राजनीति: झारखंड डीजीपी को लेकर विवाद जारी, नेता प्रतिपक्ष का आरोप- संविधान और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन कर रही हेमंत सरकार

झारखंड  डीजीपी को लेकर विवाद जारी, नेता प्रतिपक्ष का आरोप- संविधान और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन कर रही हेमंत सरकार
झारखंड विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने राज्य में डीजीपी पद को लेकर जारी विवाद के बीच हेमंत सोरेन सरकार पर संविधान और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का खुलेआम उल्लंघन करने का आरोप लगाया है।

रांची, 11 मई (आईएएनएस)। झारखंड विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने राज्य में डीजीपी पद को लेकर जारी विवाद के बीच हेमंत सोरेन सरकार पर संविधान और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का खुलेआम उल्लंघन करने का आरोप लगाया है।

मरांडी ने कहा है कि झारखंड देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जहां बीते दस दिनों से डीजीपी का पद खाली है। सरकार ने 1990 बैच के आईपीएस रहे अनुराग गुप्ता को ‘डीजीपी’ के पद पर तैनात कर रखा है, जबकि वह केंद्र की अखिल भारतीय सेवा नियमावली के तहत 30 अप्रैल को ही रिटायर हो चुके हैं।

नेता प्रतिपक्ष ने इस मामले को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर सीएम हेमंत सोरेन को संबोधित करते हुए लिखा है, “निर्लज्जता की भी एक हद होती है, पर सरकार ने तो उसे भी पार कर दिया है। झारखंड देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है जहां बीते दस दिनों से डीजीपी का पद खाली है और जो ‘डीजीपी’ जैसा काम कर भी रहा है, वो बिना वेतन के सेवा दे रहा है! वाह मुख्यमंत्री जी, ये तो नया भारत निर्माण है— बिना वेतन, बिना संवैधानिक वैधता, सिर्फ भ्रष्टाचार के दम पर प्रशासन!”

उन्होंने आगे लिखा, “ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य सरकार ने न केवल संविधान के अनुच्छेद 312 को नकारा है, जो यूपीएससी को अधिकार देता है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के प्रकाश सिंह केस के निर्देशों को भी रद्दी की टोकरी में डाल दिया है। हेमंत सोरेन अब शायद खुद को सर्वोच्च न्यायालय से भी ऊपर मान बैठे हैं और प्रशासन को नीचे, बहुत नीचे गिरा दिया है।”

भाजपा नेता ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा, “आज झारखंड वहां पहुंच चुका है जहां जेपीएससी (झारखंड पब्लिक सर्विस कमीशन) की हर कुर्सी बोली पर बिक रही है और यूपीएससी से चयनित अधिकारियों को भी ‘रेट लिस्ट’ से होकर गुजरना पड़ता है। हेमंत जी, आपने तो एक क्रांतिकारी प्रयोग कर डाला-‘योग्यता नहीं, सुविधा शुल्क आधारित प्रशासन।’ जो परंपरा आपने शुरू की है, वो न सिर्फ सरकारी व्यवस्था की विश्वसनीयता का अंतिम संस्कार कर रही है, बल्कि आने वाले वर्षों में झारखंड के प्रशासनिक ढांचे के ताबूत में आखिरी कील साबित होगी।”

मरांडी ने केंद्र के नियम के तहत रिटायर आईपीएस को डीजीपी पद पर बनाए रखने पर तंज करते हुए लिखा, “अब क्यों न एक नई नीति ही बना दी जाए? धनबाद, हजारीबाग, रामगढ़, बोकारो जैसे कोयला वाले “कमाऊ” इलाके समेत और बाकी के खनिज इलाकों में भी ‘बिना वेतन, केवल कमीशन आधारित सेवा’ के लिए “रिटायर्ड और अनुभवी” लोगों से आवेदन मंगवाइए। जो काम डीजीपी साहब कर रहे हैं, वही मॉडल लागू कीजिए, जहां वेतन की जगह ‘वसूली’ हो और संविधान की जगह ‘किचन कैबिनेट’ के आदेश मान्य हों।”

उल्लेखनीय है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंडर सेक्रेटरी संजीव कुमार के हस्ताक्षर से 22 अप्रैल को झारखंड के मुख्य सचिव के नाम लिखे गए पत्र में कहा गया है कि झारखंड सरकार ने नए नियम अधिसूचित करते हुए 2 फरवरी, 2025 को 1990 बैच के आईपीएस अनुराग गुप्ता को दो वर्षों के लिए डीजीपी के रूप में पदस्थापित किया है। लेकिन, झारखंड सरकार की ओर से अधिसूचित नियम एवं उसके तहत की गई नियुक्ति नियमों के अनुरूप नहीं है। यह माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रकाश सिंह मामले में दिए गए निर्देशों के भी विपरीत है। ऐसे में अखिल भारतीय सेवा (मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति लाभ) नियम, 1958 के नियम 16(1) के तहत अनुराग गुप्ता को 30 अप्रैल के बाद झारखंड के डीजीपी के पद पर सेवा में बनाए रखना विधिसम्मत नहीं है।

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Created On :   11 May 2025 2:37 PM IST

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