खेल: खेलो इंडिया वाटर स्पोर्ट्स फेस्टिवल आर्थिक संकट से जूझे, नहीं मानी हारी, जम्मू-कश्मीर को दिलाए मेडल

श्रीनगर, 23 अगस्त (आईएएनएस)। 'खेलो इंडिया वाटर स्पोर्ट्स फेस्टिवल' में मोहसिन अली, सज्जाद और मोहम्मद हुसैन ने चमक बिखेरी है। डल झील के आसपास पले-बढ़े साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले इन खिलाड़ियों ने केंद्र शासित प्रदेश का नाम रोशन किया, जिसका श्रेय भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) को जाता है।
मोहसिन अली एक बढ़ई के बेटे हैं, सज्जाद हुसैन एक शिकारावाले के बेटे हैं, जबकि मोहम्मद हुसैन के पिता सब्जी विक्रेता हैं।
मोहसिन ने के-1 1000 मीटर पुरुष कयाकिंग में गोल्ड जीता, सज्जाद ने सी-2 500 मीटर कैनो स्लैलम में सिल्वर पर कब्जा किया, जबकि हुसैन ने सी-2 कैनो 500 मीटर पुरुष वर्ग में सिल्वर और सी-1 कैनो 1000 मीटर पुरुष वर्ग में ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया।
इन तीन पदकों की बदौलत मेजबान जम्मू-कश्मीर 'खेलो इंडिया वाटर स्पोर्ट्स फेस्टिवल' की प्वाइंट्स टेबल में सातवें स्थान पर रहा।
तीनों वाटर स्पोर्ट्स खिलाड़ियों के परिवार आर्थिक संकट से जूझने के बावजूद, अपने बच्चों को इन प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करते आए हैं, क्योंकि साई पर उनको पूरा भरोसा है। नेहरू पार्क में स्थापित साई केंद्र, इन वाटर स्पोर्ट्स खिलाड़ियों के करियर को बदलने में प्रमुख भूमिका निभा रहा है।
मोहसिन, सज्जाद और हुसैन, सभी साई के नेहरू पार्क केंद्र में ट्रेनिंग ले रहे हैं। वह साई के वाटर स्पोर्ट्स ट्रेनर्स के मार्गदर्शन में अपने कौशल को निखार रहे हैं।
सज्जाद ने बताया कि केंद्र न केवल उन्हें ट्रेनिंग देता है, बल्कि हर संभव मदद भी प्रदान करता है। उन्होंने कहा, "जब हम सुबह नेहरू पार्क केंद्र में ट्रेनिंग लेते थे, तो हमारे साई कोच जुल्फिकार अली भट ट्रेनिंग के बाद हमें स्कूल छोड़ देते थे, क्योंकि केंद्र में ट्रेनिंग के तुरंत बाद स्कूल का समय हो जाता था।"
मीर बाहरी इलाके से ताल्लुक रखने वाले सज्जाद ने बताया कि शिकारावाले का बेटा होने के नाते, कैनोइंग जैसे संयम वाले खेल में कदम रखना मुश्किल था। इसके लिए कड़ी मेहनत और उचित ट्रेनिंग के अलावा उचित डाइट भी जरूरी है।
सज्जाद ने कहा, "हमारे पास बुनियादी डाइट के लिए भी पैसा नहीं है। यह संभव नहीं था कि हम परिवार के सामने इस मांग को रख पाते। नतीजतन, स्कूल जाने के बाद मैं शिकारा चलाता या कोई भी काम करता, जिससे मेरा गुजारा चलता रहे और मैं परिवार पर बोझ न बनूं।"
मोहम्मद हुसैन बताते हैं कि उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अपनी इस सफलता के लिए वह साई के आभारी हैं, जिसने नेहरू पार्क में साई सेंटर की स्थापना की। उनकी सफलता में साई की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
मोहम्मद हुसैन ने कहा, "मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। अगर हम खुद ट्रेनिंग लेते, तो हमारे लिए उत्कृष्टता हासिल करना संभव नहीं होता। नेहरू पार्क स्थित साई जम्मू केंद्र ने हमें ट्रेनिंग दी, जिसके चलते हम मेडल जीत सके।
मोहसिन अली का मानना है कि साई के समर्थन के बिना वह गोल्ड मेडल नहीं जीत सकते थे। मुश्किल से उनके परिवार का गुजार हो पाता। वह खुद परिवार की मदद के लिए शिकारा चलाया करते थे।
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Created On :   23 Aug 2025 7:56 PM IST