राधेश्याम बारले बर्थडे स्पेशल छत्तीसगढ़ की नृत्य कला 'पंथी नृत्य' को दिलाई विदेश में पहचान, छोटी उम्र से शुरू किया नृत्य

राधेश्याम बारले बर्थडे स्पेशल छत्तीसगढ़ की नृत्य कला पंथी नृत्य को दिलाई विदेश में पहचान, छोटी उम्र से शुरू किया नृत्य
छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध पंथी नर्तक डॉ. राधेश्याम बारले गुरुवार को अपना 58वां जन्मदिन मना रहे हैं। उनका जन्म जिले की पाटन तहसील के खोला गांव में हुआ।

नई दिल्ली, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध पंथी नर्तक डॉ. राधेश्याम बारले गुरुवार को अपना 58वां जन्मदिन मना रहे हैं। उनका जन्म जिले की पाटन तहसील के खोला गांव में हुआ।

राधेश्याम बारले ने शुरुआती पढ़ाई गांव के ही प्राइमरी और सेकेंडरी विद्यालय से की, लेकिन उन्होंने आगे जाकर कला में रुचि को देखते हुए इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय से लोक संगीत में डिप्लोमा हासिल किया है। नर्तक सिर्फ कला की पढ़ाई तक ही सीमित नहीं रहे, उन्होंने एमबीबीएस की भी पढ़ाई की।

डॉ. राधेश्याम बारले ने अपनी कला के बलबूते पर पुरस्कार भी हासिल किए। राष्ट्रपति कोविंद ने 2021 में उन्हें पद्म श्री सम्मान से भी सम्मानित किया। इसके अलावा, उन्हें अलग-अलग पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। शुरुआती समय में डॉ. राधेश्याम बारले महिला का भेष धारण कर नृत्य करते थे और इसी कला ने उन्हें सबसे ज्यादा सम्मान दिलाया। आज अपनी इसी कला की वजह से न सिर्फ उन्होंने छत्तीसगढ़ और देश का नाम रोशन किया है, बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बनाई है। उनके नाम चार राष्ट्रपतियों के सामने नृत्य करने का रिकॉर्ड है, जिन्होंने राजीय कला को विदेशी मंच पर पेश किया।

डॉ. राधेश्याम बारले का जुड़ाव हमेशा से सांस्कृतिक कार्यक्रमों की तरफ रहा। उन्हें दूरदर्शन और आकाशवाणी पर भी सांस्कृतिक कार्यक्रमों में देखा गया। विदेशी मंच पर भी अपनी कला का प्रदर्शन करने से वो घबराते नहीं हैं। उन्होंने देश-विदेश में अपनी खास नृत्य शैली की भी ट्रेनिंग दी और अपनी संस्कृति को जिंदा रखा है।

बता दें कि पंथी नृत्य कला छत्तीसगढ़ की पारंपरिक नृत्य कला है जिसमें सतनाम पंथ के प्रवर्तक बाबा गुरु घासीदास के उपदेशों को गायन और नृत्य के जरिए पेश किया जाता है। इस नृत्य में मांदर की ताल और झांझ बजाया जाता है और नर्तक पैरों में घूंघरी बांधकर मांदर और झांझ की ताल पर नृत्य को धीरे-धीरे शुरू करते हैं, लेकिन आखिर तक आते-आते नृत्य बहुत तेज हो जाता है। इसके अलावा, नर्तक नृत्य के साथ-साथ बाबा गुरु घासीदास के उपदेशों को गाते भी हैं। ये कला बाबा गुरु घासीदास को समर्पित होती है और छत्तीसगढ़ और आदिवासी इलाकों में डॉ. राधेश्याम बारले की वजह से ही ये कला जिंदा है।

बता दें कि साल 2023 में डॉ. राधेश्याम बारले ने भाजपा का दामन थाम लिया। उसी समय चुनाव आयोग ने छत्तीसगढ़ के स्टेज आइकॉन डॉ. राधेश्याम बारले को चुना था।

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Created On :   8 Oct 2025 6:51 PM IST

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