Padmaavat Review: सारा खेल तो ख्वाहिशों का है, हिला कर रख देगा खिलजी का ‘सनकीपन’
फिल्म का नाम: पद्मावत
डायरेक्टर: संजय लीला भंसाली
स्टार कास्ट: दीपिका पादुकोण, रणवीर सिंह, शाहिद कपूर, अदिति राव हैदरी, रजा मुराद, जिम सर्भ, रजा मुराद, अनुप्रिया गोयंका
अवधि: 2 घंटा 43 मिनट
सर्टिफिकेट: U/A
रेटिंग: 4 स्टार
निर्देशक संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत रिलीज हो चुकी है। लगातार कई कंट्रोवर्सियल फिल्में देने के बाद एक बार फिर से भंसाली इतिहास आधारित इस फिल्म को लेकर पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुए और हो रहे हैं। भंसाली और उनकी पूरी टीम को जबरदस्त विरोध और धमकियों का सामना करना पड़ा। जिसके बाद किसी तरह फिल्म को रिलीज करने की अनुमति मिल पाई। नवंबर 2016 में फिल्म पद्मावती (अब पद्मावत) की शूटिंग शुरू हुई थी, तबसे लेकर अभी तक यह फिल्म इतिहास को लेकर विवादों में है। फिल्म की कहानी और दृश्यों को लेकर जिस तरह के विरोध हो रहे थे, उन पर कितना लगाम लग पाया यह तो आप खुद फिल्म देखने के बाद ही समझ पाएंगे। आइए रिव्यू के जरिए जानने की कोशिश करते हैं कि फिल्म कहां तक आलोचकों का मुंह बंद कर पाई।
कहानी
फिल्म की कहानी तेरहवीं शताब्दी से शुरू होती है जब खिलजी वंश का शासक जलालुद्दीन खिलजी (रजा मुराद) अफगानिस्तान में अपनी टुकड़ी के साथ बैठा हुआ दिल्ली को जीतने का प्लान बनाता रहता है। उसी समय उसका भतीजा अलाउद्दीन खिलजी (रणवीर सिंह) आता है और चाचा की बेटी मेहरूनिसा (अदिति राव हैदरी) के साथ निकाह कर लेता है। कुछ घटनाओं के बाद अपने चाचा को मारकर अलाउद्दीन दिल्ली का राजा बन जाता है। वहीं दूसरी तरफ मेवाड़ के राजा महारावल रतन सिंह (शाहिद कपूर) जब सिंघल देश जाते हैं तो वहां उनकी मुलाकात राजकुमारी पद्मिनी (दीपिका पादुकोण) से होती है। फिल्म में जलालुद्दीन खिलजी ने अपने दरबारियों के सामने गोश्त चबाते हुए बड़े ही आराम से कहता है कि सारा खेल तो ख्वाहिशों का है। कहानी भी इसी एक बात पर चलती है। इन्हीं ख्वाहिशों के चलते जलालुद्दीन को उसके भतीजे अलाउद्दीन ने मार डाला और इसी ख्वाहिश के चलते राजा रतन सिंह को मेवाड़ से सिंहल आना पड़ता है, क्यूंकि उनकी पत्नी को सिंहल के मोतियों का हार चाहिए था।
यहीं पर रतन सिंह की मुलाकात रानी पद्मिनी से होती है। सिंहल नरेश की बेटी को मेवाड़ ले जाने की ख्वाहिश रतन सिंह को उनसे शादी करने पर मजबूर कर देती है। ऐसी ही एक ख्वाहिश अलाउद्दीन की भी है, जो पूरी दुनिया जीतने की ख्वाहिश रखता है। वहीं राजा रतन सिंह राजपूताना आन, बान और शान को कतई खरोंच भी आने नहीं देना चाहता। राजपूताना सम्मान की सलामती उसकी ख्वाहिश है। इसी बीच कुछ कारणों से राज्य के पुरोहित राघव चेतन को देश निकाला कर दिया जाता है और वो गुस्से में दिल्ली जाकर अलाउद्दीन खिलजी को रानी पद्मावती के रूप का बखान करता है। बस इतना बखान काफी था खिलजी की ख्वाहिशों को जगाने के लिए, पुरोहित की बातों से प्रभावित होकर अलाउद्दीन, चित्तौड़ पर आक्रमण करने के लिए निकल पड़ता है। चित्तौड़ जाकर वो महारावल के साथ छल करके उन्हें बंदी बनाकर दिल्ली ले आता है और महाराजा को छोड़ने के एवज में एक बार महारानी पद्मावती को देखने की बात कहता है, इसके बाद कहानी में कई मोड़ आते हैं और अंतत: जीत राजपूतों के शौर्य और पराक्रम की होती है। फिल्म में महिलाओं के आत्मसम्मान की दास्तां को भी बयान किया गया है। फिल्म में राजपूत समाज और उसके पराक्रम को ही स्क्रीन पर दिखाने का प्रयास किया गया है। खिलजी को किसी हीरो के तौर पर नहीं दिखा गया, वह फिल्म में विलेन ही है।
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पटकथा और निर्देशन
संजय लीला भंसाली की फिल्म में विजुअल ट्रीट ही उनकी यूएसपी है। फिर चाहे युद्ध के सीक्वेंस हो या कोई भावनात्मक सीन, हर सीन को बखूबी से फिल्माना और उसे पिरो कर दर्शकों के सामने पेश करना उन्हें अच्छे से आता है। फिल्म का आर्ट वर्क कमाल का है और जो भी दृश्य आपकी आंखों के सामने आते हैं वो आंखों को सुखद अनुभव देते हैं। कहानी को संजय लीला भंसाली ने काफी दिलचस्प तरीके से पेश किया है। अलाउद्दीन खिलजी और महारानी पद्मिनी के बीच कोई भी ड्रीम सीक्वेंस फिल्म में नहीं दिखाया गया है। संजय लीला भंसाली ने इस फ़िल्म को बनाते वक्त अपनी सारी ताकत और अभी तक का अपना सारा अनुभव डाल दिया है। फिल्म का कैनवास बहुत बड़ा है, हर फ्रेम फिल्म का पेंटिंग सरीखा लगता है। सिनेमैटोग्राफी के लिहाज से फिल्म जबरदस्त है, ग्राफिक्स का अच्छा इस्तेमाल है और जैसा भंसाली की हर फिल्म में होता है कि बड़ा सेट, मंहगी साज-सज्जा वह सब कुछ है।
अभिनय और संगीत
रानी पद्मिनी के किरदार में दीपिका पादुकोण ने जबरदस्त अभिनय किया है, वहीँ शाहिद कपूर ने महाराजा रावल रतन सिंह के किरदार में एक अनुशासित राजा का किरदार अच्छे से निभाया। दीपिका और शाहिद दोनों ने ही अपने संवादों के साथ भी इंसाफ किया है। जैसा कि फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी का रोल है, रणवीर सिंह ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। लाजवाब अंदाज में रणवीर ने अपने किरदार के ऊपर काम किया है और वो फिल्म में नजर भी आता है। राजा मुराद ने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है। जलालुद्दीन की बेटी मेहरूनिसा के किरदार में अभिनेत्री अदिति राव हैदरी ने अच्छा काम किया है। वहीं मलिक काफूर के किरदार में अभिनेता जिम सर्भ दिखाई देते हैं। मलिक काफूर ने एक नपुंसक इंसान का किरदार निभाया है। जिसे खुद जलालुद्दीन ने तोहफे के तौर पर अलाउद्दीन खिलजी को दिया था और अलाउद्दीन के कहने पर काफूर किसी की भी जान ले सकता था। फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी और मलिक काफूर के समलैंगिक कनेक्शन को भी दर्शाने की हलकी सी कोशिश की गयी है। रानी नागमती, चित्तौड़ के राजा महारावल रतन सिंह की पहली पत्नी के किरदार में दिखीं, इस किरदार को अनुप्रिया गोइन्का ने बखूबी निभाया है। फिल्म का संगीत अच्छा है, घूमर, एक दिल एक जान और बाकी गीत फिल्म के स्क्रीनप्ले में सहायता करते हैं, लेकिन बैकग्राउंड स्कोर और युद्ध के दौरान के साउंड फिल्म को और भी रिच बनाते हैं।
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कमजोर कड़ियां
पहली बार संजय लीला भंसाली की फिल्म 3डी में दर्शाने की कोशिश की गई है, जिसकी क्वालिटी और बेहतर की जा सकती थी, हालांकि इतनी काट-छाट के बाद भी फिल्म काफी लंबी है। रणवीर सिंह किरदार में तो बखूबी जंचे हैं, लेकिन उनकी आवाज उतना प्रभाव नहीं छोड़ पाई।
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क्यों देखें
यह कहने की कोई जरूरत ही नहीं है कि फिल्म पद्मावत क्यों देखें, इस फिल्म पर विवाद ही इतना हो चुका है कि फिल्म देखने के शौकीन लोगों में उत्सुकता बनी हुई है, बाकी आप अगर स्टारकास्ट और निर्देशक की फिल्में देखने के शौकीन हैं तो फिल्म देखने जरूर जाए, या फिर आप इतिहास आधारित फिल्में देखना पसंद करते हैं तो फिल्म देखना तो बनता है।
Created On :   25 Jan 2018 3:59 PM IST