व्यापार: रोसनेफ्ट के सीईओ इगोर सेचिन ने 2024 एसपीआईईएफ एनर्जी पैनल में दिया मुख्य भाषण
नई दिल्ली, 9 जून (आईएएनएस)। रोसनेफ्ट के सीईओ इगोर सेचिन ने 2024 एसपीआईईएफ एनर्जी पैनल में मुख्य भाषण दिया। रोसनेफ्ट ऑयल कंपनी के सहयोग से एनर्जी पैनल का आयोजन XXVII सेंट पीटर्सबर्ग इंटरनेशनल इकोनॉमिक फोरम के दौरान किया गया था।
इगोर सेचिन ने अपने भाषण में मौजूदा ऊर्जा बाजार का विश्लेषण प्रस्तुत किया, जो फिलहाल असंतुलन का सामना कर रहा है। रोसनेफ्ट प्रमुख ने एनर्जी ट्रांजिशन पर अपने भाषण में फोकस करते हुए कहा कि यह अब असफल हो रहा है।
उनके अनुसार, दुनिया भर में पिछले दो दशकों में एनर्जी ट्रांजिशन में लगभग 10 ट्रिलियन डॉलर के निवेश के बावजूद वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत पारंपरिक स्रोत को बदलने में विफल रहे हैं।
फिलहाल पवन और सौर ऊर्जा दुनिया के ऊर्जा उत्पादन का 5 प्रतिशत से भी कम है, और इलेक्ट्रिक वाहन लगभग 3 प्रतिशत ही हैं। इसी अवधि में, तेल, गैस और कोयले की खपत में कुल 35 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो कि पहले जैसा ही है।
इगोर सेचिन ने कहा, वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के विकास में पिछले दशकों में किए गए भारी निवेश से ऊर्जा बाजार में जीवाश्म ईंधन पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। अपने मौजूदा स्वरूप में ग्रीन ट्रांजिशन की रणनीति ऊर्जा स्रोतों की उपलब्धता और विश्वसनीयता सुनिश्चित नहीं कर सकती।
रोसनेफ्ट प्रमुख ने मल्टीपोलर वर्ल्ड के ढांचे के भीतर वैश्विक ऊर्जा सेक्टर को विकसित करने के लिए नए अवसर और तरीके खोजने की जरूरत पर भी ध्यान दिया।
उन्होंने कहा कि जलवायु संकट में विकसित देशों का सबसे बड़ा योगदान है, जो कार्बन उत्सर्जन के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है।
संयुक्त राष्ट्र और गैर सरकारी शोध संस्थानों के आंकड़ों का हवाला देते हुए इगोर सेचिन ने कहा कि पिछले 200 साल में पैदा किए गए कार्बन उत्सर्जन में विकसित देशों का हिस्सा 65 प्रतिशत है, जबकि दुनिया की 10 प्रतिशत धनी आबादी आधे कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। दुनिया की सबसे अमीर 1 प्रतिशत आबादी सबसे गरीब 50 प्रतिशत आबादी की तुलना में दोगुना कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करती है। अफ्रीका का पूरा महाद्वीप दुनिया के उत्सर्जन का 4 प्रतिशत से भी कम कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन करता है।
इसके अलावा, इगोर सेचिन ने कहा कि एनर्जी ट्रांजिशन संतुलित होना चाहिए और ऐसा करते समय ज्यादा से ज्यादा लोगों के हितों को ध्यान में रखना चाहिए जो आने वाले वर्षों में ऊर्जा खपत में वृद्धि सुनिश्चित करेगा, खास कर विकासशील देशों में।
उन्होंने यह भी कहा कि ऊर्जा सुरक्षा प्राप्त करने के लिए, ऊर्जा के स्रोतों की पर्याप्तता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करना आवश्यक है।
रोसनेफ्ट सीईओ ने कहा, "ग्रीन एजेंडा" के प्रचार का वास्तव में मतलब है कि दुनिया की अधिकांश आबादी ऊर्जा से वंचित रखना। तेल और गैस की आपूर्ति के बिना ऊर्जा असमानता को दूर करना असंभव है।
उन्होंने कहा कि एशिया और अफ्रीका के विकासशील देशों में आने वाले समय में बिजली की मांग बढ़ेगी। 2030 तक, विकासशील देशों में मांग वृद्धि कुल मिलाकर वैश्विक खपत वृद्धि का 95 प्रतिशत हो जाएगी, क्योंकि यहां जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में, जीवाश्म संसाधनों की खपत में कमी करने का मतलब होगा कि भूख और गरीबी की समस्या न केवल बनी रहेगी बल्कि और बदतर होगी।
इगोर सेचिन ने कहा, एक तरफ, तेल और गैस को हटाने का मतलब है कि जीवन के आधुनिक तरीके को छोड़ना होगा। दूसरी तरफ, कई देशों में तेल की खपत में वृद्धि का मतलब है आधुनिक जीवन अपनाना।
उन्होंने कहा कि तेल की मांग में सबसे अधिक वृद्धि एशियाई देशों में होगी, जो रूस के मुख्य व्यापारिक भागीदार हैं। उधर, भारत की अर्थव्यवस्था ने हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण प्रगति की है। 2010 के बाद से, ऊर्जा की मांग में भारत में 45 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। देश दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता बन गया है।
अगले पांच साल में, अपनी मजबूत आर्थिक गति जारी रखते हुए भारत 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी बन जाएगा और यह दुनिया की शीर्ष तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। 2050 तक अर्थव्यवस्था के आकार के मामले में भारत अमेरिका से आगे निकल सकता है।
भारत की ऊर्जा खपत 2050 तक 90 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी, जो दुनिया की सबसे तेज विकास दरों में से एक है।
प्रतिबंधों के बावजूद, वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र में रूस वर्ल्ड लीडर के रूप में अपनी भूमिका बरकरार रखेगा। रूस अपनी ऊर्जा विकास क्षमता जारी रखते हुए वैश्विक ऊर्जा बाजार में अपनी स्थिति को और मजबूत करेगा।
हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र में रूसी निर्यात को बढ़ाने के महत्त्व पर ज़ोर दिया था। इगोर सेचिन ने कहा कि एशिया-प्रशांत बाजार में रूसी ऊर्जा निर्यात का कायापलट ईएसपीओ पाइपलाइन (पूर्वी साइबेरिया-प्रशांत महासागर पाइपलाइन) के निर्माण और रूस के लिए यूरोपीय बाजार बंद होने से बहुत पहले भारत के तेल और गैस क्षेत्र में निवेश के साथ शुरू हुआ था।
इगोर सेचिन ने कहा, मौजूदा समय में, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में रूस का तेल निर्यात 80 प्रतिशत से अधिक है, और यह सब हुआ है आपूर्ति अबाध रूप से बनाए रखने के चलते।
रोसनेफ्ट सीईओ ने कहा, अब जबकि "ग्रीन ट्रांजिशन" की अवधारणा पूरी तरह विफल है, हमें विकासशील देशों की जरूरतों के अनुरूप एक विश्वसनीय और सुरक्षित ऊर्जा आपूर्ति के लिए एक नई रणनीति विकसित करनी होगी।
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Created On :   9 Jun 2024 2:37 PM IST