रहते डॉक्टर चाहते तो मेरे भाई की जान बच जाती। हम लोग अनपढ़ हैं, इस कारण किसी ने हम पर ध्यान नहीं दिया।      
भरा-पूरा परिवार छोड़ गया बसंत
किशनगढ़ का 25 वर्षीय बसंत आदिवासी अपने पीछे विकलांग माता-पिता के साथ अपने परिवार में 23 वर्षीय पत्नी गोरी बाई, 2 साल की बच्ची आशा व 4 माह के बेटे नारायण को रोता बिलखता छोड़ गया। बसंत भी मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण करता था।
युवक को वापस नहीं ले जाना था
 अस्पताल में इलाज न मिलने की आपके द्वारा सूचना दी गई है, हम इसकी जांच करवाते हैं। लेकिन मृतक के परिजनों को अस्पताल से युवक को वापस खराब स्थिति में लेकर नहीं जाना था।
- डॉ.आरएस त्रिपाठी, सिविल सर्जन, जिला अस्पताल

Created On :   19 April 2020 5:12 PM IST

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