युद्ध के मैदान से ओलंपिक तक पहुंची घुड़सवारी, सवार और घोड़े के बीच गहरा तालमेल है जिसकी बुनियाद

युद्ध के मैदान से ओलंपिक तक पहुंची घुड़सवारी, सवार और घोड़े के बीच गहरा तालमेल है जिसकी बुनियाद
घुड़सवारी ओलंपिक का वह ऐसा रोमांचक खेल है, जिसमें न सिर्फ सवार और घोड़े की जुगलबंदी मिलकर प्रतिष्ठित पदक को सुनिश्चित करते हैं। घुड़सवार अपने घोड़े पर सवार होकर नियंत्रण, संतुलन और गति का प्रदर्शन करता है। शक्ति, कौशल और तालमेल पर आधारित इस खेल में जंपिंग, ड्रेसेज और इवेंटिंग जैसी विधाएं शामिल हैं। इस खेल में सवार और घोड़े के बीच गहरा विश्वास होना जरूरी है।

नई दिल्ली, 9 नवंबर (आईएएनएस)। घुड़सवारी ओलंपिक का वह ऐसा रोमांचक खेल है, जिसमें न सिर्फ सवार और घोड़े की जुगलबंदी मिलकर प्रतिष्ठित पदक को सुनिश्चित करते हैं। घुड़सवार अपने घोड़े पर सवार होकर नियंत्रण, संतुलन और गति का प्रदर्शन करता है। शक्ति, कौशल और तालमेल पर आधारित इस खेल में जंपिंग, ड्रेसेज और इवेंटिंग जैसी विधाएं शामिल हैं। इस खेल में सवार और घोड़े के बीच गहरा विश्वास होना जरूरी है।

प्राचीन समय के इंसानों की हड्डियों के अध्ययन से पता चलता है कि 3021 से 2501 ईसा पूर्व यूरेशिया के यनमाया संस्कृति के लोगों ने घुड़सवारी शुरू की थी। उस वक्त घोड़े न सिर्फ इंसानों की यात्रा को गति देते थे, बल्कि उनके मवेशियों को संभालने और शिकार करने में भी मदद करते थे।

भारतीय संदर्भ की बात करें तो, माना जाता है कि 1500 ईसा पूर्व आर्यों के साथ भारत में घोड़ों का आगमन हुआ, जिन्हें शक्ति, गति और चपलता के लिए महत्व दिया जाता था। प्राचीन समय में आर्यों के पास उन्नत सैन्य दस्ते में घोड़े और रथ थे, जिसने उन्हें युद्ध में लाभ पहुंचाया।

इसके बाद घुड़सवारी का इस्तेमाल न सिर्फ युद्ध के मैदान पर हुआ, बल्कि यह एक शाही शौक भी बन गया। राजा-महाराजा इन घोड़ों पर सवार होकर भ्रमण पर निकलते। इन पर सवार होकर शिकार भी किया जाता और दौड़ भी लगाई जाती थी। उस दौर में यह शक्ति और प्रतिष्ठा का प्रतीक था।

आधुनिक ओलंपिक में पहली बार साल 1900 में घुड़सवारी के खेल को प्रदर्शित किया गया। उस समय इसमें जंपिंग इवेंट्स और पोलो का आयोजन हुआ, लेकिन साल 1904 में घुड़सवारी को ओलंपिक से हटा दिया गया। साल 1908 में सिर्फ पोलो ही ऐसा खेल था जिसमें घोड़े शामिल थे।

1912 ओलंपिक में फिर से घुड़सवारी की वापसी हुई और पहली 'ड्रेसेज' और 'इवेंटिंग' प्रतियोगिताओं के साथ-साथ 'जंपिंग' को भी इसमें शामिल किया गया।

ये वो दौर था, जब घुड़सवार को या तो सैन्य अधिकारी या जेंटलमैन होना अनिवार्य था, लेकिन साल 1951 में इस नियम को हटा लिया गया, जिसने महिलाओं के लिए भी इस खेल में रास्ते खोल दिए।

महिलाओं को पहली बार 1952 हेलसिंकी ओलंपिक में ड्रेसेज में घुड़सवारी स्पर्धाओं में भाग लेने की अनुमति मिली। इसके बाद महिलाओं को साल 1956 में जंपिंग, जबकि 1964 में इवेंटिंग में भी शामिल किया गया।

'जंपिंग' इवेंट में घुड़सवार कई बाधाओं को पार करते हुए एक तय मार्ग का अनुसरण करते हुए आगे बढ़ता है। अगर दो या उससे अधिक जोड़े बेहतर तरीके से राउंड को पूरा करते हैं, तो विजेता का फैसला जंप ऑफ समय के आधार पर किया जाता है।

वहीं, 'ड्रेसेज' में कई तरह की परीक्षा होती है। इसमें घोड़े और घुड़सवार को एक तय मूवमेंट वाले रूटीन के प्रदर्शन के लिए प्वाइंट्स दिए जाते हैं। वहीं 'इवेंटिंग' में ड्रेसेज टेस्ट, 30 मुश्किल बाधाओं वाली 6 किलोमीटर लंबी क्रॉस-कंट्री और जंपिंग शामिल है।

इसाबेल वर्थ, हेनरिक वॉन एकरमैन, यास्मिन इंघम, शार्लेट फ्राई, बेन माहेर जूलिया क्रेजवेस्की जैसे दिग्गज घुड़सवारों के बीच भले ही भारत घुड़सवारी में अब तक कोई ओलंपिक पदक नहीं जीत सका है, लेकिन अब इस खेल में भारतीय घुड़सवार भी उबरकर सामने आ रहे हैं।

अक्टूबर 2023 को 19वें एशियन गेम्स में भारतीय घुड़सवारों ने गोल्ड मेडल जीतकर इस खेल में अपनी पहचान को पुनर्स्थापित किया था। इससे पहले भारत ने 1982 में गोल्ड मेडल अपने नाम किया था। ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि जल्द ही घुड़सवारी में भी भारत ओलंपिक में पोडियम फिनिश करेगा।

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Created On :   9 Nov 2025 3:03 PM IST

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