बिहार में महागठबंधन से अलग होने के बाद क्या झारखंड में भी बदल जाएगी सियासी हवा? झामुमो ने समीक्षा का लिया निर्णय

बिहार में महागठबंधन से अलग होने के बाद क्या झारखंड में भी बदल जाएगी सियासी हवा? झामुमो ने समीक्षा का लिया निर्णय
झारखंड में सत्तारूढ़ गठबंधन की अगुवाई करने वाला जेएमएम (झारखंड मुक्ति मोर्चा) बिहार विधानसभा चुनाव से पूरी तरह आउट हो गया है। जेएमएम यहां महागठबंधन के तहत 16 विधानसभा सीटों पर दावेदारी कर रहा था, लेकिन राजद और कांग्रेस नेतृत्व ने आखिरी वक्त तक इसपर कोई फैसला नहीं लिया। इससे झारखंड मुक्ति मोर्चा का नेतृत्व न सिर्फ आहत है, बल्कि उसने झारखंड में राजद और कांग्रेस के साथ अपने मौजूदा गठबंधन की समीक्षा करने का निर्णय लिया है।

रांची, 21 अक्टूबर (आईएएनएस)। झारखंड में सत्तारूढ़ गठबंधन की अगुवाई करने वाला जेएमएम (झारखंड मुक्ति मोर्चा) बिहार विधानसभा चुनाव से पूरी तरह आउट हो गया है। जेएमएम यहां महागठबंधन के तहत 16 विधानसभा सीटों पर दावेदारी कर रहा था, लेकिन राजद और कांग्रेस नेतृत्व ने आखिरी वक्त तक इसपर कोई फैसला नहीं लिया। इससे झारखंड मुक्ति मोर्चा का नेतृत्व न सिर्फ आहत है, बल्कि उसने झारखंड में राजद और कांग्रेस के साथ अपने मौजूदा गठबंधन की समीक्षा करने का निर्णय लिया है।

पार्टी ने दीपावली के दिन बिहार में महागठबंधन से खुद को अलग करने का ऐलान कर दिया। झामुमो के वरिष्ठ नेता और झारखंड सरकार में मंत्री सुदिव्य कुमार सोनू ने कहा, “बिहार में राजद और कांग्रेस नेतृत्व ने हमें अपमानित किया है। झारखंड के विधानसभा चुनाव में हमने उन्हें वाजिब हिस्सेदारी दी थी। सरकार बनने के बाद हमने राजद के एक विधायक को मंत्रिमंडल में शामिल किया। इसके बावजूद उन्होंने हमारे साथ राजनीतिक धोखेबाजी की है, जो नाकाबिले बर्दाश्त है।”

सोनू ने इसे 'राजद-कांग्रेस की धूर्तता' करार दिया और कहा कि पार्टी झारखंड में मौजूदा गठबंधन की समीक्षा करेगी। राजनीतिक गलियारों में अब यह चर्चा तेज है कि बिहार में हुई इस ‘बेवफाई’ का असर झारखंड की सत्ता पर भी पड़ सकता है।

राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार नीरज सिन्हा का कहना है कि झामुमो के नेतृत्व को बिहार में अपमानित होना पड़ा है और इससे पार्टी के अंदर गहरा असंतोष है, लेकिन सीएम हेमंत सोरेन अपनी राजनीतिक परिपक्वता और रणनीतिक समझ के लिए जाने जाते हैं। वे तत्काल गठबंधन तोड़ने जैसा कदम नहीं उठाएंगे, क्योंकि इससे सरकार की स्थिरता पर असर पड़ सकता है।

उन्होंने कहा, “यह संभव है कि झामुमो दबाव की राजनीति के तहत राजद कोटे के मंत्री को मंत्रिमंडल से बाहर कर दे, ताकि यह संदेश जाए कि पार्टी अब और समझौते के मूड में नहीं है।”

झामुमो के पास झारखंड में इतना संख्या बल नहीं कि वह अकेले सरकार चला सके। वह राजद से रिश्ता भले तोड़ लें, लेकिन सरकार में बने रहने के लिए कांग्रेस का समर्थन जरूरी है।

वरिष्ठ पत्रकार सुनील सिंह कहते हैं, “ अगर झामुमो भविष्य में गठबंधन तोड़ने जैसा फैसला करता है तो इसके पहले वह कांग्रेस और राजद के विधायकों को तोड़कर अपने पाले में करेगा ताकि सरकार चलाने के लिए उनके पास पर्याप्त संख्या बल रहे। हेमंत सोरेन के लिए यह कोई मुश्किल काम भी नहीं है। वह सियासत के पक्के खिलाड़ी और सरकार चलाने के लिए हर दांव पेंच में माहिर हो चुके हैं, लेकिन ऐसा कोई भी फैसला वह बहुत सोच-समझकर ही लेंगे।

राजनीति के जानकारों का मानना है कि हेमंत सोरेन इस पूरे घटनाक्रम का मूल्यांकन बिहार चुनाव परिणाम आने तक करेंगे। नवंबर तक के राजनीतिक माहौल को देखते हुए ही वे अपने अगले कदम का फैसला करेंगे।

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Created On :   21 Oct 2025 7:04 PM IST

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