जज लोया केस : क्या वाकई केस छोड़ने के लिए वकीलों पर डाला जा रहा दबाव?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सीबीआई कोर्ट के स्पेशल जज बृजगोपाल लोया की संदिग्ध मौत पर सुनवाई हुई। इस दौरान पिटीशनर्स की तरफ से पेश हुए सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे और पल्लव सिसोदिया ने कोर्ट से कहा कि उनपर केस छोड़ने के लिए दबाव डाला जा रहा है। दवे ने कहा कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने जज लोया केस में पेश होने के कारण उन्हें "कारण बताओ" नोटिस जारी किया है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट जज लोया केस की जांच SIT से जांच कराने की मांग पर फाइल की गई पिटीशन पर सुनवाई कर रहा था। जज लोया की मौत 1 दिसंबर 2014 को हार्ट अटैक से संदिग्ध हालात में हो गई थी।
दवे और सिसोदिया किसकी तरफ से?
बता दें कि सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे इस केस में बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन की तरफ से पेश हुए हैं। एसोसिएशन ने बॉम्बे हाईकोर्ट में पिटीशन फाइल की थी, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया। वहीं पल्लव सिसोदिया महाराष्ट्र के जर्नलिस्ट बीएस लोन की तरफ से पेश हो रहे हैं।
दोनों जजों के बीच भी हुई बहस
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान दोनों एडवोकेट के बीच भी बहस देखने को मिली। सुनवाई के दौरान एडवोकेट पल्लव सिसोदिया ने कहा कि "श्रीमान दवे जी कह रहे हैं कि उनपर दबाव डाला जा रहा है, लेकिन उन्होंने खुद मीडिया में एक आर्टिकल लिखकर मामले से अलग होने के लिए मुझ पर दबाव डाला है।" इस पर जवाब देते हुए दुष्यंत दवे ने कहा कि "मैं अपने आर्टिकल पर कायम हूं। आप पहले बीजेपी प्रेसिडेंट अमित शाह की तरफ से पेश हो चुके हैं और अब इस मामले में जज लोया की मौत की जांच की मांग कर रहे हैं।" दवे ने आगे कहा कि "हम कितने दबाव में काम कर रहे हैं, इस बात की कोई कल्पना नहीं कर सकता। ये बेहद गंभीर मामला है। हम अपने हाथ पीछे बांधकर काम कर रहे हैं। चीजें वैसी नहीं है, जिस तरह से दिख रही हैं।"
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मामला बेहद गंभीर
एडवोकेट की तरफ से दबाव की बात कहे जाने पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि "ज्यूडिशियल फ्रेटरनिटी (न्यायिक बिरादरी) के एक सदस्य की मौत हुई है और हम इस मामले को बेहद गंभीरता से ले रहे हैं। कोर्ट रूम के बाहर चाहे जो कुछ भी कहा गया हो, लेकिन हम अपना काम करेंगे।" बेंच ने आगे कहा कि "हम आपको भरोसा दिलाते है कि कोई भी आपको मामले में दलील रखने से नहीं रोक सकता है। हमने पहले ही दिन कहा था कि ये गंभीर चिंता का विषय है। अगर किसी तरह का कोई शक है, तो हम देखेंगे कि क्या जांच की जरूरत है।"
किन लोगों ने फाइल की है पिटीशन?
जज लोया की मौत के मामले में कांग्रेस नेता तहसीन पूनावाला और महाराष्ट्र के पत्रकार बीएस लोन ने सुप्रीम कोर्ट में पीटीशन फाइल की थी, जो अभी पेंडिंग हैं। इसके बाद नेवी के पूर्व प्रमुख एल रामदास ने पिटीशन फाइल कर सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज और पूर्व पुलिस अधिकारियों की एक कमिटी बनाकर स्वतंत्र जांच कराने की मांग की थी। बता दें कि 12 जनवरी 2018 को 4 जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी, उसमें भी जज लोया की मौत के केस की सुनवाई पर सवाल उठाए गए थे।
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जज लोया की मौत पर शक क्यों?
जज लोया की मौत 1 दिसंबर 2014 को हुई थी। बताया गया था उनकी मौत हार्ट अटैक से हुई है, लेकिन उनकी मौत के एक साल बाद उनकी बहन ने मौत के हालात पर शक जाहिर किया था। जज लोया की बहन का ये भी कहना था कि उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का समय सुबह 6:15 बजे का है, जबकि उनके परिजनों को सुबह 5 बजे जज लोया की मौत की जानकारी दी गई थी। इसके साथ ही उनकी बहन ने ये भी कहा था कि उनकी मौत का कारण हार्ट अटैक को बताया गया है, लेकिन उनके कपड़ों पर खून के धब्बे लगे हुए थे। बता दें कि जज लोया सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस की सुनवाई कर रहे थे और उनकी मौत के तार भी सोहराबुद्दीन एनकाउंटर से जुड़े। हालांकि, हाल ही में जज लोया के बेटे अनुज लोया ने कहा था कि उनके पिता की मौत संदिग्ध नहीं है और वो जांच रिपोर्ट से संतुष्ट हैं।
क्या है सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस?
सीबीआई के मुताबिक, सोहराबुद्दी शेख और उसकी पत्नी कौसर बी को गुजरात के एंटी टेररिस्ट स्क्वॉड (एटीएस) ने उस वक्त अगवा कर लिया था, जब वो हैदराबाद से महाराष्ट्र के सांगली जा रहे थे। इसके बाद 26 नवंबर 2005 को सोहराबुद्दीन शेख का फर्जी एनकाउंटर कर उसकी हत्या कर दी गई। ये दावा किया गया कि सोहराबुद्दीन के पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के साथ संबंध थे। इसके एक साल बाद दिसंबर 2006 को पुलिस ने सोहराबुद्दीन एनकाउंटर के गवाह और उसके साथी तुलसीराम प्रजापति की भी कथित तौर पर हत्या कर दी थी। उस वक्त अमित शाह गुजरात के गृहमंत्री थे और इन दोनों एनकाउंटर में अमित शाह का नाम आया।
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अमित शाह को मिल चुकी है क्लीन चिट
सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को क्लीन चिट मिल चुकी है। दरअसल, इस केस को 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र की ट्रायल कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया। इसके बाद 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने सोहराबुद्दीन और तुलसीराम प्रजापति केस को एकसाथ जोड़ दिया। पहले इस केस की सुनवाई जज जेटी उत्पत कर रहे थे, लेकिन 2014 में उनका ट्रांसफर कर दिया गया और फिर केस की सुनवाई बीएच लोया ने की। सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के साथ-साथ राजस्थान के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया, राजस्थान के बिजनेसमैन विमन पाटनी, गुजरात पुलिस के पूर्व चीफ पीसी पांडे, एडीजीपी गीता जौहरी, गुजरात पुलिस के ऑफिसर अभय चुडास्मा और एनके अमीन को बरी किया जा चुका है। जबकि इस केस में अभी भी 23 आरोपियों के खिलाफ जांच चल रही है।
Created On :   20 Feb 2018 8:36 AM IST