हिंदी सिनेमा के जादूगर अमोल पालेकर, जब तीन सिल्वर जुबली हिट्स से मचाई बॉक्स ऑफिस पर धूम
मुंबई, 23 नवंबर (आईएएनएस)। अमोल पालेकर 1970 और 1980 के दशक के उन अभिनेताओं में से एक हैं, जिनकी सादगी और सहज अभिनय ने लोगों का दिल जीत लिया। वह अपनी 'आम आदमी' की छवि के लिए अलग पहचान रखते थे। यही वजह है कि उनके किरदारों में लोग खुद को आसानी से ढूंढ पाते थे। उनके करियर की सबसे खास बात यह रही कि उनकी शुरुआती तीन हिंदी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर सिल्वर जुबली मनाई।
बता दें कि किसी फिल्म का एक ही शहर में, बिना किसी रुकावट के, 25 सप्ताह तक सिनेमाघरों में प्रदर्शित होते रहना उस फिल्म की सिल्वर जुबली कहलाता है।
अमोल पालेकर का जन्म 24 नवंबर 1944 को मुंबई में एक साधारण मराठी परिवार में हुआ। उनके पिता पोस्ट ऑफिस में काम करते थे और मां एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत थीं। अमोल को बचपन से ही कला और पेंटिंग में रुचि थी। कॉलेज के दिनों में ही वे टाइपिंग और एड एजेंसी में काम करके अपनी पढ़ाई और खर्चे पूरे करते थे। इस दौरान वह पेंटिंग भी किया करते थे।
अमोल पालेकर की एक्टिंग की शुरुआत थिएटर से हुई। 1967 में उन्होंने पहली बार अपनी पेंटिंग की प्रदर्शनी लगाई और इसी दौरान थिएटर में भी कदम रखा। उन्होंने मराठी थिएटर में कई नाटकों में काम किया और 1972 में अपना खुद का थिएटर ग्रुप 'अनिकेत' बनाया। थिएटर की दुनिया में उन्होंने अभिनय, निर्देशन और प्रोडक्शन के गुर सीखे।
अमोल ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत मराठी फिल्म 'बाजीरावाचा बेटा' (1969) से की, लेकिन हिंदी सिनेमा में उनका डेब्यू 1974 में बसु चटर्जी की 'रजनीगंधा' से हुआ। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया और दर्शकों ने उन्हें आम आदमी के किरदार के रूप में पसंद किया। इसके बाद उनकी दो और फिल्में 'छोटी सी बात' (1975) और 'चितचोर' (1976) रिलीज हुईं। तीनों फिल्में सिल्वर जुबली की लिस्ट में शामिल हुईं, यानी इन फिल्मों को काफी लंबे समय तक सिनेमाघरों में दर्शकों का प्यार मिला। यह लगातार तीन हिट फिल्में किसी भी अभिनेता के लिए बड़ी उपलब्धि मानी जाती हैं।
अमोल पालेकर की फिल्मों की खास बात यह थी कि उन्होंने हमेशा साधारण नायक का रोल निभाया। उनके किरदार नौकरीपेशा आदमी, फ्लैट खरीदने वाला युवक, या प्रेम संबंधों में उलझा इंसान होते थे। उनकी डायलॉग डिलीवरी और सहज अभिनय ने उन्हें खास पहचान दी। 'रजनीगंधा', 'छोटी सी बात', और 'चितचोर' के अलावा, उन्होंने 'घरोंदा', 'भूमिका', 'नरम-गरम', और 1979 की हिट कॉमेडी 'गोलमाल' जैसी फिल्मों में भी अपनी कला को प्रदर्शित किया। 'गोलमाल' के लिए उन्हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार भी मिला।
अमोल पालेकर ने सिर्फ अभिनय में ही नहीं बल्कि निर्देशन में भी अपनी छाप छोड़ी। उन्होंने कई फिल्में और टीवी सीरियल्स डायरेक्ट किए, जिनमें 'कच्ची धूप', 'नकाब', 'दायरा' और 'पहेली' शामिल हैं। उनकी बनाई फिल्मों को कई बार राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मराठी फिल्मों में उनकी निर्देशित फिल्में जैसे 'बांगरवाड़ी', 'दायरा', 'कैरी' और 'ध्येय पर्व' ने नेशनल अवॉर्ड जीते। उनकी हिंदी फिल्म 'पहेली' को भारत ने ऑस्कर के लिए नामांकित किया।
अमोल पालेकर ने अपनी जिंदगी में कई चुनौतियों का सामना किया। उन्होंने थिएटर और फिल्मों में ऐसे विषय उठाए जो समाज और आम आदमी से जुड़े थे। इसके अलावा, उन्होंने अपनी पेंटिंग के माध्यम से भी सामाजिक कार्यों में योगदान दिया।
--आईएएनएल
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Created On :   23 Nov 2025 6:51 PM IST












