अनोखी परंपरा: यहां बेटा होता है पराया धन, पुरुषों को करने पड़ते हैं घरेलू काम
- भाई-बहन राजा-रानी
- छोटी बेटी ही बनती है परिवार की मुखिया
- बेटा तो है पराया धन
डिजिटल डेस्क, शिलांग, रघुनाथसिंह लोधी मेघालय की राजधानी शिलांग से नजदीक समिथ गांव। उत्सव की तैयारी चल रही थी। दो खूबसूरत किशोरियों के पीछे छाता लेकर चल रहा युवक। वाद्ययंत्रों के संगीत के साथ पूरा वातावरण खुशियो से भरा था। किशोरियां जहां से गुजरती, आसपास के लोगों के सिर पहले ही झुक जाते थे। सारा दृश्य मातृसत्तात्मक व्यवस्था की बुलंदी को बयां करने के लिए काफी था। खासी हिल्स क्षेत्र के समिथ गांव में खासी समुदाय अपनी परंपरा पर गर्व व्यक्त कर रहा था। जानकारी साझा करने का सिलसिला शुरु हुआ तो इस समुदाय की कई अनोखी खूबियां सामने आने लगी। परंपरा व सामाजिक मान्यता कुछ ऐसी कि यहां बेटा पराया धन कहलाता है। भाई-बहन राजा-रानी होते हैं। उसमें भी छोटी बेटी परिवार व कुनबे की मुखिया होती है। 40 वर्षीय अल्फेरिया स्वेर खासी समुदाय की विशेषता बताते हुए काफी मुग्ध नजर आते हैं। वे कहते हैं- यहां की खूबी, यहां पहुंचकर ही देखी जा सकती है।
समुदाय को लेकर ऐसी भी बातें छपी व कही सुनी गई है जिनका वास्तविकता के धरातल पर कोई अस्तित्व नही है। महिलाएं हर वो काम करती हैं, जो अमूमन विश्वभर में पुरुष करते हैं। यहां तक कि इस समुदाय के पुरुषों को विवाह के बाद पत्नी के साथ ससुराल में जाकर रहना पड़ता है। ससुराल में पुरुष घर का सारा काम करते हैं। बाहर के सारे कामों की जिम्मेदारी महिलाओं पर होती है। यहां के बाजार में दुकानों पर भी महिलाएं ही काम करती है। उपनाम और संपति मां से बेटी के नाम की जाती है। छोटी बेटी को पारिवारिक विरासत को सबसे अधिक हिस्सा मिलता है। उसी को माता-पिता , अविवाहित भाई-बहनों और संपति की देखभाल भी करनी पड़ती है। छोटी बेटी का खातडूह कहा जाता है। उसका घर हर रिश्तेदार के लिए खुला रहता है। इस समुदाय में लड़कियां बचपन में जानवरों के अंगों से खेलती हैं और उनका इस्तेमाल आभूषण के रुप में भी करती है।
महिलाएं अधिक शिक्षित
25 वर्षीय वानप्लिहुन वानशांग शिलांग में बैँक सेक्टर में काम करते हैं। खासी समुदाय की परपंरा काफी समृद्ध है। शिक्षा व रोजगार के क्षेत्र में यह समाज पीछे नहीं है। शिक्षा के मामले में महिलाएं पुरुषों से आगे है। अधिकतर किशोरियां पढ़ाई के लिए शिलांग जाती है। महिलाएं आत्मनिर्भर हैं। कब और किससे विवाह करना है, महिला ही तय करती है। आदिवासी समुदाय के आरक्षण का अनुशेष बढ़ने की शिकायत मिलती है। लेकिन खासी समुदाय आरक्षण का लाभ पाने के मामले में काफी सजग है। समिथ गांव के चौराहे पर जहां उत्सव चल रहा था वहीं वर्षो पुराना लकड़ी का महल है। उसका आधुनिकीकरण किया गया है। पास में ही एक अन्य आवास परिसर है। वानशांग बताते हैं-परिवार की मुखिया के तौर पर महिला का इतना सम्मान किया जाता है कि रानी के घर के पास कोई राजा बड़ा घर नहीं बना सकता है। अधिकार व रुतबे के लिहाज से देखा जाए तो रानी ही असल में राजा होती है। वह अपने भाई को सहायक के तौर पर राजा नियुक्त करती है। चूंकि रानी को राजा चुनने का अधिकार है इसलिए रानी अपने पुत्र को भी राजा चुनती है। परिणामत: प्रत्येक विरासत के राजा के तौर पर भांजा-भांजी का नाम सामने आता है। समिथ गांव का राजा पेशे से चिकित्सक है। एबीबीएस की डिग्री प्राप्त है। उनके बेटे ने भी उच्च शिक्षा पायी है। कुनबे व कबीले के सारे विवाद का निराकरण रानी-राजा करते हैं। यहां तक कि आपराधिक मामले पुलिस के पास पहुंच जाए तो भी न्याय के लिए पीड़ित को रानी-राजा के पास भेजा जाता है।
फसल अच्छी होने की कामना का उत्सव
समिथ गांव में जो उत्सव चल रहा था उसे नांगफ्रेम उत्सव कहा जाता है। महाराष्ट्र के पत्रकारों के दल के साथ उत्सव की जानकारी साझा कर रहे शिलांग दूरदर्शन के उपसंचालक सारंग पोपडे भी मराठी भाषी थे। पोपडे बताते हैं-नांगफ्रेम उत्सव नवंबर के पहले सप्ताह में मनाया जाता है। खेतों में फसल अच्छी होने की कामना के साथ मनाए जानेवाले इस उत्सव में लोकनृत्य के अलावा पशुओं की बलि का आयोजन किया जाता है। समिथ में किंग सियाम हीमा करीम के वंशज ने भी चर्चा की। गांव में पंचायतराज सी व्यवस्था के अलावा सभागृह, मनोरंजन गृह सहित शिक्षा केंद्र की उत्कृष्ट सुविधा है। दरबार हाल में विशेष रणनीतिक बैठक होती है।
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Created On :   17 Nov 2023 5:29 PM IST