खेद: गलत लोगों को पदों पर बिठाये जाने से शिक्षा व्यवस्था बिगड़ी

गलत लोगों को पदों पर बिठाये जाने से शिक्षा व्यवस्था बिगड़ी
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ राजन हर्षे ने कहा

डिजिटल डेस्क, पुणे। वर्तमान समय में शैक्षणिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों में नियुक्त पदों पर योग्यता को महत्व नहीं दिया जाता है। नियुक्ति करते वक्त गुणवत्ता की कदर नहीं की जा रही। किसी को भी किसी भी पद पर नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन अगर एक चींटी को एवरेस्ट पर रख दिया जाए तो वह हाथी नहीं बन जाएगी। संस्थानों में गलत लोगों की नियुक्तियों से शिक्षा व्यवस्था तबाह हो रही है, यह टिपण्णी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति, लेखक डाॅ. राजन हर्षे द्वारा शुक्रवार को पुणे में आयोजित एक समारोह में की गई।

साधना प्रकाशन एवं द्वारा प्रकाशित डाॅ. राजन हर्षे द्वारा लिखित पुस्तक 'पक्षी उन्हाचा-सत् विद्यावीतन अवतार' पर आज सुबह पुणे के महाराष्ट्र साहित्य परिषद में चर्चा हुई। इस मौके पर लेखक हर्षे, पूर्व कुलपति प्रो. पंडित विद्यासागर, साधना के संपादक विनोद शिरासाथ, संकल्प गुर्जर मौजूद रहे। संकल्प गुर्जर ने लेखक हर्षे और प्रो. विद्यासागर से किताब के बारे में चर्चा की।

डॉ हर्षे ने आगे कहा, कई जगहों पर प्रोफेसर अच्छे नहीं हैं, उनकी गुणवत्ता मामूली है। कुछ प्रोफेसर बहुत पागल होते हैं, केवल 2 प्रतिशत ही उज्जवल है। कुलपति को इन पागलों का ख्याल रखने का काम करना पड़ता है। आज कुलपतियों की गुणवत्ता में गिरावट आयी है। आवेदन मंगाकर कुलपति की नियुक्ति की जाती है। बिना योग्यता के उस पद पर नियुक्त कर दिया गया। यदि वास्तव में एक चींटी को एवरेस्ट पर रख दिया जाए तो क्या वह हाथी बन जाएगी? नहीं! हालाँकि ऐसे लोगों की वजह से शिक्षा व्यवस्था बदनाम हो रही है। विश्वविद्यालय को लक्ष्य-उन्मुख लोगों की आवश्यकता है न कि नेताओं के पीछे चलने वाले लोगों की।

प्रो विद्यासागर ने कहा, पुणे में व्यक्ति शिक्षण संस्थान के बाहर भी बहुत कुछ सीखता है। आज हम गुरु को 'गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वर:' कहते हैं। मगर गुरु तो आख़िर है तो इंसान ही, उन्हें अपने बच्चों को भावुक होकर शिक्षा नहीं देनी चाहिए। दरअसल इतिहास में कई गुरुओं ने ग़लत काम किये हैं। द्रोणाचार्य ने जो किया, ज्ञानेश्वर के गुरु ने भी उनकी बुराई की, लेकिन हम कभी इस पर चर्चा नहीं करते। व्यक्ति को वास्तविकता से अवगत होना चाहिए। विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में कार्य करते समय किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा,इस पर प्रो. विद्यासागर ने कहा, इंसान महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि वह क्या चाहता है यह देखना चाहिए। विश्वविद्यालय में कई छात्र संगठन हैं, जिनके पीछे कई समूह हैं। इसके पीछे का उद्देश्य देखना चाहिए।

विद्यासागर ने कहा, पहले विश्वविद्यालयों में आजादी थी, जो अब कम हो रही है। प्रशासन में लोग शिक्षा की बात करने लगे। जो कुछ नहीं जानता वह भी बोलता है। विश्वविद्यालयों के पास अब स्वायत्तता नहीं रही। सरकारी हस्तक्षेप बढ़ गया है, इसे कम करना चाहिए। सरकारी हस्तक्षेप भी इसलिए हो रहा है क्योंकि विश्वविद्यालय कुछ नहीं कर रहे, यह देखना भी महत्वपूर्ण हैं। शिक्षकों के पद नहीं भरे जा रहे हैं। 40 का स्टाफ घटकर 14 रह गया है, फिर यह कैसे काम करेगा? यह स्थिति भयावह है। यदि इसमें सुधार और शोध नहीं किया गया तो शिक्षा की गुणवत्ता कम हो जायेगी।

Created On :   22 Dec 2023 12:25 PM GMT

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