राष्ट्रीय: झारखंड तिलैया जलाशय में मछली पालन बना रोजगार का नया जरिया, पीएम मत्स्य संपदा योजना से बदली तकदीर

झारखंड  तिलैया जलाशय में मछली पालन बना रोजगार का नया जरिया, पीएम मत्स्य संपदा योजना से बदली तकदीर
झारखंड के हजारीबाग जिले के तिलैया जलाशय में केज कल्चर के माध्यम से मछली पालन न सिर्फ स्थानीय लोगों के लिए आय का सशक्त माध्यम बन रहा है, बल्कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) ने इस क्षेत्र के मछुआरों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव ला दिया है। कभी पलायन को मजबूर रहे स्थानीय किसान अब अपने गांव में रहकर आत्मनिर्भर बन चुके हैं।

हजारीबाग, 27 जून (आईएएनएस)। झारखंड के हजारीबाग जिले के तिलैया जलाशय में केज कल्चर के माध्यम से मछली पालन न सिर्फ स्थानीय लोगों के लिए आय का सशक्त माध्यम बन रहा है, बल्कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) ने इस क्षेत्र के मछुआरों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव ला दिया है। कभी पलायन को मजबूर रहे स्थानीय किसान अब अपने गांव में रहकर आत्मनिर्भर बन चुके हैं।

जिला मत्स्य पदाधिकारी प्रदीप कुमार ने बताया कि वर्ष 2012-13 के आसपास तिलैया जलाशय में राज्य सरकार की छोटी-छोटी योजनाओं के तहत केज कल्चर की शुरुआत की गई थी। शुरुआती दौर में मछुआरों को इस तकनीक को समझने और अपनाने में समय लगा, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने मछली पालन की उन्नत तकनीकों को अपनाया और इसमें महारत हासिल की। उन्होंने बताया कि किसानों को प्रशिक्षण के लिए बाहर भी भेजा गया ताकि वे वैज्ञानिक तरीके से मछली पालन कर सकें। राज्य सरकार, जिला प्रशासन और अन्य संस्थाओं के सहयोग से योजनाओं का लाभ बढ़ा। लेकिन, जब केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना आई, तो इसने मानो एक क्रांति ला दी।

प्रदीप कुमार ने कहा कि इस योजना में लाभार्थियों की संख्या पर कोई सीमा नहीं थी, जिससे बड़ी संख्या में लोगों ने आवेदन किया और सभी को लाभ मिला। जलाशय के पास रहने वाले वे किसान, जिनकी जमीन पहले जलाशय निर्माण में डूब गई थी, आज उसी पानी में मछली पालन करके अपने भविष्य को संवार रहे हैं। इससे उनका भावनात्मक जुड़ाव भी और गहरा हुआ है।

लाभार्थी पिंटू कुमार यादव ने बताया कि वह वर्ष 2017 से मछली पालन से जुड़े हुए हैं। शुरुआत में वह राजस्थान जाकर गाड़ी चलाने का काम करते थे, लेकिन 2021 में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत उन्हें दो केज मिले, जिनमें से प्रत्येक में आठ किलोग्राम की क्षमता थी। उन्होंने बताया कि मछली पालन से उन्हें सालाना लगभग 10 लाख रुपए तक का लाभ हो रहा है। पहले जहां उन्हें अपने घर-परिवार से दूर रहकर कमाना पड़ता था, अब वह अपने ही गांव में अपने परिवार के साथ रहकर सम्मानजनक जीवन जी रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह पहले मिट्टी के घर में रहते थे, अब पक्का मकान बना लिया है। बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा रहे हैं। पहले बहुत कर्ज था, लेकिन मछली पालन ने सब बदल दिया। पत्नी और बच्चे भी इस काम में मदद करते हैं।

यहां मछली पालन कार्य एक समिति के तहत किया जा रहा है, जिसमें कुल 31 सदस्य हैं। इस समिति के माध्यम से लगभग 100 लोगों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से रोजगार मिल रहा है। तिलैया जलाशय से मछलियां झारखंड सहित देश के कई राज्यों में भेजी जा रही हैं।

जहां कभी इस क्षेत्र से लोग बेहतर जीवन की तलाश में पलायन कर जाते थे, वहीं अब वे अपने गांव में रहकर ही खुशहाल जीवन जी रहे हैं। तिलैया जलाशय में मछली पालन से न केवल रोजगार के अवसर बढ़े हैं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्तर पर भी लोगों की स्थिति में व्यापक सुधार आया है।

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Created On :   27 Jun 2025 11:22 PM IST

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