कुलभूषण खरबंदा सिनेमा की पांच पीढ़ियां पार करने वाला अभिनेता, जिसने हर दौर में खलनायकी को नया रूप दिया

कुलभूषण खरबंदा सिनेमा की पांच पीढ़ियां पार करने वाला अभिनेता, जिसने हर दौर में खलनायकी को नया रूप दिया
एक्टर कुलभूषण खरबंदा ने बॉलीवुड में फिल्म 'शान' में शाकाल के किरदार से दर्शकों के दिल में जगह पहचान बनाई थी। 1980 में रिलीज हुई इस फिल्म में उन्होंने एक निजी द्वीप पर रहने वाले खलनायक का चरित्र निभाया था। यह किरदार सीधे जेम्स बॉन्ड के खलनायक 'ब्लोफेल्ड' से प्रेरित था और कुलभूषण खरबंदा ने इसके लिए अपना पूरा लुक बदल डाला था। उनकी यह भूमिका व्यावसायिक सिनेमा में इतनी धमाकेदार थी कि इसने खलनायकों की पूरी परिभाषा ही बदल दी।

नई दिल्ली, 20 अक्टूबर (आईएएनएस)। एक्टर कुलभूषण खरबंदा ने बॉलीवुड में फिल्म 'शान' में शाकाल के किरदार से दर्शकों के दिल में जगह पहचान बनाई थी। 1980 में रिलीज हुई इस फिल्म में उन्होंने एक निजी द्वीप पर रहने वाले खलनायक का चरित्र निभाया था। यह किरदार सीधे जेम्स बॉन्ड के खलनायक 'ब्लोफेल्ड' से प्रेरित था और कुलभूषण खरबंदा ने इसके लिए अपना पूरा लुक बदल डाला था। उनकी यह भूमिका व्यावसायिक सिनेमा में इतनी धमाकेदार थी कि इसने खलनायकों की पूरी परिभाषा ही बदल दी।

करीब 38 साल बाद कुलभूषण खरबंदा वेबसीरीज 'मिर्जापुर' के सयाने मुखिया 'बाऊजी' के रूप में सामने आए, जो सत्ता की भूख और नैतिक क्षय से भरे हैं। यह दो विपरीत ध्रुवों के बीच की उनकी यात्रा ही सबसे रोचक है।

1974 में शुरू हुई कुलभूषण खरबंदा की यात्रा पांच दशकों से भी ज्यादा लंबी है, जो दिल्ली के कठोर रंगमंच से लेकर श्याम बेनेगल के 'समानांतर सिनेमा' की सूक्ष्मता, रमेश सिप्पी की व्यावसायिक मसाला फिल्मों की चमक और आज के डिजिटल युग के ओटीटी ड्रामा की वास्तविकता तक फैली हुई है।

खरबंदा की सबसे बड़ी शक्ति उनकी असीमित बहुमुखी प्रतिभा है। वह एक ही समय में एक 'आर्ट फिल्म' के किसान और एक 'ब्लॉकबस्टर' के स्टाइलिश खलनायक का किरदार निभा सकते थे। उनकी इसी थिएटर जनित अनुशासन ने उन्हें एक 'अभिनेताओं के अभिनेता' के रूप में स्थापित किया, जिसने उन्हें बॉलीवुड के नायक-खलनायक के पारंपरिक खांचों से ऊपर उठाया।

कुलभूषण खरबंदा का जन्म 21 अक्टूबर 1944 को ब्रिटिश भारत के पंजाब (अब पाकिस्तान) के हसन अब्दाल में हुआ था। उनकी शिक्षा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, दिल्ली यूनिवर्सिटी और किरोड़ीमल कॉलेज में हुई, जहां वे नाटकीय सोसायटी का एक सक्रिय हिस्सा थे।

1960 के दशक में, उन्होंने अपने अभिनय करियर की शुरुआत दिल्ली के थिएटर सर्किट से की। यहां उन्होंने 'अभियान' की सह-स्थापना की और बाद में प्रतिष्ठित 'यात्रिक' समूह में शामिल हो गए। उनके करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ यह था कि वह 'यात्रिक' में पहले ऐसे अभिनेता बने जिन्हें अभिनय के लिए वेतन मिलता था। यह महज शौक नहीं, बल्कि अभिनय को एक पूर्णकालिक पेशेवर करियर के रूप में अपनाने का उनका संकल्प था।

1972 में, वे थिएटर दिग्गज श्यामानंद जालान की सलाह पर कोलकाता चले गए और उनके हिंदी थिएटर समूह 'पदात‍िक' से जुड़ गए। इस दौरान उन्होंने 'गीधारे' और खासकर 'सखाराम बाइंडर' जैसे नाटकों में काम किया, जो 1995 तक चलता रहा। यह कठोर मंच प्रशिक्षण ही था जिसने उन्हें एक साथ कई जटिल भूमिकाओं को निभाने की तकनीकी महारत दी।

1974 के आसपास खरबंदा ने फिल्मों में कदम रखा। उनकी पहली बड़ी पहचान निर्देशक श्याम बेनेगल के साथ बनी। बेनेगल के समानांतर सिनेमा आंदोलन में वे जल्द ही एक नियमित चेहरा बन गए।

उन्होंने बेनेगल की क्लासिक फिल्मों जैसे निशांत, मंथन, भूमिका, जुनून और कलयुग में काम किया। इन किरदारों में संयम, सूक्ष्मता और प्रामाणिकता की आवश्यकता थी, जिसके लिए उनके थिएटर के अनुभव ने एक मजबूत आधार प्रदान किया।

समानांतर सिनेमा से मिली इस कलात्मक विश्वसनीयता ने उन्हें 'एक्टर' की श्रेणी में हमेशा शीर्ष पर रखा, जिसका मतलब था कि व्यावसायिक सफलता के बाद भी, वह कभी महज एक विलेन तक सीमित नहीं हुए।

'शान' की व्यावसायिक सफलता ने खरबंदा को वह स्वतंत्रता और वित्तीय लाभ दिया कि वे जटिल, चरित्र-प्रधान प्रोजेक्ट्स को चुनना जारी रख सकें। 1982 में, उन्होंने महेश भट्ट की समीक्षकों द्वारा प्रशंसित 'अर्थ' में धोखेबाज पति इंदर मल्होत्रा का किरदार निभाया।

'इंदर' की भूमिका भावनात्मक संयम, मनोवैज्ञानिक गहराई और नैतिक अस्पष्टता से भरी हुई थी, जो 'शाकाल' की शैलीगत बुराई के बिल्कुल विपरीत थी। 1980 और 1990 के दशक में उन्होंने शक्ति, घायल, जो जीता वही सिकंदर और दामिनी जैसी बड़ी व्यावसायिक फिल्मों में काम किया, जबकि वारिस और मीरा नायर की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित मॉनसून वेडिंग जैसी फिल्मों के माध्यम से कलात्मक जुड़ाव बनाए रखा।

दीप‍ा मेहता की 'एलिमेंट्स ट्रिलॉजी' (फायर, अर्थ और वॉटर) में उनकी केंद्रीय भूमिकाओं ने उनकी वैश्विक पहचान को मजबूत किया। लगान में राजा पूरन सिंह और जोधा अकबर में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाकर उन्होंने साबित कर दिया कि वह बड़े, महाकाव्य आख्यानों में भी अपनी छाप छोड़ने की क्षमता रखते हैं।

अपने करियर के अंतिम चरण में भी, खरबंदा ने डिजिटल स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्मों के आगमन के साथ आए बदलाव को सफलतापूर्वक अपनाया। ये प्लेटफॉर्म अक्सर 1970 के समानांतर सिनेमा की तरह ही गंभीर, चरित्र-चालित आख्यानों को प्राथमिकता देते हैं।

वह एक ऐसे कलाकार हैं जो 2025 में भी नेटफ्लिक्स की बड़ी रिलीज जैसे 'ज्वेल थीफ: द हीस्ट बिगिन्स' में प्रमुख भूमिकाएं निभा रहे हैं।

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Created On :   20 Oct 2025 5:24 PM IST

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