दोषी नेताओं को पार्टी चीफ बनने से नहीं रोका जा सकता : केंद्र ने SC से कहा

Can not ban Convicted Persons from heading political party Centre tells Supreme Court
दोषी नेताओं को पार्टी चीफ बनने से नहीं रोका जा सकता : केंद्र ने SC से कहा
दोषी नेताओं को पार्टी चीफ बनने से नहीं रोका जा सकता : केंद्र ने SC से कहा

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि अगर किसी नेता के खिलाफ कोई क्रिमिनल केस दर्ज है, तो भी उसे पार्टी बनाने और पार्टी चीफ बनने से नहीं रोका जा सकता। सरकार ने दागी नेताओं के पार्टी चीफ बने रहने के खिलाफ फाइल की गई पिटीशन का भी विरोध किया। सरकार ने कहा कि क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले किसी भी व्यक्ति को पॉलिटिकल एक्टिविटी में शामिल होने से नहीं रोका जा सकता। साथ ही ये भी कहा कि कानून में संशोधन करने के लिए कोर्ट सरकार को बाध्य नहीं कर सकती। बता दें कि पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि अगर किसी नेता को क्रिमिनल केस में दोषी ठहराया गया है तो फिर वो किसी पॉलिटिकल पार्टी का चीफ कैसे बने रह सकता है?

सरकार ने क्या कहा? 

कानून और न्याय मंत्रालय की तरफ से फाइल किए गए एफिडेविट में कहा गया है कि दोषी नेताओं को पार्टी बनाने या पार्टी चीफ बनने से नहीं रोका जा सकता। सरकार ने कोर्ट से कहा कि मौजूदा कानून के तहत पॉलिटिकल पार्टियों के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया का पूरा सम्मान किया जाना चाहिए। हालांकि जनप्रतिनिधित्व एक्ट के तहत किसी दोषी व्यक्ति को संसद या विधानसभा चुनाव लड़ने से, किसी पार्टी का मेंबर बनने से या कोई पार्टी बनाने से नहीं रोका जा सकता। 

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रजिस्ट्रेशन भी कैंसिल नहीं कर सकते

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सरकार ने ये भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट संसद को इस मामले में कानून में संशोधन करने के लिए निर्देश जारी नहीं कर सकता। सरकार का ये भी कहना है कि इलेक्शन कमीशन के पास भी ये पॉवर नहीं है कि वो ऐसी किसी पार्टी का रजिस्ट्रेशन कैंसिल कर दे, जिसका अध्यक्ष दोषी साबित हो चुका है। सरकार की तरफ से दलील दी गई है कि चुनाव सुधार एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है। ऐसे में किसी भी संशोधन को लाने से पहले विधि आयोग की सिफारिश जरूरी है।

SC ने पूछा था- एक अपराधी पार्टी का चीफ कैसे? 

सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार से सवाल पूछते हुए कहा था कि "अगर किसी नेता को क्रिमिनल केस में दोषी ठहराया जा चुका है, तो फिर वो किसी पॉलिटिकल पार्टी का चीफ कैसे बने रह सकता है?" कोर्ट ने कहा कि "सजा पाने वाला खुद चुनाव नहीं लड़ सकता, लेकिन उसके पार्टी चीफ बने रहने या नई पार्टी बनाने पर कोई रोक नहीं है। एक अपराधी ये तय करता है कि चुनाव में कौन लोग खड़े होंगे। कानून में ये बड़ी कमी है।" चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने कहा कि "ऐसे लोग अगर स्कूल या कोई दूसरे ऑर्गनाइजेशन बनाते हैं, तो कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन वो एक पार्टी बना रहे हैं, जो सरकार चलाएगी।" चीफ जस्टिस ने कहा था कि "इस मामले में कोर्ट पहले ही फैसला दे चुका है कि चुनाव की शुद्धता के लिए राजनीति में भ्रष्टाचार का विरोध किया जाना चाहिए। क्योंकि करप्ट लोग ऐसे मामले में अकेले कुछ नहीं कर सकते, इसलिए अपने जैसे लोगों का एक संगठन बनाकर अपनी मंशा पूरी करते हैं।" कोर्ट ने कहा कि "अगर ऐसे लोग स्कूल या हॉस्पिटल चलाते हैं, तो कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन जब बात देश को चलाने की है तो मामला अलग हो जाता है।"

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अश्विनी उपाध्याय ने फाइल की है पिटीशन

दोषी नेताओं के पॉलिटिकल पार्टी चीफ बनने के खिलाफ एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने एक पिटीशन फाइल की थी। इस पिटीशन को इलेक्शन कमीशन की तरफ से काउंसलर अमित शर्मा ने भी समर्थन दिया है। इस पिटीशन में अश्विनी उपाध्याय ने कहा है कि "कुछ नेता जो क्रिमिनल केस में दोषी करार दिए जाते हैं, उन पर चुनाव लड़ने की पाबंदी है। इसके बावजूद ऐसे लोग पार्टी बना सकते हैं, पार्टी चला सकते हैं।" पिटीशन में कहा गया है कि "ओमप्रकाश चौटाला, शशिकला, लालू यादव जैसे नेता दोषी करार दिए गए हैं, लेकिन फिर भी पार्टी के सर्वेसर्वा बने हुए हैं।"

इलेक्शन कमीशन ने क्या कहा था? 

इस मामले में इलेक्शन कमीशन की तरफ से काउंसलर अमित शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि "1998 से ही EC इस बात की वकालत कर रहा है, लेकिन उसके पास किसी दोषी नेता के पॉलिटिकल पार्टी चलाने पर पाबंदी लगाने का अधिकार नहीं है।" उन्होंने आगे कहा था कि "अगर संसद में जनप्रतिनिधि कानून में बदलाव कर ऐसा प्रावधान किया जाता है, तो हम पूरी तरह से इसे लागू कराने की कोशिश करेंगे।" इलेक्शन कमीशन ने सुप्रीम कोर्ट में एक एफिडेविट फाइल कर कहा था कि "कमीशन पिछले करीब 20 सालों से केंद्र सरकार को लेटर लिखकर कह रहा है कि उसे पॉलिटिकल पार्टी का रजिस्ट्रेशन कैंसिल करने का भी अधिकार दिया जाए, लेकिन सरकार की तरफ से अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है।" EC का कहना था कि "जनप्रतिनिधि एक्ट के सेक्शन-29A मे उसे पॉलिटिकल पार्टी को रजिस्टर्ड करने का तो अधिकार है, लेकिन उस पार्टी का रजिस्ट्रेशन कैंसिल करने का अधिकार इलेक्शन कमीशन के पास नहीं है।" कमीशन ने कहा कि "कई पॉलिटिकल पार्टी ऐसी हैं, जिन्होंने रजिस्ट्रेशन तो करवा लिया है, लेकिन कभी चुनाव में हिस्सा नहीं लिया है। इस तरह की पार्टियां सिर्फ कागज पर हैं।" इलेक्शन कमीशन के मुताबिक, इस तरह की पार्टी बनाने का मकसद इनकम टैक्स एक्ट का फायदा उठाना भी हो सकता है।

Created On :   22 March 2018 2:08 AM GMT

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