राष्ट्रीय: तीनों तीज में सबसे अनूठी है कजरी तीज, जानें इसमें 'नीमड़ी पूजन' का महत्व

तीनों तीज में सबसे अनूठी है कजरी तीज, जानें इसमें नीमड़ी पूजन का महत्व
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला कजरी तीज व्रत तीनों तीज में सबसे अनूठा है। यह सुहागिन महिलाओं के लिए आस्था, समर्पण और सौभाग्य का प्रतीक है। इस दिन विवाहित महिलाएं माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं और रात में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण करती हैं।

नई दिल्ली, 10 अगस्त (आईएएनएस)। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला कजरी तीज व्रत तीनों तीज में सबसे अनूठा है। यह सुहागिन महिलाओं के लिए आस्था, समर्पण और सौभाग्य का प्रतीक है। इस दिन विवाहित महिलाएं माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं और रात में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण करती हैं।

इस साल कजरी तीज की तिथि 11 अगस्त को सुबह 10 बजकर 33 मिनट पर प्रारंभ होगी और 12 अगस्त को सुबह 8 बजकर 40 मिनट पर समाप्त होगी। चूंकि तृतीया तिथि 12 अगस्त को सूर्योदय के समय तक रहेगी, इसलिए उदयातिथि के अनुसार कजरी तीज का पर्व इसी दिन मनाया जाएगा।

भारतीय संस्कृति में तीज के तीन प्रमुख रूप हैं: पहली हरियाली तीज, दूसरी हरतालिका तीज, और तीसरी कजरी तीज। इन तीनों का उद्देश्य स्त्री के सौभाग्य और वैवाहिक सुख के लिए होता है, लेकिन कजरी तीज इन सबसे विशेष और अनूठी मानी जाती है। इसका कारण है इसमें शामिल 'नीमड़ी पूजन,' जिसमें नीम को देवी के रूप में पूजने की परंपरा है।

नीमड़ी पूजन: कजरी तीज का सबसे महत्वपूर्ण और विशिष्ट पक्ष नीमड़ी पूजन है, जिसमें महिलाएं नीम की डाली को देवी का स्वरूप मानकर उसकी पूजा करती हैं। कई स्थानों पर नीम की पत्तियों के ऊपर मिट्टी से बनी देवी की प्रतिमा स्थापित कर पूजन किया जाता है। महिलाएं इस पूजन में हल्दी, सिंदूर, चूड़ी, बिंदी और सोलह श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करती हैं।

माना जाता है कि नीम में देवी दुर्गा का वास होता है और उसका पूजन करने से स्त्रियों को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है। नीम की शीतलता और औषधीय गुण तन और मन दोनों को शुद्ध करने में सहायक होते हैं। इस पूजन के माध्यम से महिलाएं न केवल धार्मिक भावनाओं को व्यक्त करती हैं, बल्कि यह परंपरा प्रकृति के साथ भी संदेश देती है।

कजरी तीज पर लोकगीतों का बेहद महत्व है। ये लोकगीत वर्षा ऋतु, विरह, प्रेम और सावन के मनोभावों से भरे होते हैं। महिलाएं झूले पर बैठकर सामूहिक रूप से ये गीत गाती हैं, जो केवल मनोरंजन नहीं बल्कि सांस्कृतिक अभिव्यक्ति और भावनात्मक एकता का माध्यम भी हैं।

इस दिन सुहागिन महिलाएं विशेष रूप से हरी साड़ी, हरी चूड़ियां, सिंदूर, बिंदी और मेहंदी आदि सोलह श्रृंगार करती हैं और रात में चंद्रमा को अर्घ्य देकर सुखी वैवाहिक जीवन की प्रार्थना करती हैं।

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Created On :   10 Aug 2025 9:12 AM IST

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