अब रेटिनल स्कैन से हृदय रोग के जोखिम की मिलेगी जानकारी, कनाडाई वैज्ञानिकों ने किया शोध
नई दिल्ली, 25 अक्टूबर (आईएएनएस)। कनाडा के शोधकर्ताओं ने एक नई खोज की है, जो भविष्य में दिल की बीमारियों और उम्र बढ़ने के खतरे का पता लगाने का तरीका बदल सकती है। इस शोध में कहा गया है कि आंखों की छोटी रक्त वाहिकाओं की स्कैनिंग से यह जाना जा सकता है कि किसी व्यक्ति में हृदय रोग होने का खतरा कितना है और उसका शरीर जैविक रूप से कितनी तेजी से बूढ़ा हो रहा है।
साइंस एडवांसेज नामक जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक, आंखों की रेटिना शरीर की छोटी रक्त वाहिकाओं की एक झलक देती है। यानी आंखों के भीतर की रक्त नलिकाओं की स्थिति पूरे शरीर की नसों के स्वास्थ्य को दर्शा सकती है। यह जांच बिना किसी दर्द या जटिल प्रक्रिया के की जा सकती है, जिससे यह भविष्य में स्वास्थ्य जांच का एक सामान्य और सुविधाजनक तरीका बन सकता है।
कनाडा की मैकमास्टर यूनिवर्सिटी में मेडिसिन विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर मैरी पिगेयर ने कहा, ''टीम ने रेटिनल स्कैन, जेनेटिक डेटा और खून के नमूनों को मिलाकर यह समझने की कोशिश की कि उम्र बढ़ने की प्रक्रिया शरीर की रक्त वाहिकाओं को कैसे प्रभावित करती है।''
उन्होंने कहा, ''आंख शरीर की रक्त प्रणाली की एक खिड़की की तरह है। आंखों की छोटी नसों में जो बदलाव होते हैं, वे अक्सर पूरे शरीर की छोटी रक्त वाहिकाओं में हो रहे परिवर्तनों का प्रतिबिंब होते हैं।''
इस शोध में 74,000 से अधिक लोगों के डेटा का इस्तेमाल किया गया। प्रतिभागियों के रेटिनल स्कैन, जीन संबंधी जानकारी और खून के नमूनों का विश्लेषण किया गया, ताकि यह समझा जा सके कि किन लोगों में रक्त वाहिकाओं की संरचना में अंतर है और उसका स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है।
परिणामों से यह पता चला कि जिन लोगों की आंखों की रक्त वाहिकाएं कम शाखाओं वाली और अधिक सीधी थीं, उनमें हृदय रोगों का खतरा अधिक था। इसके साथ ही, उनके शरीर में जैविक उम्र बढ़ने के संकेत भी मिले, जैसे कि ज्यादा इंफ्लेमेशन और कम जीवनकाल दिखाई दिए।
वर्तमान में दिल, स्ट्रोक और डिमेंशिया जैसी बीमारियों का जोखिम जानने के लिए कई प्रकार के टेस्ट और जांच करनी पड़ती है। इनमें समय और धन दोनों लगते हैं। लेकिन इस शोध से उम्मीद है कि आने वाले समय में केवल एक साधारण आंख की स्कैनिंग से ही व्यक्ति की उम्र और हृदय संबंधी जोखिम का पता लगाया जा सकेगा। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि इस तकनीक को व्यापक रूप से अपनाने से पहले और अधिक शोध और परीक्षण की आवश्यकता है।
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Created On :   25 Oct 2025 3:19 PM IST












