राष्ट्रीय: शिक्षक दिवस डॉ. राधाकृष्णन के विचारों से उपजी एक परंपरा, जो शिक्षा को मानती है समाज परिवर्तन का माध्यम

नई दिल्ली, 4 सितंबर (आईएएनएस)। ज्ञान के बिना व्यक्ति का अस्तित्व अधूरा है, लेकिन इसमें असल भूमिका एक शिक्षक की होती है, जो एक नई पीढ़ी को उस मजबूत भविष्य के लिए सींचते हैं, जहां उन्नति, समृद्धि और संस्कार समाहित होते हैं। संत कहते हैं, "गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥" यह दोहा गुरु की महत्ता को गहराई से स्पष्ट करता है।
यूं तो दुनिया 5 अक्टूबर को 'विश्व शिक्षक दिवस' मनाती है, जबकि भारत में 5 सितंबर की तारीख शिक्षकों को समर्पित है। देशभर में बड़े ही उत्साह से इस दिन को 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाया जाता है।
शिक्षकों की श्रेष्ठता और समर्पण को मान्यता देने की शुरुआत 1958 में हो चुकी थी, लेकिन एक निश्चित तारीख तय नहीं थी। कुछ साल बाद, जब 1960 के दशक के मध्य में 5 सितंबर को भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन का मौका आया, इस समारोह की तिथि निश्चित की गई।
समाचार और तमाम लेखों में जिक्र मिलता है कि जब भारत के पहले उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन का 5 सितंबर को जन्मदिन था, तब कुछ छात्र उनसे मिलने गए थे। छात्र उनका जन्मदिन मनाना चाहते थे और उन्होंने यह इच्छा सर्वपल्ली राधाकृष्णन के सामने रखी। इस पर सर्वपल्ली राधाकृष्णन कुछ समय शांत रहे। फिर छात्रों से कहा, "मुझे खुशी होगी अगर मेरे जन्मदिन की जगह शिक्षक दिवस मनाया जाए।"
सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षा को समाज के लिए एक परिवर्तनकारी साधन के रूप में दृढ़ता से मानते थे। अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान सर्वपल्ली राधाकृष्णन अपनी बुद्धिमत्ता, विद्वता और भारतीय संस्कृति और दर्शन की गहरी समझ के लिए पूजनीय हैं। उनके कार्यकाल की विशेषता भारतीय संविधान में निहित लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता थी।
सरकारी प्रेस सूचना ब्यूरो की प्रेस विज्ञप्तियों में भी इस बात का उल्लेख मिलता है कि उनके कामों ने भारतीय दर्शन को पश्चिमी दुनिया में समझने और स्वीकारने की राह दिखाई। डॉक्टर राधाकृष्णन शिक्षा को सिर्फ डिग्री प्राप्त करने का माध्यम नहीं, बल्कि समाजिक परिवर्तन का एक सशक्त उपकरण मानते थे।
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Created On :   4 Sept 2025 7:43 PM IST