आईएएनएस स्पेशल: सदियों पुराने लीलाधर के इस धाम में विराजमान हैं श्रीहरिनारायण के पांच स्वरूप, सप्त ऋषियों ने यहीं की थी तपस्या

चेन्नई, 13 अगस्त (आईएएनएस)। श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 16 अगस्त को है। ऐसे में देश-दुनिया के तमाम मंदिरों में इसकी धूम है। भक्त नंदलाल के जन्मोत्सव की तैयारियों में जुटे हैं। नारायण के सभी मंदिर जगमगा रहे हैं। श्रीहरिनारायण का एक मंदिर तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के त्रिपलीकेन क्षेत्र में स्थित है, जिस मंदिर का नाम श्री पार्थसारथी मंदिर है। भगवान विष्णु के पार्थसारथी स्वरूप को समर्पित यह ऐतिहासिक और आध्यात्मिक स्थल अति प्राचीन है।
छठी शताब्दी का हिंदू वैष्णव मंदिर 108 दिव्य देशमों में से एक है, जिनका उल्लेख तमिल संतों (आलवारों) के रचित पवित्र ग्रंथ 'दिव्य प्रबंध' में मिलता है। 'पार्थसारथी' शब्द का अर्थ है 'अर्जुन का सारथी', जो महाभारत में भगवान कृष्ण की अर्जुन के सारथी के रूप में भूमिका को दर्शाता है। यह मंदिर न केवल अपनी धार्मिक महत्ता के लिए बल्कि द्रविड़ शैली की अद्भुत वास्तुकला और समृद्ध इतिहास के लिए भी प्रसिद्ध है।
पार्थसारथी मंदिर का निर्माण पल्लव वंश के राजा नरसिंहवर्मन प्रथम ने छठी शताब्दी में करवाया था। बाद में चोल और विजयनगर के राजाओं ने इसका विस्तार किया। मंदिर में भगवान विष्णु के पांच स्वरूपों, पार्थसारथी (कृष्ण), योग नरसिंह, राम, गजेंद्र वरदराज और रंगनाथ की पूजा होती है। यह मंदिर अपनी अनूठी विशेषता के लिए भी जाना जाता है, जहां भगवान कृष्ण को मूंछों के साथ और बिना किसी अस्त्र-शस्त्र के दिखाया गया है। गर्भगृह में कृष्ण अपनी पत्नी रुक्मिणी, भाई बलराम, पुत्र प्रद्युम्न, पौत्र अनिरुद्ध और सात्यकि के साथ विराजमान हैं। मंदिर परिसर में वेदवल्ली थायर, अंडाल, हनुमान, रामानुज और स्वामी मनवाला मामुनिगल जैसे अन्य देवताओं के मंदिर भी हैं।
तमिलनाडु सरकार के हिंदू धर्मार्थ और बंदोबस्ती बोर्ड द्वारा संचालित यह मंदिर वैष्णव परंपरा के तेनकलाई संप्रदाय का पालन करता है। मंदिर का प्रबंधन तमिलनाडु सरकार द्वारा किया जाता है, जो इसकी देखरेख और उत्सवों के आयोजन को देखती है।
मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, राजा सुमति ने तिरुपति में भगवान विष्णु के दर्शन किए और उनके पार्थसारथी स्वरूप की खोज में थे। भगवान ने उन्हें त्रिपलीकेन के इस मंदिर की ओर निर्देशित किया। मंदिर का क्षेत्र, जिसे तिरुवल्लिकेनी कहा जाता है, पहले तुलसी के वनों और लिली के तालाबों से घिरा था, जिसके कारण इसे 'अलीकेनी' (लिली का तालाब) भी कहा जाता है। मंदिर का पवित्र कुंड, जिसे कैरवाणी कहा जाता है, इंद्र, सोम, अग्नि, मीन, और विष्णु मूर्तियों से घिरा है। मान्यता है कि सात ऋषियों, भृगु, अत्रि, मरीचि, मार्कंडेय, सुमति, सप्तरोमा, और जाबालि ने यहां पर तपस्या की थी।
मंदिर की द्रविड़ शैली की वास्तुकला आकर्षक है, जिसमें जीवंत राजगोपुरम और बारीक नक्काशीदार मंडप शामिल हैं। मंडपों पर पौराणिक कथाओं को चित्रित किया गया है, जो इसे और भी भव्य बनाते हैं। मंदिर में साल भर कई उत्सव आयोजित होते हैं, जिनमें बैकुंठ एकादशी और तमिल महीने मार्गाजी (दिसंबर-जनवरी) के दौरान श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या में भीड़ उमड़ती है। इस दौरान लगभग 4,000 श्लोक भगवान की स्तुति में पढ़े जाते हैं। तमिल महीने चित्तिरई (अप्रैल-मई) में श्री पार्थसारथी स्वामी का ब्रह्मोत्सव और उदयवर उत्सव, वैगसी में श्री वरदराजर उत्सव, और आनी (जून-जुलाई) में श्री अझगियासिंगार (नरसिंह) का उत्सव मनाया जाता है।
मंदिर प्रतिदिन सुबह 5 बजे से दोपहर 12 बजकर 30 मिनट तक और शाम 4 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है।
अब सवाल उठता है कि नारायण के मंदिर कैसे पहुंचे तो चेन्नई शहर के मध्य में स्थित होने के कारण यहां हवाई जहाज, रेल, बस, या कार से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
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Created On :   13 Aug 2025 3:40 PM IST