संस्कृति: सावन विशेष एक सीधी रेखा और 7 शिव मंदिर... रहस्यों से भरे हैं ‘शिव शक्ति अक्ष रेखा’ में स्थापित शिवालय

नई दिल्ली, 8 अगस्त (आईएएनएस)। देवाधिदेव को अति प्रिय सावन का महीना समाप्त होने को है। इस महीने में देशभर के शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ी हुई है। देश भर में ऐसे कई शिव मंदिर हैं, जो भक्ति के साथ ही आश्चर्य को भी समेटे हुए हैं। ऐसे ही मंदिरों में शिव के कुछ मंदिर हैं जो ‘शिव शक्ति अक्ष रेखा’ में स्थित हैं। भारत में सात प्राचीन शिव मंदिर एक सीधी रेखा में 79 डिग्री देशांतर पर स्थित हैं। इस रेखा को ‘शिव शक्ति अक्ष रेखा’ कहा जाता है, जो उत्तर में केदारनाथ से दक्षिण में रामेश्वरम तक फैली है।
इन मंदिरों की दूरी लगभग 2,382 किलोमीटर है, और इनमें से पांच मंदिर पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह प्राचीन भारतीय खगोल और वास्तुशास्त्र की गहरी समझ को भी दिखाता है।
शिव शक्ति रेखा का उत्तरी छोर, केदारनाथ मंदिर है, जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और उत्तराखंड में स्थित है। हिमालय की गोद में मंदाकिनी नदी के किनारे 3,583 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर भगवान शिव की महिमा का प्रतीक है। मान्यता है कि इसे पांडवों ने बनवाया और 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने इसका जीर्णोद्धार किया था।
श्रीकालहस्ती मंदिर वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। स्वर्णमुखी नदी के किनारे बने इस मंदिर में शिवलिंग को वायु लिंगम कहा जाता है। आश्चर्यजनक रूप से बंद गर्भगृह में दीपक की लौ हिलती रहती है, जो वायु की उपस्थिति को दिखाती है। यह मंदिर तिरुपति से 36 किमी दूर है और 5वीं शताब्दी में इसका निर्माण माना जाता है।
पृथ्वी तत्व का प्रतीक यह एकांबेश्वरनाथ मंदिर तमिलनाडु के कांचीपुरम में है। यहां का शिवलिंग रेत का बना स्वयंभू लिंग है, जिसे देवी पार्वती ने स्थापित किया था। 600 ईस्वी के आसपास चोल वंशजों ने इसका पुनर्निर्माण कराया था। 172 फीट ऊंचा राज गोपुरम इसकी भव्यता का प्रमाण है।
इसके बाद नंबर आता है अरुणाचलेश्वर मंदिर का, जो तमिलनाडु के तिरुवन्नामलै जिले में स्थित है। अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करने वाला यह मंदिर अरुणाचल पर्वत के तल पर है। यहां शिव अग्नि लिंगम के रूप में पूजे जाते हैं। कार्तिक दीपम उत्सव में पहाड़ी पर भव्य दीपक जलाया जाता है, जो शिव की अग्नि शक्ति को दिखाता है। 9वीं शताब्दी में चोल वंश ने इसका निर्माण शुरू किया था।
जंबुकेश्वर मंदिर तमिलनाडु के तिरुवनैकवल में स्थित है। जल तत्व का प्रतीक यह मंदिर त्रिची में है। यहां गर्भगृह में भूमिगत जलस्रोत से शिवलिंग पर निरंतर जल बहता है। 1800 साल पुराना यह मंदिर सनातन धर्म में खास महत्व रखता है।
तमिलनाडु के चिदंबरम में स्थित थिल्लई नटराज मंदिर आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। यह मंदिर भगवान शिव के नटराज रूप को समर्पित है। 10वीं शताब्दी में चोल वंश द्वारा निर्मित यह मंदिर वैदिक और तमिल पूजा पद्धतियों का संगम है। यहां शिवलिंग निराकार रूप में पूजा जाता है।
शिव शक्ति रेखा का दक्षिणी छोर, रामेश्वरम मंदिर है, जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। रामायण के अनुसार, भगवान राम ने यहां रेत का शिवलिंग बनाकर पूजा की थी। इसकी वास्तुकला भी खास है।
इन मंदिरों का 79 डिग्री देशांतर पर एक सीधी रेखा में होना रहस्यमय है। ये मंदिर अति प्राचीन हैं, ये तब के हैं, जब अक्षांश-देशांतर मापने की तकनीक नहीं थी। फिर भी अलग-अलग समय और राजवंशों द्वारा निर्मित ये मंदिर एक रेखा में हैं, जो प्राचीन भारतीय योग और वास्तु विज्ञान की उन्नत समझ को दिखाता है। कुछ विद्वान मानते हैं कि यह रेखा पृथ्वी की भू-चुंबकीय ऊर्जा से जुड़ी हो सकती है।
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Created On :   8 Aug 2025 5:41 PM IST