अपराध: बांग्लादेश में झूठे ईशनिंदा का एक और मामला, भीड़ ने हिंदू नाई को पीटा

ढाका, 24 जून (आईएएनएस)। बांग्लादेश के लालमोनिरहाट जिले में 69 वर्षीय एक हिंदू बुजुर्ग नाई (परेश चंद्र शील) को झूठे ईशनिंदा के आरोप में हिंसक भीड़ ने बेरहमी से पीट दिया। यह जानकारी मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स कांग्रेस फॉर बांग्लादेश माइनॉरिटीज (एचआरसीबीएम) ने मंगलवार को दी।
मानवाधिकार संस्था ने इस हमले की निंदा करते हुए बताया कि जब शील के बेटे ने भीड़ से अपने पिता की जान बख्शने की गुहार लगाई, तो उसे भी पीटा गया।
एचआरसीबीएम के अनुसार, स्थानीय पुलिस ने पीड़ित की रक्षा करने के बजाय हिंसा को बढ़ावा दिया। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने यहां तक कह दिया कि "शील को उम्रभर जेल में रखने के लिए झूठे आरोप गढ़े जाएंगे," जो बांग्लादेश के संविधान और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का खुला उल्लंघन है।
एचआरसीबीएम के मुताबिक, घटना 20 जून को दोपहर 2:30 बजे उस समय शुरू हुई जब अल-हेरा जामे मस्जिद, नमाटरी के स्वघोषित इमाम मोहम्मद अब्दुल अजीज शील की सैलून में बाल कटवाने आए। बाद में दर्ज शिकायत में अजीज ने आरोप लगाया कि शील ने आपत्तिजनक टिप्पणी की।
अजीज ने दावा किया कि घटना के समय उनके साथ केवल मोहम्मद नजमुल इस्लाम (29) मौजूद थे, लेकिन अजीज की शिकायत में मोहम्मद साजिद हुसैन (17), मोहम्मद जुबैर हुसैन (35), मोहम्मद तारेक हुसैन (28) और मोहम्मद नुरुल इस्लाम को भी गवाह के तौर पर नामजद किया गया, बिना यह स्पष्ट किए कि वे उस वक्त मौके पर मौजूद थे या बाद में जोड़े गए।
एचआरसीबीएम ने बताया कि उन्हें शील की बहू दीप्ति रानी रॉय का एक वीडियो बयान प्राप्त हुआ है, जिसमें उन्होंने पूरी घटना का भिन्न विवरण दिया है।
वीडियो में दीप्ति रानी ने बताया कि अजीज ने बाल कटवाने के बाद 10 टका सेवा शुल्क देने से इनकार कर दिया। जब उनसे शुल्क मांगा गया, तो वह भड़क गए और सैलून से निकलकर कुछ समय बाद झूठा ईशनिंदा का आरोप लगाकर लोगों को उकसाया। इसके बाद एक उग्र भीड़ ने शील को बेरहमी से पीटा और उनके बेटे के साथ भी हाथापाई की।
परिवार ने किसी भी आपत्तिजनक टिप्पणी से इनकार किया और आरोप लगाया कि यह झूठा आरोप हिंसा और लूटपाट के बहाने रचा गया है, जो बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे लंबे समय से चले आ रहे अत्याचार का हिस्सा है।
एचआरसीबीएम ने कहा, “क्या वास्तव में एक बुजुर्ग हिंदू नाई, जो खुद के सैलून में काम करता है, इतना साहस करेगा कि इस्लाम के पैगंबर पर आपत्तिजनक टिप्पणी करे? यह आरोप अपने आप में संदिग्ध है।”
उन्होंने शिकायतकर्ताओं की गवाही में असंगतियों का हवाला देते हुए इसे "झूठे ईशनिंदा मामलों" का एक और उदाहरण बताया, जहां धार्मिक भावनाओं को भड़काकर अल्पसंख्यकों को डराया-धमकाया जाता है।
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Created On :   24 Jun 2025 7:03 PM IST