राजनीति: 25 जून के 50 वर्ष लोकतंत्र का 'आपातकाल', भारत के इतिहास का सबसे काला दिन

25 जून के 50 वर्ष  लोकतंत्र का आपातकाल, भारत के इतिहास का सबसे काला दिन
25 जून 1975 की वो रात जब भारत का लोकतंत्र सिहर उठा। इस दिन संविधान को कुचला गया, अभिव्यक्ति की आजादी को दबाया गया और लोकतंत्र को जंजीरों में जकड़ा गया। आधी रात को रेडियो पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की थी।

नई दिल्ली, 24 जून (आईएएनएस)। 25 जून 1975 की वो रात जब भारत का लोकतंत्र सिहर उठा। इस दिन संविधान को कुचला गया, अभिव्यक्ति की आजादी को दबाया गया और लोकतंत्र को जंजीरों में जकड़ा गया। आधी रात को रेडियो पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की थी।

देश में समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में भ्रष्टाचार और महंगाई के खिलाफ आंदोलन तेज हो रहा था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा की लोकसभा सदस्यता को रद्द कर दिया था, जिससे उनकी कुर्सी खतरे में पड़ गई। जयप्रकाश नारायण जैसे नेताओं की आवाज जनता को एकजुट कर रही थी। ऐसे में आपातकाल एक ऐसा हथियार बन गया, जिसने लोकतंत्र को बंधक बना लिया।

इस तनाव के बीच 25 जून की रात को इंदिरा गांधी ने संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा कर दी। यह फैसला बिना कैबिनेट की मंजूरी के रातोंरात लिया गया। राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने मध्यरात्रि में इस पर हस्ताक्षर किए और देश आपातकाल के अंधेरे में डूब गया।

आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों का निलंबन कर दिया गया। बोलने की आजादी छीन ली गई। प्रेस पर सेंसरशिप का ताला लग गया। अखबारों में छपने वाली हर खबर को सरकारी सेंसर की मंजूरी लेनी पड़ती थी। कई पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया और समाचार पत्रों के दफ्तरों पर ताले जड़ दिए गए।

लोग सच जानने के लिए तरस गए। उस समय की एक मशहूर कहानी है कि कुछ अखबारों ने सेंसरशिप के विरोध में अपने संपादकीय पन्ने खाली छोड़ दिए।

विपक्षी नेताओं जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडीस को रातोंरात जेल में कैद कर लिया गया। जेलें इतनी भर गईं कि जगह कम पड़ने लगी। पत्रकारों, लेखकों और यहां तक कि कलाकारों को भी नहीं बख्शा गया। उस समय की तमाम मशहूर हस्तियों को दमन का शिकार बनना पड़ा और आपातकाल का दंश झेलना पड़ा।

गांव-गांव तक आपातकाल की आहट पहुंची। आपातकाल सिर्फ अपराधियों के खिलाफ नहीं, बल्कि हर उस आवाज के खिलाफ थी, जो सत्ता से सवाल पूछती थी। इंदिरा गांधी के इस तानाशाही रवैये के खिलाफ गली, नुक्कड़, चौक-चौराहे पर लोकतंत्र की बहाली के नारे लगाए जाने लगे।

21 महीने तक चले इस आपातकाल का अंत 21 मार्च, 1977 को हुआ, जब इंदिरा गांधी ने चुनाव की घोषणा की। शायद उन्हें भरोसा था कि जनता उनके साथ है। लेकिन, 1977 के चुनाव में जनता ने कांग्रेस को करारी शिकस्त दी। जनता पार्टी की सरकार बनी।

इस जीत में उन लाखों लोगों का योगदान था, जिन्होंने जेलों में यातनाएं झेली, सड़कों पर प्रदर्शन किए और अपनी आवाज बुलंद की। जनता ने इंदिरा गांधी की सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी।

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Created On :   24 Jun 2025 11:37 PM IST

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