राजनीति: यूं ही नहीं मैं 'नालंदा' कहलाता हूं, दुनिया को शिक्षित करता था, हूं और रहूंगा

यूं ही नहीं मैं नालंदा कहलाता हूं, दुनिया को शिक्षित करता था, हूं और रहूंगा
बिहार का नालंदा विश्वविद्यालय एक समय दुनिया के लिए शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र हुआ करता था। 815 साल के लंबे इंतजार के बाद यह शिक्षा का केंद्र एक बार फिर से अपने पुराने स्वरूप में लौट रहा है। इसके परिसर का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा होना है। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के सपनों का नालंदा विश्वविद्यालय अब साकार रूप ले रहा है।

नालंदा, 18 जून (आईएएनएस)। बिहार का नालंदा विश्वविद्यालय एक समय दुनिया के लिए शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र हुआ करता था। 815 साल के लंबे इंतजार के बाद यह शिक्षा का केंद्र एक बार फिर से अपने पुराने स्वरूप में लौट रहा है। इसके परिसर का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा होना है। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के सपनों का नालंदा विश्वविद्यालय अब साकार रूप ले रहा है।

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास, शिक्षा के प्रति भारतीय दृष्टिकोण और इसकी समृद्धि को दर्शाता है। इसका महत्व न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए अनमोल धरोहर के रूप में है।

नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारत का एक प्रमुख और ऐतिहासिक शिक्षा केंद्र था। इसे दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय माना जाता है, जहां छात्र और शिक्षक एक ही परिसर में रहते थे।

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 450 ई. में गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने की थी। बाद में इसे हर्षवर्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। इस विश्वविद्यालय की भव्यता का अनुमान इससे लगाइए कि इसमें 300 कमरे, 7 बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए 9 मंजिला एक विशाल पुस्तकालय था, जिसमें 3 लाख से अधिक किताबें थीं।

यहां एक समय में 10,000 से अधिक छात्र और 2,700 से अधिक शिक्षक होते थे। छात्रों का चयन उनकी मेधा के आधार पर होता था और इनके लिए शिक्षा, रहना और खाना निःशुल्क था। इस विश्वविद्यालय में केवल भारत से ही नहीं, बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, ईरान, ग्रीस, मंगोलिया आदि देशों से भी छात्र आते थे।

नालंदा विश्वविद्यालय में साहित्य, ज्योतिष, मनोविज्ञान, कानून, खगोलशास्त्र, विज्ञान, युद्धनीति, इतिहास, गणित, वास्तुकला, भाषाविज्ञान, अर्थशास्त्र, चिकित्सा आदि विषय पढ़ाए जाते थे। इस विश्वविद्यालय में एक 'धर्म गूंज' नाम की लाइब्रेरी थी, जिसका अर्थ 'सत्य का पर्वत' था। इसके 9 मंजिल थे और इसे तीन भागों में विभाजित किया गया था : रत्नरंजक, रत्नोदधि और रत्नसागर।

1193 में बख्तियार खिलजी के आक्रमण के बाद नालंदा विश्वविद्यालय को बर्बाद कर दिया गया था। यहां विश्वविद्यालय परिसर और खासकर इसकी लाइब्रेरी में आग लगाई गई, जिसमें पुस्तकालय की किताबें हफ्तों तक जलती रहीं।

इसी नालंदा विश्वविद्यालय में हर्षवर्धन, धर्मपाल, वसुबन्धु, धर्मकीर्ति, नागार्जुन जैसे कई महान विद्वानों ने शिक्षा प्राप्त की थी। खुदाई में नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष 1.5 लाख वर्ग फीट में मिले हैं, जो इसके विशाल और विस्तृत परिसर का केवल 10 प्रतिशत हिस्सा माना जाता है।

अब प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की तर्ज पर नई नालंदा यूनिवर्सिटी बिहार के राजगीर में 25 नवंबर 2010 को स्थापित की गई।

नालंदा विश्वविद्यालय के इस नए भवन के उद्घाटन से पहले यहां घूमने आए बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों ने कहा कि इस विश्वविद्यालय के सच्चे इतिहास के बारे में सबको जानकारी होनी चाहिए। इसके लिए राज्य और केंद्र सरकार को प्रयास करना चाहिए।

उन्होंने मांग की कि इस विश्वविद्यालय के सच्चे इतिहास को बहुत कम लोग जानते हैं। ऐसे में इस जगह की खुदाई कराकर इसके बारे में ज्यादा जानकारी लोगों को पहुंचाना चाहिए।

यहां घूमने आई पर्यटक खुशी कुमारी ने कहा कि आजकल के लोगों की सोच अलग है। पहले शिक्षा नेचर के साथ कनेक्ट होता था, आज तकनीक पर आधारित है। शिक्षक भी अब पहले की तरह छात्रों से ज्यादा कनेक्ट नहीं करते हैं। पुराने नालंदा विश्वविद्यालय की शिक्षा व्यवस्था में और आज की शिक्षा व्यवस्था में काफी अंतर है।

वहीं, अंकिता सिंह जो नालंदा परीक्षा देने के लिए आई थी, वह जब यहां घूमने पहुंची तो बेहद खुश नजर आईं। उन्होंने कहा कि यह हमारे देश के लिए गौरव की बात है कि पहले पूरी दुनिया के लोग यहां शिक्षा ग्रहण करने आते थे और अपने देशों में जाकर शिक्षा का प्रचार-प्रसार करते थे। उन्होंने बताया कि यहां देखकर पता चला कि हमारे बुजुर्गों की मानसिकता इतनी विकसित थी और साथ ही वह इतने सुशिक्षित थे।

आकांक्षा कुमारी जो नालंदा घूमने आई थी, उन्होंने बताया कि इस विश्वविद्यालय परिसर में आकर हमें बहुत अच्छा लगा। लोगों से अपील की कि वह भी नालंदा आएं और अपने इतिहास के अवशेषों को देखें और अपने आप पर गर्व करें।

श्रवण कुमार नाम के पर्यटक ने कहा कि यहां तो पूरी दुनिया से लोग शिक्षा ग्रहण करने आते थे। उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय को तोड़ने के पीछे एक मकसद सांस्कृतिक चोट पहुंचाना भी था।

बिहार शरीफ के रहने वाले अंकित कुमार ने बताया कि इस खंडहर को देखकर अपने देश और उसके इतिहास पर गर्व होता है। लोगों से अपील करते हैं कि यहां जरूर आएं और इसे देखें ताकि आप भी अपनी शिक्षा व्यवस्था और संस्कृति पर गर्व कर सकें।

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Created On :   18 Jun 2024 5:42 PM IST

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