लोक पर्व छठ का सांस्कृतिक के साथ वैज्ञानिक महत्व भी, तन और मन दोनों को मिलता है बल

लोक पर्व छठ का सांस्कृतिक के साथ वैज्ञानिक महत्व भी, तन और मन दोनों को मिलता है बल
भारत में जब लोग छठ मईया के गीत गाते हुए डूबते और उगते सूरज को अर्घ्य देते हैं, तो यह केवल आस्था का क्षण नहीं होता—यह प्रकृति और विज्ञान का संगम होता है। सदियों पुरानी यह परंपरा, जिसे आयुर्वेद और लोकसंस्कृति दोनों ने 'जीवन का संतुलन' माना है।

नई दिल्ली, 23 अक्टूबर (आईएएनएस)। भारत में जब लोग छठ मईया के गीत गाते हुए डूबते और उगते सूरज को अर्घ्य देते हैं, तो यह केवल आस्था का क्षण नहीं होता—यह प्रकृति और विज्ञान का संगम होता है। सदियों पुरानी यह परंपरा, जिसे आयुर्वेद और लोकसंस्कृति दोनों ने 'जीवन का संतुलन' माना है।

छठ पूजा की सबसे खास बात यह है कि यह केवल पूजा नहीं, बल्कि सूर्योपासना है। वेदों में कहा गया है, “सूर्योऽत्मा जगतस्तस्थुषश्च,” यानी सूर्य समस्त जीवन की आत्मा है। वैज्ञानिक रूप से भी यही सत्य है। सूर्य की रोशनी हमारे शरीर में विटामिन डी के निर्माण की प्राकृतिक प्रक्रिया को सक्रिय करती है, जो हड्डियों, प्रतिरक्षा तंत्र और मानसिक संतुलन के लिए अत्यंत आवश्यक है।

रामायण और महाभारत के अलावा विष्णु पुराण, देवीभागवत और ब्रह्मवैवर्त पुराण जैसे धर्मग्रंथों में छठ पर्व से जुड़े अनेक कथानकों का वर्णन है। इस पर्व की शुरुआत महाभारत काल में कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। च्यवन मुनि की पत्नी सुकन्या ने अपने बूढ़े हो चुके पति को पुनर्यौवन दिलाया था।

छठ पर्व में सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों समय पूजा की परंपरा है। यही समय वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि सुबह 6 से 8 बजे और शाम 4 से 6 बजे तक की धूप यूवी-बी रे का सबसे संतुलित रूप होतीहै,। ऐसी किरण जो त्वचा को नुकसान पहुंचाए बिना शरीर को पर्याप्त विटामिन डी प्रदान करती है।

जब व्रती बिना किसी केमिकल लोशन या धूप से बचाव के सूर्य की किरणों को ग्रहण करती हैं, तो उनका शरीर प्राकृतिक रूप से डिटॉक्स होता है और कोशिकाओं में कैल्शियम-फॉस्फोरस संतुलन बनता है।

आयुर्वेद कहता है कि सूर्य नाड़ी शरीर की अग्नि (पाचन शक्ति) को नियंत्रित करती है। छठ व्रत में भोजन और जल का संयम, लगातार उपवास और ध्यान—ये सभी हमारे एंडोक्राइन सिस्टम को संतुलित करते हैं। जब व्यक्ति सूर्य की रोशनी में स्नान कर ध्यान करता है, तो मेलाटोनिन और सेरोटोनिन हार्मोन सक्रिय होते हैं जिससे नींद और मूड में सुधार आता है साथ ही मानसिक स्थिरता मिलती है।

भारत में विटामिन डी की कमी एक गंभीर समस्या बन चुकी है। अनुमान है कि शहरी आबादी का लगभग 70 फीसदी हिस्सा इससे प्रभावित है। यह कमी न केवल हड्डियों, बल्कि डिप्रेशन, थकान और इम्यूनिटी पर भी असर डालती है। इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस की 2025 की एक रिपोर्ट में इसकी कमी को गंभीर समस्या माना गया है। इस रिपोर्ट में इसे "मूक महामारी" करार दिया गया। इसके अलावा, साइंस जर्नल नेचर की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में भारत के लगभग 49 करोड़ लोग विटामिन डी की कमी से जूझ रहे थे।

ऐसे में छठ पूजा जैसी परंपराएं, जो प्राकृतिक धूप से जुड़ने का अवसर देती हैं, आज के तनावपूर्ण जीवन में और भी प्रासंगिक हो जाती हैं। जब परिवार घाटों पर घंटों सूर्य की ओर मुख किए खड़े रहते हैं, तो यह केवल धार्मिक अभ्यास नहीं — बल्कि सस्टेनेबल हेल्थ थेरपी का रूप है।

दिलचस्प है कि आज पश्चिमी देश 'सन बाथ' और 'हेलियोथेरेपी' को स्वास्थ्य के लिए आवश्यक मान रहे हैं, वही सिद्धांत जो भारत ने हजारों साल पहले छठ पूजा के रूप में अपनाया था। आयुर्वेद में जल-चिकित्सा का जिक्र है। इसमें ‘कटिस्नान’ को विशेष उपयोगी माना गया है ठीक वैसे जैसे कर्ण किया करते थे।

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Created On :   23 Oct 2025 2:49 PM IST

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