आईएएनएस स्पेशल: रास बिहारी बोस पुण्यतिथि आजादी की नींव मजबूत करने वाला योद्धा, जिसने खड़ी की आजाद हिंद फौज

रास बिहारी बोस पुण्यतिथि  आजादी की नींव मजबूत करने वाला योद्धा, जिसने खड़ी की आजाद हिंद फौज
रास बिहारी बोस एक ऐसे असाधारण नेता थे, जिनके संगठनात्मक कौशल ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बड़ी भूमिका निभाई। अंग्रेजों के उत्पीड़न के बावजूद उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की मशाल थामे रखी। गदर क्रांति से लेकर आजाद हिंद फौज को गढ़ने में उनका योगदान था। कह सकते हैं कि रास बिहारी बोस जैसी विभूतियां भारत की स्वतंत्रता की नींव हैं। मातृभूमि के लिए उनका प्यार और समर्पण पूरे देश को प्रेरित करता है। 21 जून को महान स्वतंत्रता सेनानी रासबिहारी बोस की पुण्यतिथि है।

नई दिल्ली, 20 जून (आईएएनएस)। रास बिहारी बोस एक ऐसे असाधारण नेता थे, जिनके संगठनात्मक कौशल ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बड़ी भूमिका निभाई। अंग्रेजों के उत्पीड़न के बावजूद उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की मशाल थामे रखी। गदर क्रांति से लेकर आजाद हिंद फौज को गढ़ने में उनका योगदान था। कह सकते हैं कि रास बिहारी बोस जैसी विभूतियां भारत की स्वतंत्रता की नींव हैं। मातृभूमि के लिए उनका प्यार और समर्पण पूरे देश को प्रेरित करता है। 21 जून को महान स्वतंत्रता सेनानी रासबिहारी बोस की पुण्यतिथि है।

रास बिहारी बोस का जन्म 25 मई 1886 को बंगाल के बर्धमान जिले में हुआ। इस महान स्वतंत्रता सेनानी ने न सिर्फ ब्रिटिश उपनिवेशवाद को चुनौती दी, बल्कि एक स्वतंत्र और अखंड भारत का सपना भी संजोया। उनका नाम खासतौर पर 1915 के बनारस षड्यंत्र और आजाद हिंद फौज की स्थापना से जुड़ा है, जिसके कारण ब्रिटिश शासन की नींव हिल चुकी थी।

'आजाद हिंद फौज' को अक्सर सुभाष चंद्र बोस से जोड़ा जाता है, लेकिन सही मायनों में इसकी स्थापना रास बिहारी बोस ने की। 1924 में जब रास बिहारी बोस ने 'भारतीय स्वतंत्रता लीग' की स्थापना की, उसी साल सुभाष चंद्र बोस से उनका परिचय हुआ। इस ऐतिहासिक मुलाकात ने आजाद हिंद फौज के विचार को जन्म दिया। 1942 में उनका सपना आकार लेने लगा, जब आजाद हिंद फौज की स्थापना हुई। रास बिहारी ने सुभाष चंद्र बोस की क्षमता को पहचाना और उन्हें नेतृत्व सौंप दिया, जिससे एक मजबूत सशस्त्र बल का सपना भी साकार हुआ।

हालांकि इसके पहले ही रास बिहारी बोस वो काम कर चुके थे, जिसने भारत की आजादी के संघर्ष में अंग्रेजों के सामने सीधी चुनौती खड़ी कर दी। बंगाल के क्रांतिकारियों की लहर में जब तेजी आई तो रास बिहारी बोस अग्रणी चेहरा बनकर उभरे। उनका नाम पहली बार 1908 के अलीपुर बम केस के दौरान चर्चा में आया।

युवा क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश राज के खिलाफ हथियार उठाए और वायसराय लॉर्ड हार्डिंग की हत्या की योजना बनाई गई। 23 दिसंबर 1912 को रास बोस ने बसंत कुमार विश्वास के साथ मिलकर वायसराय की सवारी पर बम फेंका। हालांकि वायसराय बच गया। इस स्थिति में रास बिहारी को अपना ठिकाना बदलना पड़ा।

20वीं सदी की शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक आंदोलन चल रहे थे, जिनका उद्देश्य ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकना था। इस आंदोलन को गदर क्रांति नाम मिला। बाद में रास बिहारी इस गदर आंदोलन का चेहरा बन गए थे। जब ब्रिटिश एजेंसियों को आंदोलन की भनक लगी तो उन्होंने इसे नष्ट करने के लिए क्रांतिकारियों की जासूसी शुरू की। रास बिहारी गिरफ्तारी से बचते हुए 1915 में भारत छोड़कर जापान चले गए।

रास बिहारी को भारत और जापान के बीच एक सेतु के रूप में देखा जाता है। उनका योगदान सिर्फ स्वतंत्रता आंदोलन तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि भारत और जापान के बीच स्थायी मित्रता और सहयोग की नींव बना, जो आज भी सुदृढ़ है। जापान में अपने शुरुआती 8 सालों में उन्होंने मजबूत संबंध बनाए। बाद में उन्हें जापानी नागरिकता भी मिल गई। 21 जून 1945 को जापान में ही रास बिहारी का निधन हुआ था।

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Created On :   20 Jun 2025 5:14 PM IST

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