पर्यावरण: विश्व बांस दिवस बांस का मानव जीवन और पर्यावरण में योगदान

विश्व बांस दिवस बांस का मानव जीवन और पर्यावरण में योगदान
बांस मानव जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है। इसे ‘गरीब आदमी की लकड़ी’ कहा जाता है। घर निर्माण से लेकर सजावट, हस्तशिल्प, औषधि और पर्यावरण संरक्षण तक, बांस का उपयोग अनगिनत क्षेत्रों में होता है। बांस के महत्व और इसके बहुमुखी उपयोग को बताने के लिए हर साल 18 सितंबर को 'विश्व बांस दिवस' मनाया जाता है।

नई दिल्ली, 17 सितंबर 2025 (आईएएनएस)। बांस मानव जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है। इसे ‘गरीब आदमी की लकड़ी’ कहा जाता है। घर निर्माण से लेकर सजावट, हस्तशिल्प, औषधि और पर्यावरण संरक्षण तक, बांस का उपयोग अनगिनत क्षेत्रों में होता है। बांस के महत्व और इसके बहुमुखी उपयोग को बताने के लिए हर साल 18 सितंबर को 'विश्व बांस दिवस' मनाया जाता है।

बांस ग्रैमिनी कुल (घास कुल) का पौधा है, जो उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। यह विषम परिस्थितियों में भी जीवित रहता है और आपदाओं के बाद पुनर्जनन की अद्भुत क्षमता रखता है। बांस की प्रजातियां बौनी (कुछ सेंटीमीटर) से लेकर 30 मीटर तक लंबी होती हैं। भारत में कश्मीर को छोड़कर सभी क्षेत्रों में बांस पाया जाता है, और देश में इसकी 136 प्रजातियां मौजूद हैं। भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा बांस उत्पादक देश है, जहां प्रतिवर्ष 1.35 करोड़ टन बांस का उत्पादन होता है। उत्तर-पूर्वी भारत देश का 65 प्रतिशत और वैश्विक स्तर पर 20 प्रतिशत बांस उत्पादन करता है।

बांस का उपयोग प्राचीन काल से मानव सभ्यता में होता आ रहा है। यह न केवल घरेलू और औद्योगिक जरूरतों को पूरा करता है, बल्कि जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी कारगर है। बांस अन्य पौधों की तुलना में 33 प्रतिशत अधिक कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करता है और मृदा प्रबंधन में सहायक है। इसकी पत्तियां प्राकृतिक खाद बनाती हैं, जो अन्य फसलों के लिए लाभकारी है। बांस की खेती किसानों के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद है, क्योंकि इसका रखरखाव आसान और आय लंबे समय तक मिलती है।

बांस से फर्नीचर, चटाई, अगरबत्ती, कागज और हस्तशिल्प वस्तुएं बनती हैं, जिनकी बाजार में भारी मांग है। यह प्लास्टिक का बेहतरीन विकल्प है और आयुर्वेदिक औषधियों व अचार में भी उपयोग होता है। वैश्विक स्तर पर 2.5 बिलियन लोग बांस पर निर्भर हैं, और इसका अंतरराष्ट्रीय व्यापार 2.5 मिलियन डॉलर का है। भारत में अगरबत्ती निर्माण में बांस का 16 प्रतिशत हिस्सा छड़ियों के लिए उपयोग होता है, जबकि शेष बेकार हो जाता है। बांस की लागत 4,000-5,000 रुपए प्रति मीट्रिक टन है, लेकिन गोल छड़ियों के लिए यह 25,000-40,000 रुपए तक पहुंचती है।

भारत सरकार बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। 2006 में शुरू हुआ 'राष्ट्रीय बांस मिशन' 2018 में पुनर्गठित किया गया। इस मिशन ने बांस की खेती को आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से सशक्त बनाया है।

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Created On :   17 Sept 2025 11:21 PM IST

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