विकास की बयार: पक्की सड़क ने शोहरत के शिखर पर पहुंचाया, सफाई की मिसाल बन गया है यह गांव

पक्की सड़क ने शोहरत के शिखर पर पहुंचाया, सफाई की मिसाल बन गया है यह गांव
  • एशिया के सबसे साफ सुथरे गांव मालिननांग की दास्तां
  • प्रत्येक नागरिक सफाई स्वयंसेवक

डिजिटल डेस्क, शिलांग/मालिननांग, रघुनाथसिंह लोधी। पक्की सड़कें विकास की राह पर ले जाती है। विकसित देशों में विकास की जगमगाहट मूलत: पक्की सड़कों की ही देन मानी जाती है। इस गांव की शोहरत की दास्तां भी पक्की सड़क से आरंभ होती है। जी हां, हम बात कर रहे हैं एशिया के सबसे साफ सुधरे गांव का दर्जा प्राप्त मालिननांग की। कभी देश दुनिया के नक्शे से गायब रहा यह गांव अब किसी पहचान का मोहताज नहीं रह गया है। खास बात है कि नामी होने के साथ ही इस गांव में रोजगार मानों चलकर आ रहा है। इस गांव को गार्डन आफ गॉड अथवा भगवान का बगीचा भी कहा जाता है।


नियमों का कड़ाई से पालन

मेघालय की राजधानी शिलांग से 70 किमी दूर मालिननांग पूर्वी खासी हिल्स जिले में आता है। 150 घरों के इस गांव की आबादी 500 से अधिक नहीं है। गांव में अधिकतर आदिवासी खासी समुदाय के नागरिक हैं। गांव को स्वच्छ रखने के लिए यहां नियम बने हैं। ग्रामीणों से कहा गया है कि वे पालतू पशुओं को बांधकर रखे। आवारा पशुओं को भी निर्धारित स्थानों पर रखा जाता है। सड़क पर किसी भी तरह की गंदगी वर्जित है। प्रत्येक घर में शौचालय है। कचरे को बांस के बाक्स में जमा किया जाता है। गांव के मुख्य चौराहे के पास कचरा रखने के लिए एक बड़ा बाक्स तैयार किया गया है। उसमें कचरा रिसायलिंग किया जाता है। इसके अलावा कचरे को शिलांग ले जाकर बेचा भी जाता है। गांव में थूकने पर पाबंदी है। कोई भी व्यक्ति वहां प्लास्टिक की बोतल या प्लास्टिक की अन्य सामग्री नहीं ले जा सकता है। नियमों का पालन नहीं करने पर जुर्माने का प्रावधान है।


प्रत्येक नागरिक सफाई स्वयंसेवक

गांव के सभी नागरिक सफाई स्वयंसेवक है। सुबह शाम 7 बजे से 9 बजे तक गांव की सफाई की जाती है। सफाई के लिए प्रतिदिन 6 महिलाएं नियुक्त रहती है। सप्ताह में एक दिन गांव के सभी घरों के सदस्य सफाई कार्य में योगदान देते हैं। वन होम वन पर्सन नियम के तहत प्रत्येक परिवार से एक सदस्य सफाई कार्य में शामिल होता है। गांव में शत प्रतिशत नागरिक शिक्षित हैं। खासी समुदाय में महिला प्रधान व्यवस्था है। लिहाजा इस गांव में कृषि से लेकर रोजगार के अन्य कार्यों का मुख्य जिम्मा महिलाएं संभालती है।

प्रधानमंत्री सड़क योजना ने बदली तस्वीर

ग्रामीण क्षेत्रों को विकास की धारा से जोड़ने के संकल्प के साथ वर्ष 2000 में प्रधानमंत्री सड़क योजना तैयार की गई। उस योजना के तहत 2003 में मालिननांग में पक्की सड़क बनी तो यह गांव दुनिया के नक्शे पर स्वच्छता की मिसाल बनकर उभर गया। गांव की सफाई की शुरुआत को लेकर अलग अलग जानकारियां दी जाती है। नागरिक बताते हैं-गांव में पहले हर मौसम में बीमारियां फैलती थी। बच्चे त्रस्त थे, स्कूली बच्चों की बीमारी से जानें गई। 1988 में गांव में महामारी फैली थी। तब एक स्कूल टीचर ने बीमारी से लड़ने का संकल्प लिया। स्वच्छता के लिए जागरुकता शुरु की। अभियान चलाने के लिए समिति का गठन किया गया। नियम बनाए गए। यह भी बताया जाता है कि खासी समुदाय के संस्कार में स्वच्छता शामिल है। 4 वर्ष की उम्र से ही बच्चों को स्वच्छता की सीख दी जाती है।

बढ़ा रोजगार

2003 में डिस्कवर इंडिया मैगजीन ने मालिननांग को एशिया के सबसे स्वच्छ गांव का दर्जा दिया। उसके बाद गांव में देश विदेश से पहुंचनेवाले पर्यटकों की संख्या बढ़ने लगी। इसे मिनी स्वीटजरलैंड भी कहा जाने लगा। भारत-बांग्लादेश सीमा के पास स्थित इस गांव में द स्काई व्यूह काफी खूबसूरत स्थान है। यहां बांस से बना 75 फीट ऊंचा टावर है। टावर से बांग्लादेश देख सकते हैं। गांव में आर्गनिक फल सब्जियां उपलब्ध है। यहां स्टे होम सुविधा है। पर्यटक 3 से 4 दिनों तक रुकते हैं। पर्यटकों की सेवा के एवज में नागरिकों को काफी आमदनी हो जाती है।


पीढ़ी सुधरे

गांव के मुखिया को हेडमैन कहा जाता है। हेडमैन खोंग हो रेम 20 वर्ष से यह दायित्व संभाल रहे हैं। वे 3 बार निर्विरोध जीते। हेडमैन रेम कहते हैं- स्वच्छता का संबंध शारीरिक, मानसिक व आर्थिक विकास से भी है। देश के प्रत्येक नागरिक स्वच्छता के नियमों को स्वयं पालन करें। मालिननांग के नागरिकों का प्रयास है कि नई पीढ़ी स्वच्छता मामले में सुधरे।


ग्राम समिति के सचिव 27 वर्षीय प्रेसीस कोडीयूपी ने बायो केमेस्ट्री में स्नातक की पढ़ाई की है। शिक्षा पर जोर देते हुए कोडीयूपी बताते हैँ कि गांव में 2 प्राथमिक व 1 माध्यमिक स्कूल है। कोई भी विद्यार्थी पढ़ाई न छोड़े इसका ध्यान रखा जाता है। गांव में सबसे अधिक शिक्षित पोस्टमास्टर है।

Created On :   6 Nov 2023 5:26 PM IST

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