पारंपरिक मिट्टी के दीयों की मांग में भारी उछाल, चीन के उत्पाद पीछे

प्रयागराज, 16 अक्टूबर (आईएएनएस)। दीपावली का त्योहार नजदीक आते ही पूरे भारत में राष्ट्रवाद और स्वदेशी उत्पादों के प्रति लोगों का समर्थन दिख रहा है। 'वोकल फॉर लोकल' और 'मेक इन इंडिया' के नारे अब सिर्फ राजनीतिक नारे नहीं, बल्कि ये पारंपरिक कारीगरों और स्वयं सहायता समूहों में नई जान फूंक रहे हैं। यही कारण है कि इस दीपावली लोगों की रुचि चीन के उत्पादों को नकारकर पारंपरिक मिट्टी के दियों की तरफ ज्यादा दिख रही है।
महिलाओं के नेतृत्व वाले स्वयं सहायता समूह प्रयागराज को हस्तनिर्मित मोमबत्तियों से रोशन कर रहे हैं। स्थानीय बाजारों में भी इसी तरह का रुझान देखने को मिल रहा है। वोकल फॉर लोकल के संदेश ने न केवल खरीदारी के रुझान को प्रभावित किया है, बल्कि महिलाओं द्वारा संचालित कई स्वयं सहायता समूहों को भी सशक्त बनाया है।
ये महिलाएं हस्तनिर्मित मोम के दीपक और सजावटी मोमबत्तियां बना रही हैं, जिनकी मांग इतनी अधिक है कि उन्हें इसे पूरा करने में काफी मुश्किल हो रही है। स्वयं सहायता समूह की एक सदस्य ने आईएएनएस को बताया, "हम दिन-रात मोमबत्तियां बना रहे हैं, लेकिन मांग बहुत अधिक है। यह पहली बार है जब हमारे उत्पादों को मशीन से बने या आयातित उत्पादों पर तरजीह दी जा रही है।"
इस प्रोत्साहन की बदौलत, ये महिलाएं न केवल त्योहारों के उत्सव में योगदान दे रही हैं, बल्कि अपनी आर्थिक आजादी को भी मजबूत कर रही हैं। स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने पर सरकार के जोर के ठोस नतीजे दिख रहे हैं। पारंपरिक मिट्टी के दीयों की लोकप्रियता में वापसी और स्थानीय महिलाओं के लघु उद्योग की अग्रदूत बनने के साथ, यह दिवाली हजारों भारतीय परिवारों के लिए और भी ज्यादा रोशन हो रही है।
वाराणसी के सुद्धिपुर गांव में, 2,500 से अधिक कुम्हार (कुम्हार) पारंपरिक मिट्टी के दीयों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अथक परिश्रम कर रहे हैं। वर्षों की उपेक्षा और सस्ते चीनी एलईडी लाइटों के प्रकोप के बाद, इन कारीगरों के दिन आखिरकार सुधर रहे हैं।
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Created On :   16 Oct 2025 11:48 PM IST